Showing posts with label General. Show all posts
Showing posts with label General. Show all posts

Thursday, February 19, 2009

क्या देखा है ऐसा कभी ?

कहत्ते हैं काम कोई छोटा बड़ा नही होता बस अपना अपना नजरिया होता है | आप जो कर रहे हैं उसी में खुश रहिये | और इस बन्दे को देखिये ये भी अपने काम में मस्त है ! आपने कभी अपने दुपहिया वाहन को बाहर पार्सल किया है ? अजी तो आज देख लीजिए | आपने बहुत कुलियों को देखा होगा जो भारी से भारी सामान उठाते हैं | पर ऐसा आप पहली बार देख रहे होंगे .........

दुपहिया वाहन सामान्यतः ट्रेन से लोग बेझते हैं | लकिन रात में चलने वाली वोल्वो बस भी इसे ले जाती हैं | लेकिन वोल्वो बस में नीचे स्पेस होता है जहाँ आराम से दुपहिया मोटर वाहन को दाल दिया जाता है | लेकिन अगर जगह ना हो तो .........




















जी हाँ ऐसे .....ये तस्वीर बंगलोर के कलासी पालयम बस स्टैंड की है.....ये बंदा महज़ २० रूपये में ये काम डेली करता है | २०० केजी की गाड़ी को ये ऐसे चढाता है जैसे कोई खिलौना हो....इसका नाम तो मुझे नही मालुम लेकिन आप जब भी कलासिपलाय्म जायेंगे ये आपको जरुर मिल जायेगा |

Thursday, January 22, 2009

मैं बेचारा , काम के बोझ तले मारा ..



उफ्फ ये काम , काम और केवल काम | आजकल हमारी वयस्तता का आलम मत पूछिए | नया प्रोजेक्ट , नई टेक्नोलॉजी , सारी जिम्मेवारी हम पर मतलब अमित बाबू की तो बाट लगी हुई है | सही में बहुत बुरा हाल है | किसी तरह कुछ समय निकाल पाता हूँ ताकि कुछ ब्लॉग पढ़ सकूँ और टिप्पिन्नी भी कर सकूँ | आजकल ब्लॉग्गिंग में सक्रियता बिल्कुल आधी हो गई है | जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था , जयादा नही दिसम्बर-२००८ में तब एक प्रोजेक्ट ख़तम हुआ था और उसके बाद कोई ख़ास काम नही था | बस बहुत दिनों से अपनी अंतर्मन की ख्वाइश को अमलीजामा पहना दिया था | डर तब भी लगा था की मैं सक्रिय रह पाऊंगा की नही | खैर कुछ दिन ये काम का बोझ रहेगा | तब तक शायद मैं उतना सक्रिय ना रह पाऊं | पर हाँ हरेक मंगलवार को आपको एक पहेली जरुर मिलेगी यहाँ | और समय निकाल कर मैं नए पोस्ट भी लिखता रहूँगा |

अभी तो इस सप्ताह का पुरा कार्यक्रम निश्चित हो गया है | शुक्रवार को हमारे कॉलेज की एक मित्र की शादी है | शादी के लिए हमें वेल्लोर जाना है | वेल्लोर चेन्नई से नही कुछ तो ३ घंटे का रास्ता है | फिर शादी के बाद हम बंगलोर हो लेंगे | २६ तक बंगलोर में अपना डेरा जमेगा | फिर वापस "बैक टू पवेलियन "| बंगलोर का कार्यक्रम बंगलोर में तय किया जायेगा | २६ जनवरी की छुट्टी सोमवार को हो जाने के कारण काफ़ी लंबा सप्ताहंत हो जाता है | इसलिए लगभग सब लोग विशेषकर आईटी कंपनी के लोग कहीं न कहीं घूमने निकल जाते हैं | इतनी जायदा भीड़ हो जाती ई की मत पूछिए | आज सुबह सुबह ८ बजे से रेलवे टिकेट की बुकिंग के लिए कोशिश कर रहा था | लेकिन क्या मजाल था की साईट खुल जाएँ | १ घंटे की जदोजेहत के बाद अंत में मैंने हथियार डाल दिए|

बड़ा दुःख होता है ऐसा देखकर | अब भी हमारी सरकार वही पुराना ढर्रा अपना रही है | अब भी वही पुरानी टेक्नोलॉजी अपनाए हुई है | रेलवे जिसका उपयोग भारत का हर आदमी करता है , जो की भारत की आवागमन सुविधा की आन है कम से कम उसे तो आप नए टेक्नोलॉजी से लैश कीजिये | कुछ यूजर क्या बढ जाते हैं रेलवे का सर्वर काम करना बंद कर देता है | लालू जी जापान से आए और बोले की बुल्लेट ट्रेन अब इंडिया में भी चलेगी | इससे अच्छी बात क्या हो सकती है | ३००-४०० किलो मीटर प्रति घंटे के रफ़्तार से चलने वाला ट्रेन , सही में दूरियां नजदीकियां बन जायेंगी | तब तो साप्ताहांत में हम अपने घर भी जा सकते हैं | वाह लालू जी , लेकिन सिर्फ़ कहे मत इसे अमलीजामा भी पहनाये | और उससे भी जायदा जरुरी है infrastructure को ठीक करने की | जो है कम से कम उसे इस लायक तो बनाइये की वो अच्छे से ,ढंग से काम कर सके |

उम्मीद पर ही दुनिया टिकी हुई है और हम भी यही चाहते हैं की भारत लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे | गणतंत्र दिवस पर आप सबों को ढेर सारी शुभकामनाएं |

Friday, January 16, 2009

ये है बंगलोर - बंगलोरु (जो कह लें )

क्यूँ कहते हैं बंगलोर को " है - टेक" सिटी ..

२ पोस्ट पहले मैंने बंगलोर और उसकी खूबसूरती का जिक्र किया था | वो खुमारी तो अभी तक उतरी नही है | पहले मैं हरेक शनिवार को बंगलोर जाया करता था | लेकिन अब काम और जिम्मेवारी बढ़ जाने के कारण नही जा पाता हूँ | लेकिन कोशिश रहती है की जब भी मौका मिले चला जाऊं | पिछले पोस्ट में मैंने कहा था की समय मिलेगा तो बंगलोर की कुछ फोटोग्राफ्स आपलोगों के साथ शेयर करूँगा | समय मिला तो नही पर हाँ समय निकाल कर कुछ फोटोग्राफ्स यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ | आशा करता हूँ की आपलोगों को पसंद आएगा |

सबसे पहले इस्कॉन मन्दिर का दर्शन करें |




ये तस्वीर यहाँ के राजा केम्प गोडा की है | इनके नाम से बंगलोर में एक पुरी जगह है |


बंगलोर बुल-मन्दिर | काफ़ी प्रसिद्ध है | कहते हैं यहाँ जो मांगो , मिल जाता है |


ये बंगलोर का महाराजा पैलेस है |



बंगलोर सरकारी कार्यालय(विधान- सौधा)|



बंगलोर का लालबाग गार्डन | बंगलोर जाए तो यहाँ जरुर जाएँ |





और ये अनोखा पेड़ जो लालबाग में है


लालबाग का ग्लास हाउस |


बंगलोर की कुछ आईटी कंपनी ....

Microsoft:



Intel-tech park:


बंगलोर का सुर्ययास्त ....

एक झलक बंगलोर के हेब्बल फ्लाई ओवर की


७-स्टार लीला पैलेस |

बस ये थोडी झलक थी बंगलोर की | और बहुत सारे चीज़ है जो आपको बंगलोर का दीवाना बना सकता है | मुझे जो सबसे अच्छी लगती है वो है यहाँ का जलवायु | आप भी बताएं आपको कैसा लगा बंगलोर ?

Photographs:Courtesy-Google

Monday, January 12, 2009

साप्ताहांत बंगलोर में - एक मैक्रो पोस्ट

काश ये समय यहीं रुक जाता , काश मैं कुछ लम्हे और यहाँ बिता सकता | इसबार भी मैं साप्ताहांत मनाने बंगलोर गया हुआ था | वो शीतल हवाएं , गुनगुने धुप मुझे अपने शहर की याद दिला देते हैं | अन्तर सिर्फ़ इतना है की बंगलोर में नॉर्थ इंडिया जैसा कडाके की ठण्ड नही पड़ती है | यहाँ की शीतल हवा में अजीब सी ताजगी रहती है , आपका रोम रोम प्रफुल्लित महसूस करता है | यहाँ आने पर मुझे लगता है की मैं प्रकृति के करीब आ गया हूँ | सारी थकान ख़ुद - ब - ख़ुद गायब हो जाती है |

कहते भी हैं की अगर अपने आप में नई ताजगी , नई स्फूर्ति पैदा करना चाहते हैं तो प्रकृति के करीब जाइए | बंगलोर तो ऐसा शहर है जो प्रकृति की गोद में बसा हुआ है | अब तो काफ़ी कुछ बदल गया है , लेकिन अब से कुछ साल पहले करीब १९९७ में मैं पहली बार बंगलोर गया था | उस वक्त आपकी नज़र जिधर जाती उधर आपको हरयाली ही हरयाली दिखती | अब तो केवल कंक्रीट के जंगल जयादा दीखते हैं | जिस निर्बाध तरीके से पेड़ों की कटाई चल रही है वो दिन दूर नही जब चारो तरफ़ सिर्फ़ कंक्रीट के जंगल ही दिखेंगे |

लेकिन अभी भी ये शहर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है | इस शहर के बारे में कभी आराम से कुछ चित्रों के साथ लिखूंगा | बस अभी जल्दी जल्दी ऑफिस के काम निपटा लूँ |

Saturday, January 3, 2009

ये झिझक क्यूँ ?

ये झिझक भी बड़ी अजीब चीज़ होती है....करे या ना करे ? कहे या ना कहे ? जाए या ना जाए ? पूछे या ना पूछे ? बड़ी अजीब है ये झिझक ....क्यूँ होती है ये जिझक मुझे आज तक समझ में नहीं आया |

अब ये ही देखिये ....जुम्मा जुम्मा एक महीने हुए हैं ब्लॉगिंग करते हुए इसलिए कह सकते हैं की मैं अभी शिशुअवस्था में हूँ ..जब कभी मैं किसी अच्छे पोस्ट को पढता था या किसी अच्छे लेख को पढ़ता था तो बिल्कुल निरुत्तर हो जाता था...समझ में नहीं आता था की मैं इसपर क्या टिप्पिनी करूँ ? जो भी सोचता था वो लगता था की ये छोटी मुंह बड़ी बात हो जायेगी ...एक झिझक सी रहती थी.....एक झिझक की रचनाकार क्या सोचेंगे ? जुम्मा जुम्मा ५ दिन से ब्लॉग लिख रहा है और चला टिप्पिनी करने ....अगर यूँ देखा जाए तो टिप्पिन्नी करना काफ़ी आसान भी है और काफ़ी मुश्किल भी....

काफ़ी आसान इसलिए की कोई भी लेख हो या कविता हो आप ये तो कह ही सकते हैं..." अच्छा लिखा आपने ...या बहुत सही कहा आपने या इसी से मिलता जुलता कुछ भी " ...लेकिन ऐसी टिप्पिन्नी तब जब आप सिर्फ़ अपने ब्लॉग का प्रचार करने के लिए वहां पर टिप्पिया रहे हों...मेरा भी मन करता था यार चलो टिप्पिया दो क्या जाता है.....लेकिन एक अजीब सा अपराधबोध जैसा महसूस होने लगता है इसलिए मैं वहां टिप्पिन्नी ही नही करता हूँ .... लगता है की कुछ उल्टा पुल्टा लिख दिया तो लोग कहेंगे "छोटी मुंह बड़ी बात " | हाँ जहाँ लगा की मैं चुप नहीं रह सकता वहां मैंने जरुर टिप्पिनी की या उस विषय पर अपने ब्लॉग पर अपने विचार व्यक्त किए....

सवाल ये नही है की मैं ब्लॉग पर टिप्पिन्नी करने से क्यूँ डरता हूँ? सवाल ये है की ये झिझक क्यूँ होती है? इस झिझक से हम अपने निजी जिंदगी में भी परेशान रहते हैं......कुछ बुरा करने में झिझक हो तो समझ में आता है लकिन कुछ अच्छा करने में किस बात की जिझक.........वैसे मैं अपनी निजी जिंदगी में कभी नही जिझकता ...जो मन में आए बिंदास होके करता हूँ.....और मैं समझता हूँ की ये झिझक हमें जिंदगी में आगे बढ़ने से रोकती है.......

जिझक बहुत कुछ आपके आपके घर के माहौल पर निर्भर करता है या यूँ कहे की आपको introvert , extrovert , या ambivert बनाता है.......लेकिन ये झिझक बहुत बुरी चीज़ है....

क्लास में जवाब देने में झिझक ....
सवाल पूछने में झिझक ........
जवाब देने में झिझक की कहीं ग़लत हो गया तो और लोग क्या सोचेंगे .....
किसी अनजान आदमी से बात करने में जिझक ....

और भी बहुत प्रकार के झिझक हैं जो हम में से कभी न कभी कहीं न कहीं जरुर महसूस किए होंगे ....

चलिए आप लोग भी अपने विचार बिना झिझक के हमें बताएं.........

Tuesday, December 30, 2008

आतंक , मंदी, उम्मीद तथा सपने

चलिए वक्त आ गया है की हम पुराने साल को अलविदा कहे और नए साल का गरमजोशी के साथ स्वागत करे |काफ़ी कुछ अच्छा नही रहा इस बीतते हुए साल में | अगर संझेप में बात करे तो आतंकवाद से लेकर मंदी की मार ने देश की जनता का काफ़ी दोहन किया | लेकिन वक्त किसी के लिए रुकता नही है , बस चलते जाता है और चलने का नाम ही जिंदगी है | ऐसा नही है की इस बीते साल में हमारी कुछ उपलब्धियां नही रही | अगर गिनाया जाए तो बहुत है , जिसमे मुख्यत: चंद्रायण का सफल मिशन भी शामिल है |

अगला साल कैसा होगा ये कहना तो बहुत मुश्किल है पर हाँ कुछ ऐसे बातें जरुर है जो हमारे चेहरे पर मुस्कान बिखेर सकती है |
१) महंगाई दर में और गिरावट देखने को मिल सकती है |
२) पेट्रोल और डीजल के दाम और गिर सकते है |
३) होम लोन और सस्ता होने जा रहा है | कुछ बैंको ने तो ०.७५% तक ब्याज दर घटा दी है |
४) हवाई किराया सस्ता होने जा रहा है | जेट ने अपने किराए में घटोतरी कर दी है , अब किंग फिशर करने जा रहा है |
५) शेयर बाज़ार में उछाल देखने को मिल सकती है |
६) दूसरे आर्थिक पैकेज जल्द आने की संभावना है |
७) अगले साल चुनाव है इसलिए हम सरकार से लोक-लुभावने बजट की उम्मीद कर सकते है |
८) सरकारी छेत्रो में और नौकरियों का इजाफा हो सकता है | कुछ बैंको ने पहले ही रिक्त सथानो की पूर्ति के लिए चयन परीक्षा की घोषणा कर दी है |

सपने देखने में कोई बुराई नही है | उम्मीद पर ही दुनिया कायम है, और हम तो भाई हमेशा सकारात्मक सोच रखते है | हाँ अब भी कुछ चीजें है जो अगले साल भी ना बदले | उनमे सबसे प्रमुख है ये मंदी का महादानव और इससे प्रभावित ये प्राइवेट सेक्टर | हमारी सरकार कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन इस मामले में हम अमेरिका पर बुरी तरह निर्भर है | इस साल अब तक बहुत से लोगो की नौकरियां जा चुकी है या यूँ कहे की इस मंदी का महादानव ने निगल लिया है और ये शायद अगले साल भी जारी रहे | दूसरे सेक्टर की मैं बात नही करूँगा , चुकी मैं आईटी सेक्टर में हूँ इसलिए मैं इसके बारे में कह सकता हूँ की अगले साल भी इसमे हमें मंदी देखने को ही मिलेगी | इसका सबसे प्रमुख कारण है की अभी भी हमारे देश से आईटी सेक्टर को काफ़ी कम या यूँ कहे ना के बराबर प्रोजेक्ट मिलता है | और हम प्रोजेक्ट के लिए पश्चिमी देशो पर निर्भर रहते हैं , और जब तक उनकी हालत नही सुधरेगी तब तक हमारी देश की कंपनियों का भी यही हाल रहने वाला है |

चलिए अब वक्त आ गया है की हम पुरानी बातें भूल कर नए साल का खुले ह्रदय से स्वागत करे | नए साल में ज्यादा कुछ नही , हम तो बस इतना चाहते हैं की हमें खुश रहने के लिए वजहें ना ढूँढनी पड़े |

Thursday, December 25, 2008

मानसिक हलचल की हलचले


कल सुबह सुबह ज्ञानदत्त जी का ब्लॉग पढ़ा | पढ़ते ही मानसिक हलचल शुरू हो गई | काफ़ी कुछ पढ़ कर अच्छा लगा ,कुछ पढ़ कर अच्छा नही लगा | अब तक बहुत सारे लोग अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं|

पीडी ने कुछ अच्छे सवाल उठाये | धीरू भाई को उनसे प्रेरणा मिली ,कुश भाई को पढ़ते पढ़ते ऊब होने लगी तो अवधिया जी ने ऊब को खतरनाक की संज्ञा दे डाली| डॉक्टर अनुराग जी ने अपनी बातो को सिलसिलेवार तथा क्रमबद्ध तरीके से रखा और ताऊ ने इसे जीवन की परिभाषा बतायी |

अब कुछ मेरी बातें | अपनी बातें शुरू करने से पहले मैं ज्ञानदत्त जी से कहना चाहूँगा की इस चिट्ठे को अन्यथा न ले | ये बस मेरे विचार है , अगर इससे आपकी भावनायें को ठेस पहुँचती है तो मैं माफ़ी चाहूँगा | अपना समझ कर माफ़ कर दे |

सृजन की प्रक्रिया कितनी भी धीमी और श्रमसाध्य होती हो पर सृजन वही कर सकता है जिसकी उसमे रूचि हो| बिना रूचि के कोई भी सृजन नही हो सकता है , और जहाँ रूचि होगी वहां ऊब नही हो सकती है | हाँ , छनिक ऊब की अगर हम बात करे तो वो मैं मान सकता हूँ , पर वो भी तब आती है जब आप लगातार किसी एक काम को किया जा रहे हैं , और करते करते इतना थक जाते है की कुछ देर के लिए विश्राम चाहते हैं | अगर ये ऊब है तो मुझे इसमे कोई बुराई नही दिखती है |

मैं नई पीढी का हूँ | मुझे कभी अकेलेपन से डर नही लगा | और मैं तो अक्सर अकेले रहने की कोशिश करता हूँ | और जहाँ तक बात है पुस्तकालय में समय काटना की तो अभी अपनी पीढी के सैकडों लोगो को जानता हूँ ,जो पुस्तकालय में ही समय काटना पसंद करते हैं , मैं जिस छेत्र में हूँ उसमे समय काफ़ी मुश्किल से हमें मिल पाता है | बहुत से ऐसे लेख मैंने पढ़े हैं जिसमे एक सॉफ्टवेर इंजिनियर के बारे मैं लिखा गया हो | इसलिए इनकी जिंदगी कैसी और कितनी व्यस्त होती है कहने की जरुरत नही है , फिर भी हमें जब भी मौका मिलता है,प्रेमचंद को पढ़ते हैं और गालिब को सुनते हैं | मैं और मेरे दोस्त कोई भी अच्छी रचना , अच्छी बुक मिस नही करना चाहते , चाहे वो हिन्दी की मधुभुशन दत्ता, हो या फिर काजी जरुल इस्लाम ,या धन गोपाल मुख़र्जी ,या मुकुल केसवन, या राज कमल झा या , विअक्स स्वरुप या , अनीता देसी , या किरण देसी , या दिनकर जी, गुप्त जी, हरिवंश जी , या धर्मवीर जी हो , या निराला जी, हो या प्रसाद जी ,हो या पन्त जी, हो या दीपक चोपडा जी हो...हम इन सभी को पढ़ते हैं | और अगर आप अंग्रेज़ी की बात करे तो "जॉन ग्रशिम, रोबिन शर्मा, जेफ्री अर्चेर , मून, शेकिल, आदि को हम पढ़ते हैं | हमें तो कभी ऊब नही हुई | हाँ एकरसता के शिकार जरुर हुए और हम उसे भिन्न भिन्न प्रकार के साहित्य पढ़ कर दूर करते रहे |

उतेज़ना कौन नही चाहता है? हां हमारी जेनरेशन घिसी पिटी लीक पर चलना नही चाहती है | हम अपना वजूद ख़ुद बनाना चाहते हैं | हम अपना मार्ग,अपना धेय्य ख़ुद चुनना चाहते हैं | हम किसी का अनुशरण नही करना चाहते | और अगर हम ऐसा करते तो आज हम वही होते जहाँ आज से १०० साल पहले थे | हम किसी चीज़ का अनुशंधान नही करते | किसी चीज़ का आविष्कार नही होता | हम आज भी उसी लालटेन युग में जी रहे होते |

आदमी किसी काम से तभी ऊबता है जब उसके जीवन में एकरसता आ जाती है | उसका काम करने में मन नही लगता है | किसी काम से ऊबने के बाद आप उस काम को कभी अच्छे ढंग से नही कर सकते हैं | एकरसता का शिकार होकर आदमी नीरस हो जाता है | और उस नीरसता के साथ सृजन कभी नही हो सकता है | एकरसता का शिकार तो हम भी कई बार हुए हैं | और जहाँ तक मेरी समझ है इस चीज़ से कोई अछुता नही रह सकता है | हाँ गौर करने वाली बात ये है की हम कैसे इस पर अपना आधिपत्य कायम रखते हैं | कैसे इसे हम अपने आपको नीरस बनाने से रोकते हैं | और कैसे इस एकरसता का रसिक की तरह आनंद उठाते हुए सृजनात्मक कार्यो में दिलचस्पी लेते हैं |

जब हम अपनी पीढी की बात करते हैं तो हम वही है जो दिन के १८ - १८ घंटे काम करते हैं उसके बाद भी तरोताजा रहते हैं | उसके बाद भी हम में इतनी उर्जा रहती है की हम अपने कुछ शौको को अमलीजामा पहना सके | ये शौक कुछ भी हो सकते हैं ... ब्लॉग लिखना, अच्छी अच्छी मूवीज देखना , टीवी देखना , साहित्य पढ़ना , लिखना,...आदि आदि..

हम इस दुनिया में सिर्फ़ रहना नही चाहते हैं, जीना चाहते हैं,...हम जान चुके हैं की हमारी जिंदगी बहुत छोटी है और इसी छोटी सी जिंदगी में ही हमें अपने हर अभिलाषा , हर मनोकामना , हर इच्छा को पूरा करना है , हमें कुछ बनना है ...कुछ कर के दिखाना है | और इसके लिए हम समय के मोहताज़ नही होना चाहते है | इस दुनिया में दो ही तरह के लोग होते हैं....
पहला .. जीवन जैसी चल रही है चलने देते हैं , कोई गिला कोई शिकवा नही ...
दूसरा.. जीवन को अपने हाथो में लेते हैं और इसे अपने अनुसार चलाते हैं ..लड़ते हैं ,गिरते हैं लकिन फिर उठ खड़े होते हैं लकिन हार नही मानते ....और मेरा अपना मानना है की नए जेनरेशन के जयादा तर लोग दूसरी जीवन शैली को अपनाते हैं...

मैंने कुश जी और विवेक जी का भी चिटठा पढ़ा...कुश जी के सुझाव गौर करने लायक हैं...और विवेक जी की कविता काफ़ी मस्त हैं...
तो ये थी हमारी यंग जेनरेशन की सोच...जरुर बताएं हमारी सोच कितनी हद्द तक दुरुस्त है...

चलिए आज ऑफिस में जयादा कुछ काम नही था इसलिए ये पोस्ट लिख सका.. २५ से से छुट्टी है और मैं भी चला लम्बी छुट्टी पर...इस लम्बी साप्ताहांत को मैं बंगलोर में मनाऊंगा...
आप सभी को क्रिसमस की हार्धिक शुभकामनाये ....

Wednesday, December 24, 2008

ताऊ ताऊ ताऊ ताऊ ...और केवल ताऊ

कल मैंने ताऊ का पोस्ट पढ़ा...पढ़ कर मज़ा आ गया...बस उसी वक्त मन में कुछ शरारत करने की इच्छा जाग उठी और मैंने आव् देखा न ताव बस लिख दी एक कविता..अब कविता है या नही ये तो आप लोग फ़ैसला करेंगे ..मैंने तो बस लिख दिया .....ताऊ अगर मैंने किसी भी तरह से या इस कविता के माध्यम से आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाया हो तो हमें आप हमारी पहली गलती मान कर माफ़ कर देंगे .....
पहले सोचा की इस कविता को ताऊ के पोस्ट पर ही जाके टिपियाया जाए ....फिर मन में एक लालच हो उठी...सोचा इसे अपने ब्लॉग पर ही प्रकाशित करता हूँ...कुछ हिट्स शायद मिल जाए...और कुछ अच्छे कमेंट्स भी...
नया नया हूँ इस ब्लॉग की दुनिया में इसलिए ऐसी बातें मन में आना स्वाभाविक है.......
ताऊ आपसे फिर अनुरोध है की इसे अन्यथा ना ले..और गलती के लिए माफ़ करें....



एक था ताऊ बड़ा होशियार
शरारत करने में हरदम तैयार
सबको बुद्धू बनाता था वो
अच्छे मजे उडाता था वो,

एक बार एक मास्टर आया
उसने ताऊ को सबक सिखाया
था वो मास्टर बड़ा चालाक
सर पे टोपी हाथ में डंडा
हरदम लेता ताऊ की क्लास ,

अब तो ताऊ बड़ा घबराया
खुराफाती दिमाग को उसने जगाया
कुछ उसने करने की ठानी
अब तो मास्टर को याद आनी थे नानी ,


ताऊ ने चली ऐसी चाल
हो गया मास्टर का हाल बेहाल
बाप बाप कर के वो भागा
फिर से ताऊ का परचम लहराया

Tuesday, December 23, 2008

अबे कितना पिएगा ?


मैंने पीना शुरू ही किया था की वो आ गया ....
अबे फिर से पीने बैठ गया .?
और क्या करूँ यार ?
क्यों कोई काम नही है तेरे को ?
वही तो कर रहा हूँ .

मर जायेगा तू पीते पीते .वही तो चाहता हूँ ...
क्यूँ पीता है इतना ? किस बात का गम है तुझे ,सब कुछ तो है तेरे पास .फिर क्यूँ ?
इसी बात का तो गम है यार .मेरे पास सब कुछ जो है ....
मैं समझा नही ..
अच्छा तू बैठ तो सही ..वो बैठ गया ...

अच्छा वो कुनाल को देखो .हाँ पता है ..उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे छोड़ दिया है इसलिए पी रहा है डरपोक साला .....

और वो नरेन्द्र को देख रहा है हाँ हाँ पता है उसकी जॉब चली गई है , यार बहुत बुरा हुआ है उसके साथ इसलिए शायद पी रहा होगा ....

लेकिन तू कहना क्या चाहता है .तेरी तो गर्लफ्रेंड भी है और मस्त सा जॉब भी है ....


अरे पूरी बात तो सुन ले ..अच्छा वो नारायण को देखो हाँ हाँ उसे भी जानता हूँ ..बेचारे की शादी नही हो रही है शायद उसी का गम होगा ...

अच्छा उन अंकल को जानते हो ..हाँ बे ..ये तो अपने शर्मा जी है .बेचारे की बीवी उसे बहुत पीटती है ...

अच्छा छोड़ इन लोगो को...वो देख सूट बूट में कार्नर में जो बैठा हुआ है जानता है उसे ...वो कौन है ? अच्छा अच्छा ये वही तो नही, जिसकी बेटी बहुत सुंदर थी .अपने गली में दाहिनी तरफ़ से चौथा मकान . ..हाँ बे वही है ...तेरी याददाश्त तो मस्त है .अरे यार कैसे भूल सकता हूँ उसको ...बहुत सुंदर थी वो यार.. हाँ हाँ पता है .. तू उसपर मरा करता था.. लट्टू था तू उसपर...और तेरी वजह से कितनी बार मैं मार खाते खाते बचा था..छोड़ न यार..शर्मिंदा मत कर...
अपने कॉलेज के किसी लड़के के साथ भाग कर उसने शादी कर ली थी .क्या ? सही में ? हाँ बे ....

कुछ देर के लिए दोनों चुप . ....फिर उसने भी अपने लिए ड्रिंक मंगाया...

अब पूछने की बारी मेरी थी .तू क्यूँ पी रहा है ? तेरा भी तो मस्त जॉब है, गर्लफ्रेंड है ....फिर क्यूँ ?

नही यार बस मूड ऑफ़ हो गया ....क्या ? मूड ऑफ़ हो गया ?वो लड़की भाग गई इसलिए ?
तेरी तो कभी उससे बात तक नही हुई थे ?फिर क्यूँ तेरा मूड ऑफ़ हो गया ?वो तो तुझे जानती तक नही होगी ?
बस यार कुछ अच्छा नही लगा सुनके ...

ऊपर कही गई बातो को आप व्यंग्य में ले सकते हैं ....पर क्या हम सच में किसी के दुःख से दुखी होते हैं ,शायद नही ...हमें हमदर्दी तो होती है पर शायद दुःख नही होता ...और यूँ कहे की हम अपने दुखों में ही इतने उलझे रहते है की दुसरे का दुःख हमारी समझ में नही आता है ...

क्या कभी आपने सोचा है की हम किस ओर बढे जा रहे हैं ..ये दुनिया किधर जा रही है ...लोगो के पास एक दूसरे के लिए वक्त नही है ...एक अजीब सी मृगतृष्णा चारो ओर फैली हुए है ...लोग भाग रहे हैं ...दौड़ रहे हैं ...पर क्या हासिल कर रहे है... ...क्या कोई खुश है ?

Tuesday, December 16, 2008

ठक ठक...कही भूत तो नही ....(भाग दो )

रात के १२ बजे....अभी तक कोइ हलचल नहीं हुइ थी....मैं और मेरा दोस्त दो जन उस कमरे मे थे जिसमें दस्तक होने वाली थी..मेरे दोस्त को झपकी आनी शुरु हो गयी थी लकिन मैं निडर सिपाही की तरह डटा हुआ था....बस मन मे यही था की किसी तरह उसे पकरना है जिसने हमारी रातों की नींद हराम कर रखी है...

रात के १ बजे...दूसरे कमरे मे क्या हो रहा है कुछ अन्दाज़ा नहीं था...सब सो गये या जगे थे ये भी नहीं पता था...खैर मै जगा हुआ था और पुरे जोश के साथ डटा हुआ था....

तभी कुछ सरसराहट सी हुई...लगा की कोई हमारे दरवाज़े की तरफ़ आ रहा है...मै सतर्क हो गया..वो आवाज़ और पास आती गयी......मेरे दोस्त जो की दूसरे कमरे मे थे उन्हे ये सुनायी दे रहा था की नहीं मुझे कोई जानकारी नही थी....वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी थी.... लगा की दरवाज़े के पास आके कोई रुका हुआ है....

अब डर लगना शुरु हो गया था....मेरा मन कह रहा था कि मै दरवाज़ा खोल दू पर शरीर साथ नहीं दे रहा था.....धप्प धप्प....जैसे ही उसने दरवाज़ा खट्खटाया मैने बिना विलम्ब किये हुए दरवाज़ा खोल दिया.....एक सेकेंड की भी देरी नहीं हुई थी..

दरवाज़ा खोलते ही मै हक्का बक्का रह गया था....सामने कोई नहीं था......ये कैसे हो सकता है मैने अभी अभी आवाज़ सुनी थी.....तब तक मेरे बाकी दोस्त लोग भी बाहर आ गये थे..आवाज़ उनलोगों ने भी सुनी थी..पर बाहर कोई नही था........

उस सारी रात हममे से कोइ सो नहीं सका...कहीं ये भूत वूत का चक्कर तो नहीं है, मेरे एक दोस्त ने कहा....सभी उसके तरफ़ घूर घूर कर देखने लगे...अभी तक ऐसी बातें किसी के दिमाग मे नहीं आयीं थी....हमारे सोचने की दिशा अब बिल्कुल बदल गयी थी....इतना तो हमने मान लिया था कि कुछ अप्राक्रतिक घटित हो रहा है..पहली बार मैने सब की आंखों में डर देखा था...हम ये घर छोरना भी नहीं चाहते थे...काफ़ी अच्छा और काफ़ी मेहनत से मिला था ये घर....तो फिर हमने एक और रात जागने का फ़ैसला किया और इसबार हमने बरामदे मे सोने का फ़ैसला किया..

दिल्ली की उस सर्दी में बाहर बरामदे मे सोना अपने पैर पर कुल्हारी मारने जैसा ही था....मरता क्या नहीं करता...धीरे धीरे रात ढ्लने लगी थी..हम सभी दोस्त एक साथ उस अन्ज़ाने शख्स का इन्त्ज़ार कर रहे थे जो कि था भी कि नहीं पता नहीं...ज्यों ज्यों रात गुजरती जा रही थी हमारी दिलों कि धड्कन बढ्ती जा रही थी...तभी हमे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है..हम सभी सजग हो गये...लेकिन इस बात को ५ मिनट हो गये और कोइ नहीं आया... सारी रात हमे कई बार एह्सास हुआ कि कोई आ रहा है पर कोई नहीं होता था....

पुरी रात बीत गयी और कुछ नही हुआ...मेरे दो दोस्तों को बुखार हो गया उस सर्दी के कारन...हमने सोचा कि अब अगर ये वाक्या दुबारा हुआ तो हम घर बदल लेंगे....लेकिन ये घटना दुबारा फिर कभी नहीं हुई....

आज भी जब कभी वो रातें याद आतीं हैं तो एक अजीब सी सिहरन सी हो जाती है...मेरी दिल्ली कि डायरी में ऐसे बहुत सारे पन्ने है जो मै आपलोगो के साथ बाटुगां...