Wednesday, December 17, 2008

वार्तालाप प्रभु से...


हे प्रभु आज आपसे कुछ मांगने आया हुं...(मन में- वो तो हमेशा ही मांगता रह्ता हुं..)
नहीं प्रभु आज कुछ खास है...तंग आ गया हुं इस दुनिया से प्रभु....
चलो आपका जायदा समय नहीं लुंगा...बहुत लोग हैं कतार में.... प्रभु चुप हैं....

प्रभु मै चेन्नैइ से उब चुका हुं...प्रभु चुप हैं
मतलब प्रभु मै कम्पनी छोरना चाहता हुं....प्रभु चुप हैं...
कहीं भी भेज दो प्रभु बस चेन्नैइ में नहीं रहना है... प्रभु चुप हैं...

प्रभु इतने सारे दोस्त हैं मेरे फिर भी मैं अकेला हुं...कुछ करो ना...प्रभु चुप हैं...
प्रभु मैनें बहुतों को प्यार दिया...अब चाहता हुं मुझे भी कोई प्यार करे....प्रभु चुप हैं...
(मन में.....प्रभु मैं सुन्दर बालाओं की बात कर रहा हुं)

प्रभु बस में धक्के खा खा के तंग आ गया हुं ....एक अपनी गाडी दिला दो ना...प्रभु चुप हैं...
प्रभु नया नया ब्लाग लिखना शुरु किया है..लेकिन कोई पढ्ता नहीं ..कुछ करो ना...प्रभु फिर भी चुप हैं...
अगर पढ्ते भी हैं तो कोई टिप्प्णी नहीं करता....कुछ करो ना...प्रभु फिर भी चुप हैं...
प्रभु सब धाखड लेखक हैं.....बहुत अच्छा लिखते हैं..मुझे भी उन जैसा बना दो ना......प्रभु फिर भी चुप हैं...


प्रभु मैं ज्यादा नहीं मांग रहा...ये सब तो मूलभूत आवश्कयता है....प्रभु फिर भी चुप हैं...
प्रभु कब तक खामोश रहोगे...कुछ तो बोलो..प्रभु फिर भी चुप हैं...

अच्छा अच्छा समझ गया प्रभु...समझ गया.....जय हो..प्रभु की जय हो....

आप नहीं समझें..........

मौनं स्वीकारणम लक्छ्णं.....प्रभु अभी भी चुप हैं...
अर्थात मेरी सारी मागें पुरी हो गयी.......शत शत नमन प्रभु....शत शत नमन प्रभु....