आप ख़ुद निश्चय करें की इन तस्वीरों से आप क्या समझना चाहते हैं ? हम आज कहाँ से कहाँ पहुंच गए पर अभी भी भारत की एक चौथाई जनता को दो टाइम का खाना नही मिल पाता है , जीवन जीने की जो मूलभूत आवश्यकता है वो पुरी नही हो पाती है | मन व्यथित होता है यह सब देख कर | क्या आपका होता है ? हम में से लगभग हर आदमी का कभी न कभी कहीं न कहीं भिखारियों से पाला पड़ता होगा | आपको दया भी आती होगी , कुछ लोग उसे हिकारत भरी नज़रों से भी देखते होंगे | और कुछ लोग उसे सहीं में कुछ देते भी होंगे | पर हमारे दिमाग में ये हमेशा रहता है की , ये तो इनका रोज़ का काम है , ये तो धंधा है इनका | हम इन्हें कुछ दे या ना दे , और ऐसा सोचना सही भी है ......
कुछ दिन पहले हमारे एक मित्र एक ऐसी ही दुविधा में फँस गए थे | सुबह सुबह जब वो घर से निकले ऑफिस जाने के लिए तो रास्ते में एक अधेड़ उम्र के वयक्ति ने उन्हें रोक लिए और उनसे कुछ पैसे की मांग करने लगा | उसने जो बताया उसके अनुसार वो इस जगह पर नया है | यहाँ वो किसी से मिलने आया है , और यहाँ आते ही उसका सारा सामान चोरी हो गया | साथ में उसके पास जो पैसे थे वो भी चले गए | जिससे मिलने आया है , उसका पता और फ़ोन नम्बर भी चला गया | मेरे मित्र असमंजस में पड़ गए | और आख़िर काफ़ी चिंतन के बाद उन्होंने उसे २०० रुपये दे दिए ताकि वो वापस अपने घर को जा सके | बाद में मेरे मित्र ने हम सब अपनी अपनी राय मांगी की उन्होंने ठीक किया या ग़लत |
हो सकता है वो आदमी उनसे झूठ बोल रहा हो , लेकिन अगर वो सच बोल रहा होगा तब क्या ? हम इस चक्कर में क्यूँ पड़ते हैं की वो झूठ बोल रहा है या सही, हमें बस ये देखना चाहिए की हम उसकी मदद कर सकते हैं की नही | अगर हम इस काबिल हैं की हम उसे कुछ पैसे दे सके और इससे हम पर कोई असर ना पड़े , तो हमें बेझिझक उनकी मदद करनी चाहिए |
इन सब स्थिति में मुझे बस रहीम के दोहे याद आ जाते हैं...
"रहीम वे नर मर चुके, जे कहू मंगन ची
उन्ते पहेल वे मुई, जिन मुख निकसत नही "
बहुत सीधी और सरल से बात है अगर आप दिन में ५ लोगो की ही मदद करते हैं और उनमे से अगर १ ही को उस पैसे की जरुरत होती है , तब भी आपकी मदद व्यर्थ नहीं जाती हैं | कम से कम उस १ आदमी को कुछ लाभ तो होगा और अगर आप किसी को नहीं देते तो वो एक आदमी भी उस लाभ से वंचित रह जायेगा | और यहाँ सोचने वाली बात यह है की आदमी तब ही मांगता है जब उसे जरुरत होती है | वैसे मैं अपने इस वाक्य से पुरी तरह सहमत नहीं हूँ | कुछ दिन पहले ही मुझे एक ऐसा मेल मिला था जिसमे जिक्र किया गया था की कैसे कुछ भिखारी भीख मांग कर के ही लखपति बन चुके हैं और अभी भी भीख मांग रहे हैं | पर यकीन मानिए इनकी संख्या गिनती मैं होगी | शास्त्रों में भी कहा गया ही की हमें कुछ न कुछ दान करना चाहिए | बस अपनी हैसियत के अनुसार शुरु हो जाइए |
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जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
11 hours ago