Monday, January 12, 2009

साप्ताहांत बंगलोर में - एक मैक्रो पोस्ट

काश ये समय यहीं रुक जाता , काश मैं कुछ लम्हे और यहाँ बिता सकता | इसबार भी मैं साप्ताहांत मनाने बंगलोर गया हुआ था | वो शीतल हवाएं , गुनगुने धुप मुझे अपने शहर की याद दिला देते हैं | अन्तर सिर्फ़ इतना है की बंगलोर में नॉर्थ इंडिया जैसा कडाके की ठण्ड नही पड़ती है | यहाँ की शीतल हवा में अजीब सी ताजगी रहती है , आपका रोम रोम प्रफुल्लित महसूस करता है | यहाँ आने पर मुझे लगता है की मैं प्रकृति के करीब आ गया हूँ | सारी थकान ख़ुद - ब - ख़ुद गायब हो जाती है |

कहते भी हैं की अगर अपने आप में नई ताजगी , नई स्फूर्ति पैदा करना चाहते हैं तो प्रकृति के करीब जाइए | बंगलोर तो ऐसा शहर है जो प्रकृति की गोद में बसा हुआ है | अब तो काफ़ी कुछ बदल गया है , लेकिन अब से कुछ साल पहले करीब १९९७ में मैं पहली बार बंगलोर गया था | उस वक्त आपकी नज़र जिधर जाती उधर आपको हरयाली ही हरयाली दिखती | अब तो केवल कंक्रीट के जंगल जयादा दीखते हैं | जिस निर्बाध तरीके से पेड़ों की कटाई चल रही है वो दिन दूर नही जब चारो तरफ़ सिर्फ़ कंक्रीट के जंगल ही दिखेंगे |

लेकिन अभी भी ये शहर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है | इस शहर के बारे में कभी आराम से कुछ चित्रों के साथ लिखूंगा | बस अभी जल्दी जल्दी ऑफिस के काम निपटा लूँ |