Friday, December 26, 2008

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है

फिर कुछ याद आने लगा है...पुरानी यादें यूँ ही ताज़ा हो गई...लगा जैसे कल की ही बात हो...सबकुछ कितना अच्छा था..कितने अच्छे थे वो दिन..काश वो दिन फिर से लौट कर आ जाते..काश मैं फिर से उनके हाथो में हाथ डालकर दूर तलक जाया करता.....कुछ भी तो नही पता था..हम बस अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे...दिल बैठा जा रहा है...और मेरा मन बार बार ये गाना गुनगुना रहा है.....

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है,
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है,

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून,
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है,

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िंदगी हमारी है,

बेख़ुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’,
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है,

Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh

चलिए आप लोग भी ये गाना सुनिए....और जरुर बताये की आपको कैसा लगा ये गाना....

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