Saturday, February 21, 2009

खुली आँख से सपना देखा

हमारी एक मित्र है , और वो बहुत अच्छा लिखती हैं ! आज ऐसे ही बात बात मैं पता चला की उन्होंने अपना ब्लॉग भी शुरू किया था पर लिखना छोड़ दिया और काफ़ी महीने से उन्होंने उस पर कुछ नही लिखा है | उनकी रचना इतनी सुंदर, इतनी भावुक होती हैं की मत पूछिए | मैंने जितनी भी उनकी रचना पढ़ी है सब जीवन की यतार्थ को दर्शाती हैं | उनकी ही एक रचना मैं यहाँ आप सब के सामने पोस्ट कर रहा हूँ....


आज फ़िर मैंने खुली आँख से सपना देखा
दिल ने फ़िर दूर कहीं आज वो अपना देखा
धुंधला था सब कुछ पराया था जहाँ
मेरा कुछ भी नही कुछ और ही पाया था वहाँ
अकेले रास्ते गलियाँ गुम से गुमसुम मुकाम
कोहरे की बाहों मे लिपटे हुए किस्से तमाम
अँधेरी स्याह थी दुनिया -- खामोशी बसी थी
क्यों ऐसे मोड़ पर सपनो की दुनिया आ रुकी थी?
मुड़ के देखा-- मुझे यादें मिली कुछ-- भूल से
पुरानी जर्जराती और सनी सी धूल से
कई सपने मिले जो हर तरह गुमनाम थे
बड़े छोटे अधूरे से कुछ ख़ास और आम से
चाँदनी भी अलग थी हर तरफ़ छनती रही
कहीं मकडी के जालों मे फंसी कसती रही
दिल मे थी एक खुशी कुछ भूला सा मिल जाने की
और थी एक चुभन जो सब खोया -- याद आने की
दिल था बोझिल -- अचानक राह आगे खुल गयी
सपनो की दुनिया मे मंजिल नयी फ़िर मिल गयी
इन्ही यादों से मै- मै हूँ नही कोई और है
उड़ान बाकी है मेरी -- अभी आसमा कई और हैं
ख्वाब के रास्ते मैंने रुक के ख़ुद को फ़िर देखा
अपनी आंखों से अपनी रूह का आईना देखा
आज फ़िर मैंने खुली आँख से सपना देखा
दिल ने फ़िर दूर कहीं आज वो अपना देखा