Wednesday, December 31, 2008

भयविहीन रामलाल ताऊ चुरट सुलगाते हुए ...

सबसे पहले नव वर्ष की आप लोगो को हार्दिक शुभकामनाये | नए साल का खुले एवं प्रसन मन से स्वागत कीजिये | नया साल आपको ढेर सारी खुशिया दे.....
अब ना चाहते हुए भी नए साल में कुछ जरुरी काम अभी से दिखने लगे हैं....

पहला तो ताऊ को खोजना है.....हाँ भाई अब ये बहुत जरुरी हो गया की हम ताऊ के बारे पता लगाए की आख़िर ये जनाब है कौन?

दूसरा हमें ऊब से बचकर भय विहीन समाज की रचना करनी है...और साथ में चुरट सुलगाना तो बिल्कुल नही भूलना है...

तीसरा रामलाल की तरह ना बनते हुए हमें अपने लिए एक ऐसा आशियाना बनाना है जहाँ कोई प्यासा ना रहे ..जहाँ हमें किसी आतंक का सामना ना करना पड़े....जहाँ सब खुश हो ......

नए साल में हमें नई कसमे भी खानी है , वो कसमे हमें अपने आपको को सुधारने के लिए होने चाहिए ना की नेता ,अधिकारी और क़ानून के लिए | ननरी,पनरी के चक्कर में ना पड़ते हुए हमें कुछ लम्हे नव वर्ष को कैसे आनंददित , एअम खुशहाल बनाया जाए के लिए निकालने चाहिए.....

कभी कभी मूर्ख एवं भुक्कड़ बने रहने में भी फायदा होता है....नए साल में कभी ये भी बन कर देखियेगा....कुछ सवालातें तो कभी पीछा नही छोड़ती , उनको भूलते हुए हमें नए साल का अभिनन्दन करना चाहिए.....

बिगड़ते रिश्ते को संभ्हालना , नए रिश्ते को बनाना , और रिश्ते को अच्छे से निभाना ये हमारा लक्ष्य होना चाहिए ...चलिए एक बार फिर आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

हम सुधेरेंगे जग सुधरेगा .......

जाने क्यूँ ऐसी सवालात ने दिल तोड़ दिया...??

कुछ सवाल यूँ ही ना जाने कहाँ से घुमक्कड़ की तरह मन में आकर बैचेन से कर जाते है....ना तो आप उन्हें निकाल पाते है और ना ही आप उन सवालों से सहज हो पाते हैं....कुछ यादें कभी भी किसी भी कोने से झाँक कर चली जाती है , और पीछे छोड़ जाती है , अनसुलझे सवाल .....

यादों के पुलिंदों में अक्सर मैं उलझ जाता हूँ और हमेशा की तरह किसी साख के दरख्त पर अपने आपको अकेला महसूस करता हूँ....और फिर कुछ पंक्तियों को सहेजकर उसे अपनी मनोव्यथा के अनुसार आकृति देने की कोशिश करने लगता हूँ...

कुछ तो दुनिया के इनायत ने दिल तोड़ दिया
दिल तो रोता रहे और आसू ना बहे,
इश्क की ऐसी रवायत ने दिल तोड़ दिया ,
वो मेरे हैं मुझे मिल जायेंगे , आ जायेंगे
ऐसे बेकार खयालात ने दिल तोड़ दिया ,
आपको प्यार था मुझसे , की नही था मुझसे ,
जाने क्यूँ ऐसी सवालात ने दिल तोड़ दिया...

Tuesday, December 30, 2008

आतंक , मंदी, उम्मीद तथा सपने

चलिए वक्त आ गया है की हम पुराने साल को अलविदा कहे और नए साल का गरमजोशी के साथ स्वागत करे |काफ़ी कुछ अच्छा नही रहा इस बीतते हुए साल में | अगर संझेप में बात करे तो आतंकवाद से लेकर मंदी की मार ने देश की जनता का काफ़ी दोहन किया | लेकिन वक्त किसी के लिए रुकता नही है , बस चलते जाता है और चलने का नाम ही जिंदगी है | ऐसा नही है की इस बीते साल में हमारी कुछ उपलब्धियां नही रही | अगर गिनाया जाए तो बहुत है , जिसमे मुख्यत: चंद्रायण का सफल मिशन भी शामिल है |

अगला साल कैसा होगा ये कहना तो बहुत मुश्किल है पर हाँ कुछ ऐसे बातें जरुर है जो हमारे चेहरे पर मुस्कान बिखेर सकती है |
१) महंगाई दर में और गिरावट देखने को मिल सकती है |
२) पेट्रोल और डीजल के दाम और गिर सकते है |
३) होम लोन और सस्ता होने जा रहा है | कुछ बैंको ने तो ०.७५% तक ब्याज दर घटा दी है |
४) हवाई किराया सस्ता होने जा रहा है | जेट ने अपने किराए में घटोतरी कर दी है , अब किंग फिशर करने जा रहा है |
५) शेयर बाज़ार में उछाल देखने को मिल सकती है |
६) दूसरे आर्थिक पैकेज जल्द आने की संभावना है |
७) अगले साल चुनाव है इसलिए हम सरकार से लोक-लुभावने बजट की उम्मीद कर सकते है |
८) सरकारी छेत्रो में और नौकरियों का इजाफा हो सकता है | कुछ बैंको ने पहले ही रिक्त सथानो की पूर्ति के लिए चयन परीक्षा की घोषणा कर दी है |

सपने देखने में कोई बुराई नही है | उम्मीद पर ही दुनिया कायम है, और हम तो भाई हमेशा सकारात्मक सोच रखते है | हाँ अब भी कुछ चीजें है जो अगले साल भी ना बदले | उनमे सबसे प्रमुख है ये मंदी का महादानव और इससे प्रभावित ये प्राइवेट सेक्टर | हमारी सरकार कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन इस मामले में हम अमेरिका पर बुरी तरह निर्भर है | इस साल अब तक बहुत से लोगो की नौकरियां जा चुकी है या यूँ कहे की इस मंदी का महादानव ने निगल लिया है और ये शायद अगले साल भी जारी रहे | दूसरे सेक्टर की मैं बात नही करूँगा , चुकी मैं आईटी सेक्टर में हूँ इसलिए मैं इसके बारे में कह सकता हूँ की अगले साल भी इसमे हमें मंदी देखने को ही मिलेगी | इसका सबसे प्रमुख कारण है की अभी भी हमारे देश से आईटी सेक्टर को काफ़ी कम या यूँ कहे ना के बराबर प्रोजेक्ट मिलता है | और हम प्रोजेक्ट के लिए पश्चिमी देशो पर निर्भर रहते हैं , और जब तक उनकी हालत नही सुधरेगी तब तक हमारी देश की कंपनियों का भी यही हाल रहने वाला है |

चलिए अब वक्त आ गया है की हम पुरानी बातें भूल कर नए साल का खुले ह्रदय से स्वागत करे | नए साल में ज्यादा कुछ नही , हम तो बस इतना चाहते हैं की हमें खुश रहने के लिए वजहें ना ढूँढनी पड़े |

Monday, December 29, 2008

स्टेम सेल बैंकिंग एक चमत्कार


बंगलोर की छुट्टी काफ़ी अच्छी रही..वो वृत्तांत में लिखूंगा...अभी आप लोग जरा स्टेम सेल के बारे में जानकारी ले...
इससे भला अच्छा गिफ्ट आपके अनजन्मे बच्चे के लिए क्या हो सकता है की आप उसे ब्लड , जेनेटिक और immune सिस्टम बिमारी के लिए एक रास्ता दिखा दे की वो कैसे इन सभी बिमारी से लड़ सकता है..अब तो बहुत सारे लोग स्टेम सेल के बारे में जानने लगे हैं...

क्रयो-सेव जो की यूरोप की कंपनी है हाल हे में उन्होंने भारत में अपनी शाखा लॉन्च की है..१० मिलियन इन्वेस्ट करके उन्होंने १० स्टोरेज स्टेम सेल बैंक उन्होंने खोला है....इससे पहले सिर्फ़ दो हे कंपनी इस छेत्र में थे..लाइफ साइंस चेन्नई और रिलायंस लाइफ साइंस...

आख़िर क्या है ये स्टेम सेल?..
स्टेम सेल थेरपी के पास ऐसे छमता है की वो बहुत ही असरदार तरीके से मानव शरीर की बीमारियों को ठीक कर सकता है..इसमे करना क्या पड़ता है की आप अपने बच्चे के स्टेम सेल को स्टेम सेल बैंक में सुरक्षित रख सकते हैं...और भविष्य में इसका उपयोग आप अपने बच्चे की जानलेवा बीमारियों को ठीक करने के लिए कर सकते हैं... इस तरह इसे आप इंश्योरेंस पॉलिसी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं...

उम्बिलिकल कॉर्ड ब्लड स्टेम सेल्स का उपयोग काफ़ी लंबे समय से चला आ रहा है....इसका उपयोग leukaemia, malignant tumours, blood disorders, red cell disorders के निवारण के लिया किया जाता रहा है..अभी फिलहाल ८५ से जयादा बीमारियों के लिए इसपर अध्ययन किया जा रहा है...

स्टेम सेल्स हमारे शरीर के नैचुरल रेपयेर किट हैं..पिछले १० सालो में १०,००० से भी जायदा लोग cord blood stem cell ट्रांसप्लांट्स का उपयोग करके लाभान्वानित हो चुके हैं... अभी फिलहाल कंपनी stem cell storage kit Rs.७५,००० में उपलब्ध करवा रही है तथा एक बार किट ले लेने के बाद ये सेवा कंपनी २१ साल तक जारी रखेगी ..जो कोई भी जोड़ा इसमे इक्छुक है वो कंपनी को प्रसव के दो महीने पहले संपर्क कर सकते हैं..उसके बाद उनके निर्देनुसार आगे का काम करे ..

Friday, December 26, 2008

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है

फिर कुछ याद आने लगा है...पुरानी यादें यूँ ही ताज़ा हो गई...लगा जैसे कल की ही बात हो...सबकुछ कितना अच्छा था..कितने अच्छे थे वो दिन..काश वो दिन फिर से लौट कर आ जाते..काश मैं फिर से उनके हाथो में हाथ डालकर दूर तलक जाया करता.....कुछ भी तो नही पता था..हम बस अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे...दिल बैठा जा रहा है...और मेरा मन बार बार ये गाना गुनगुना रहा है.....

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है,
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है,

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून,
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है,

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िंदगी हमारी है,

बेख़ुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’,
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है,

Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh

चलिए आप लोग भी ये गाना सुनिए....और जरुर बताये की आपको कैसा लगा ये गाना....

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Thursday, December 25, 2008

मानसिक हलचल की हलचले


कल सुबह सुबह ज्ञानदत्त जी का ब्लॉग पढ़ा | पढ़ते ही मानसिक हलचल शुरू हो गई | काफ़ी कुछ पढ़ कर अच्छा लगा ,कुछ पढ़ कर अच्छा नही लगा | अब तक बहुत सारे लोग अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं|

पीडी ने कुछ अच्छे सवाल उठाये | धीरू भाई को उनसे प्रेरणा मिली ,कुश भाई को पढ़ते पढ़ते ऊब होने लगी तो अवधिया जी ने ऊब को खतरनाक की संज्ञा दे डाली| डॉक्टर अनुराग जी ने अपनी बातो को सिलसिलेवार तथा क्रमबद्ध तरीके से रखा और ताऊ ने इसे जीवन की परिभाषा बतायी |

अब कुछ मेरी बातें | अपनी बातें शुरू करने से पहले मैं ज्ञानदत्त जी से कहना चाहूँगा की इस चिट्ठे को अन्यथा न ले | ये बस मेरे विचार है , अगर इससे आपकी भावनायें को ठेस पहुँचती है तो मैं माफ़ी चाहूँगा | अपना समझ कर माफ़ कर दे |

सृजन की प्रक्रिया कितनी भी धीमी और श्रमसाध्य होती हो पर सृजन वही कर सकता है जिसकी उसमे रूचि हो| बिना रूचि के कोई भी सृजन नही हो सकता है , और जहाँ रूचि होगी वहां ऊब नही हो सकती है | हाँ , छनिक ऊब की अगर हम बात करे तो वो मैं मान सकता हूँ , पर वो भी तब आती है जब आप लगातार किसी एक काम को किया जा रहे हैं , और करते करते इतना थक जाते है की कुछ देर के लिए विश्राम चाहते हैं | अगर ये ऊब है तो मुझे इसमे कोई बुराई नही दिखती है |

मैं नई पीढी का हूँ | मुझे कभी अकेलेपन से डर नही लगा | और मैं तो अक्सर अकेले रहने की कोशिश करता हूँ | और जहाँ तक बात है पुस्तकालय में समय काटना की तो अभी अपनी पीढी के सैकडों लोगो को जानता हूँ ,जो पुस्तकालय में ही समय काटना पसंद करते हैं , मैं जिस छेत्र में हूँ उसमे समय काफ़ी मुश्किल से हमें मिल पाता है | बहुत से ऐसे लेख मैंने पढ़े हैं जिसमे एक सॉफ्टवेर इंजिनियर के बारे मैं लिखा गया हो | इसलिए इनकी जिंदगी कैसी और कितनी व्यस्त होती है कहने की जरुरत नही है , फिर भी हमें जब भी मौका मिलता है,प्रेमचंद को पढ़ते हैं और गालिब को सुनते हैं | मैं और मेरे दोस्त कोई भी अच्छी रचना , अच्छी बुक मिस नही करना चाहते , चाहे वो हिन्दी की मधुभुशन दत्ता, हो या फिर काजी जरुल इस्लाम ,या धन गोपाल मुख़र्जी ,या मुकुल केसवन, या राज कमल झा या , विअक्स स्वरुप या , अनीता देसी , या किरण देसी , या दिनकर जी, गुप्त जी, हरिवंश जी , या धर्मवीर जी हो , या निराला जी, हो या प्रसाद जी ,हो या पन्त जी, हो या दीपक चोपडा जी हो...हम इन सभी को पढ़ते हैं | और अगर आप अंग्रेज़ी की बात करे तो "जॉन ग्रशिम, रोबिन शर्मा, जेफ्री अर्चेर , मून, शेकिल, आदि को हम पढ़ते हैं | हमें तो कभी ऊब नही हुई | हाँ एकरसता के शिकार जरुर हुए और हम उसे भिन्न भिन्न प्रकार के साहित्य पढ़ कर दूर करते रहे |

उतेज़ना कौन नही चाहता है? हां हमारी जेनरेशन घिसी पिटी लीक पर चलना नही चाहती है | हम अपना वजूद ख़ुद बनाना चाहते हैं | हम अपना मार्ग,अपना धेय्य ख़ुद चुनना चाहते हैं | हम किसी का अनुशरण नही करना चाहते | और अगर हम ऐसा करते तो आज हम वही होते जहाँ आज से १०० साल पहले थे | हम किसी चीज़ का अनुशंधान नही करते | किसी चीज़ का आविष्कार नही होता | हम आज भी उसी लालटेन युग में जी रहे होते |

आदमी किसी काम से तभी ऊबता है जब उसके जीवन में एकरसता आ जाती है | उसका काम करने में मन नही लगता है | किसी काम से ऊबने के बाद आप उस काम को कभी अच्छे ढंग से नही कर सकते हैं | एकरसता का शिकार होकर आदमी नीरस हो जाता है | और उस नीरसता के साथ सृजन कभी नही हो सकता है | एकरसता का शिकार तो हम भी कई बार हुए हैं | और जहाँ तक मेरी समझ है इस चीज़ से कोई अछुता नही रह सकता है | हाँ गौर करने वाली बात ये है की हम कैसे इस पर अपना आधिपत्य कायम रखते हैं | कैसे इसे हम अपने आपको नीरस बनाने से रोकते हैं | और कैसे इस एकरसता का रसिक की तरह आनंद उठाते हुए सृजनात्मक कार्यो में दिलचस्पी लेते हैं |

जब हम अपनी पीढी की बात करते हैं तो हम वही है जो दिन के १८ - १८ घंटे काम करते हैं उसके बाद भी तरोताजा रहते हैं | उसके बाद भी हम में इतनी उर्जा रहती है की हम अपने कुछ शौको को अमलीजामा पहना सके | ये शौक कुछ भी हो सकते हैं ... ब्लॉग लिखना, अच्छी अच्छी मूवीज देखना , टीवी देखना , साहित्य पढ़ना , लिखना,...आदि आदि..

हम इस दुनिया में सिर्फ़ रहना नही चाहते हैं, जीना चाहते हैं,...हम जान चुके हैं की हमारी जिंदगी बहुत छोटी है और इसी छोटी सी जिंदगी में ही हमें अपने हर अभिलाषा , हर मनोकामना , हर इच्छा को पूरा करना है , हमें कुछ बनना है ...कुछ कर के दिखाना है | और इसके लिए हम समय के मोहताज़ नही होना चाहते है | इस दुनिया में दो ही तरह के लोग होते हैं....
पहला .. जीवन जैसी चल रही है चलने देते हैं , कोई गिला कोई शिकवा नही ...
दूसरा.. जीवन को अपने हाथो में लेते हैं और इसे अपने अनुसार चलाते हैं ..लड़ते हैं ,गिरते हैं लकिन फिर उठ खड़े होते हैं लकिन हार नही मानते ....और मेरा अपना मानना है की नए जेनरेशन के जयादा तर लोग दूसरी जीवन शैली को अपनाते हैं...

मैंने कुश जी और विवेक जी का भी चिटठा पढ़ा...कुश जी के सुझाव गौर करने लायक हैं...और विवेक जी की कविता काफ़ी मस्त हैं...
तो ये थी हमारी यंग जेनरेशन की सोच...जरुर बताएं हमारी सोच कितनी हद्द तक दुरुस्त है...

चलिए आज ऑफिस में जयादा कुछ काम नही था इसलिए ये पोस्ट लिख सका.. २५ से से छुट्टी है और मैं भी चला लम्बी छुट्टी पर...इस लम्बी साप्ताहांत को मैं बंगलोर में मनाऊंगा...
आप सभी को क्रिसमस की हार्धिक शुभकामनाये ....

Wednesday, December 24, 2008

ताऊ ताऊ ताऊ ताऊ ...और केवल ताऊ

कल मैंने ताऊ का पोस्ट पढ़ा...पढ़ कर मज़ा आ गया...बस उसी वक्त मन में कुछ शरारत करने की इच्छा जाग उठी और मैंने आव् देखा न ताव बस लिख दी एक कविता..अब कविता है या नही ये तो आप लोग फ़ैसला करेंगे ..मैंने तो बस लिख दिया .....ताऊ अगर मैंने किसी भी तरह से या इस कविता के माध्यम से आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाया हो तो हमें आप हमारी पहली गलती मान कर माफ़ कर देंगे .....
पहले सोचा की इस कविता को ताऊ के पोस्ट पर ही जाके टिपियाया जाए ....फिर मन में एक लालच हो उठी...सोचा इसे अपने ब्लॉग पर ही प्रकाशित करता हूँ...कुछ हिट्स शायद मिल जाए...और कुछ अच्छे कमेंट्स भी...
नया नया हूँ इस ब्लॉग की दुनिया में इसलिए ऐसी बातें मन में आना स्वाभाविक है.......
ताऊ आपसे फिर अनुरोध है की इसे अन्यथा ना ले..और गलती के लिए माफ़ करें....



एक था ताऊ बड़ा होशियार
शरारत करने में हरदम तैयार
सबको बुद्धू बनाता था वो
अच्छे मजे उडाता था वो,

एक बार एक मास्टर आया
उसने ताऊ को सबक सिखाया
था वो मास्टर बड़ा चालाक
सर पे टोपी हाथ में डंडा
हरदम लेता ताऊ की क्लास ,

अब तो ताऊ बड़ा घबराया
खुराफाती दिमाग को उसने जगाया
कुछ उसने करने की ठानी
अब तो मास्टर को याद आनी थे नानी ,


ताऊ ने चली ऐसी चाल
हो गया मास्टर का हाल बेहाल
बाप बाप कर के वो भागा
फिर से ताऊ का परचम लहराया

Tuesday, December 23, 2008

अबे कितना पिएगा ?


मैंने पीना शुरू ही किया था की वो आ गया ....
अबे फिर से पीने बैठ गया .?
और क्या करूँ यार ?
क्यों कोई काम नही है तेरे को ?
वही तो कर रहा हूँ .

मर जायेगा तू पीते पीते .वही तो चाहता हूँ ...
क्यूँ पीता है इतना ? किस बात का गम है तुझे ,सब कुछ तो है तेरे पास .फिर क्यूँ ?
इसी बात का तो गम है यार .मेरे पास सब कुछ जो है ....
मैं समझा नही ..
अच्छा तू बैठ तो सही ..वो बैठ गया ...

अच्छा वो कुनाल को देखो .हाँ पता है ..उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे छोड़ दिया है इसलिए पी रहा है डरपोक साला .....

और वो नरेन्द्र को देख रहा है हाँ हाँ पता है उसकी जॉब चली गई है , यार बहुत बुरा हुआ है उसके साथ इसलिए शायद पी रहा होगा ....

लेकिन तू कहना क्या चाहता है .तेरी तो गर्लफ्रेंड भी है और मस्त सा जॉब भी है ....


अरे पूरी बात तो सुन ले ..अच्छा वो नारायण को देखो हाँ हाँ उसे भी जानता हूँ ..बेचारे की शादी नही हो रही है शायद उसी का गम होगा ...

अच्छा उन अंकल को जानते हो ..हाँ बे ..ये तो अपने शर्मा जी है .बेचारे की बीवी उसे बहुत पीटती है ...

अच्छा छोड़ इन लोगो को...वो देख सूट बूट में कार्नर में जो बैठा हुआ है जानता है उसे ...वो कौन है ? अच्छा अच्छा ये वही तो नही, जिसकी बेटी बहुत सुंदर थी .अपने गली में दाहिनी तरफ़ से चौथा मकान . ..हाँ बे वही है ...तेरी याददाश्त तो मस्त है .अरे यार कैसे भूल सकता हूँ उसको ...बहुत सुंदर थी वो यार.. हाँ हाँ पता है .. तू उसपर मरा करता था.. लट्टू था तू उसपर...और तेरी वजह से कितनी बार मैं मार खाते खाते बचा था..छोड़ न यार..शर्मिंदा मत कर...
अपने कॉलेज के किसी लड़के के साथ भाग कर उसने शादी कर ली थी .क्या ? सही में ? हाँ बे ....

कुछ देर के लिए दोनों चुप . ....फिर उसने भी अपने लिए ड्रिंक मंगाया...

अब पूछने की बारी मेरी थी .तू क्यूँ पी रहा है ? तेरा भी तो मस्त जॉब है, गर्लफ्रेंड है ....फिर क्यूँ ?

नही यार बस मूड ऑफ़ हो गया ....क्या ? मूड ऑफ़ हो गया ?वो लड़की भाग गई इसलिए ?
तेरी तो कभी उससे बात तक नही हुई थे ?फिर क्यूँ तेरा मूड ऑफ़ हो गया ?वो तो तुझे जानती तक नही होगी ?
बस यार कुछ अच्छा नही लगा सुनके ...

ऊपर कही गई बातो को आप व्यंग्य में ले सकते हैं ....पर क्या हम सच में किसी के दुःख से दुखी होते हैं ,शायद नही ...हमें हमदर्दी तो होती है पर शायद दुःख नही होता ...और यूँ कहे की हम अपने दुखों में ही इतने उलझे रहते है की दुसरे का दुःख हमारी समझ में नही आता है ...

क्या कभी आपने सोचा है की हम किस ओर बढे जा रहे हैं ..ये दुनिया किधर जा रही है ...लोगो के पास एक दूसरे के लिए वक्त नही है ...एक अजीब सी मृगतृष्णा चारो ओर फैली हुए है ...लोग भाग रहे हैं ...दौड़ रहे हैं ...पर क्या हासिल कर रहे है... ...क्या कोई खुश है ?

Saturday, December 20, 2008

मर कर भी जिन्दा रहता है

कहते हैं प्यार कभी नही मरता है
मर कर भी जिन्दा रहता है
शायद सही ही कहते है
इसलिए ये एहसास आज भी होता है


कमबख्त क्यूँ जिन्दा है ये
मैंने तो कभी नही चाहा
क्यूँ मरता नही ये एहसास
दूर जाके फिर क्यूँ आता है ये पास


हसरते अधूरी रह गयी
अरमानों की बलि चढ़ गई
जाते हुए उन्हें बस देखते रहे
हाथ तो बढाया पर रोक न सके


कहती थी खुदा की यही मर्ज़ी है
खुदा ने भी दगा किया मेरे साथ
अपनी मर्ज़ी उन्हें बता दी और
मेरी मर्ज़ी कही दफना दी


तड़पने का अंदाज़ भी अब बदल रहा है
चेहरे पर हसीं पर दिल जल रहा है
वो लम्हे भुलाए न भूलती है
आगे निकल गए हैं हम ,
पर वो यादें पीछा नही छोड़ती है

Thursday, December 18, 2008

पासवर्ड चोरी हो सकता है

अगर आप इन्टरनेट एक्स्प्लोरर इस्तेमाल कर रहे हैं तो कोई भी आपका पासवर्ड हैक मतलब की चोरी कर सकता है....इन्टरनेट एक्स्प्लोरर जिसकी निर्माता माइक्रोसॉफ्ट है उसने ख़ुद ये बात स्वीकार की है और अपील की है कि लोग तब तक इस ब्राउजर का उपयोग ना करें जब तक वो कोई समाधान ढूँढ नही लेती ....

अभी तक दस हज़ार वेबसाइट इससे संक्रमित हो चुके है...माइक्रोसॉफ्ट के लोग एक पैच बनाने में जुटे हुए हैं जिसे हमें अपने सिस्टम में चलाना पड़ेगा ....उसके बाद ही हमारा आई डी और पासवर्ड सुरक्षित हो सकेगा ...अभी तक जो भी केस सामने आया है वो जयादा तर उसमे जयादा यूजर IE7 इसतेमाल कर ते थे ..ऐसा क्यूँ होता है इसके बहुत सारे कारण है.. वो कभी मैं आराम से लिखूंगा ...

अभी तो बस आपलोगों से निवेदन है कि आपलोग इन्टरनेट एक्स्प्लोरर ना इस्तेमाल करे ...आपके पास दूसरे विकल्प भी हैं ..जैसे....

Google Chrome(recommended)
Mozilla Firefox,
Opera....

बाक्सिंग ? ये क्या होता है ? क्या ? गेम है ये ? गेम का मतलब तो क्रिकेट होता है न जी ..

बाक्सिंग ? ये क्या होता है ? क्या ? गेम है ये ? गेम का मतलब तो क्रिकेट होता है जी ...
क्या ये भी गेम है ?अच्छा होगा मुझे क्या ? पर मुझे क्यूँ बता रहे हो ये सब ?
अच्छा अच्छा तुम ये गेम खेलते हो क्या ?क्या कहा तुम बॉक्सर हो ? अच्छा अच्छा जैसे क्रिकेटर वैसे बॉक्सर ..
क्या कहा अभी अभी वर्ल्ड चैंपियनशिप मैं पदक जीत कर आए हो ? लेकिन न्यूज़ में तो कुछ नही देखा मैंने ..तुम झूठ बोल रहे हो ..ऐसा हो सकता है क्या , वर्ल्ड बाक्सिंग चैंपियनशिप जीत कर आओ और तुम्हारा स्वागत हो ?

यही हुआ है .ऊपर की लाइंस मेरे अन्तर मन के बातें है ...अब जरा हमारे बाक्सिंग चैंपियंस जो की वर्ल्ड बाक्सिंग चैंपियनशिप से पदक ले कर आए हैं , की हालत देखिये ...कहीं चर्चा नही है, अरे जनता की छोडिये बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया तक को उनकी सुध - बुध नही है . एअरपोर्ट पर उनके स्वागत करने के लिए कोई नही था... वो तो भला हो उन टैक्सी वालो का जिनलोगों ने उन्हें घर तक छोडा...हाँ जी बोक्सिंग असोसिएशन ने एक कार तक नही भेजा उनके लिए .

हमारे देश में क्रिकेट को छोड़कर और गेम का कमोबेश यही हाल है ...पदक जीतने के बाद भी उतना सम्मान नही मिलता है ..कोई पूछता तक भी नही है ...कोई न्यूज़ तक नही बनता ...नही नही ये न्यूज़ जरुर बनता है की उनका सम्मान होना चाहिए ..ऐसे में हम ओल्य्मपिक में पदक जीतने का
हम सपना देखते है , वाह रे हम ....जब कोई सम्मान मिले शाबाशी मिले तो कोई क्यूँ खेले ये गेम ...पैसे की तो मैं चर्चा तक नही कर रहा ....मज़े की बात तोये है की यही मीडिया, यही लोग जम के फटकार लगाते है जब हम ओल्य्मपिक में कोई पदक नही जीत पाते है.....

यार अगर थोडी से शाबाशी दे दोगे तो कोई क्यूँ नही खेलेगा ...हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नही है...
चलिए कम से कम आप उन्हें शाबाशी दे दीजिये ...

Wednesday, December 17, 2008

वार्तालाप प्रभु से...


हे प्रभु आज आपसे कुछ मांगने आया हुं...(मन में- वो तो हमेशा ही मांगता रह्ता हुं..)
नहीं प्रभु आज कुछ खास है...तंग आ गया हुं इस दुनिया से प्रभु....
चलो आपका जायदा समय नहीं लुंगा...बहुत लोग हैं कतार में.... प्रभु चुप हैं....

प्रभु मै चेन्नैइ से उब चुका हुं...प्रभु चुप हैं
मतलब प्रभु मै कम्पनी छोरना चाहता हुं....प्रभु चुप हैं...
कहीं भी भेज दो प्रभु बस चेन्नैइ में नहीं रहना है... प्रभु चुप हैं...

प्रभु इतने सारे दोस्त हैं मेरे फिर भी मैं अकेला हुं...कुछ करो ना...प्रभु चुप हैं...
प्रभु मैनें बहुतों को प्यार दिया...अब चाहता हुं मुझे भी कोई प्यार करे....प्रभु चुप हैं...
(मन में.....प्रभु मैं सुन्दर बालाओं की बात कर रहा हुं)

प्रभु बस में धक्के खा खा के तंग आ गया हुं ....एक अपनी गाडी दिला दो ना...प्रभु चुप हैं...
प्रभु नया नया ब्लाग लिखना शुरु किया है..लेकिन कोई पढ्ता नहीं ..कुछ करो ना...प्रभु फिर भी चुप हैं...
अगर पढ्ते भी हैं तो कोई टिप्प्णी नहीं करता....कुछ करो ना...प्रभु फिर भी चुप हैं...
प्रभु सब धाखड लेखक हैं.....बहुत अच्छा लिखते हैं..मुझे भी उन जैसा बना दो ना......प्रभु फिर भी चुप हैं...


प्रभु मैं ज्यादा नहीं मांग रहा...ये सब तो मूलभूत आवश्कयता है....प्रभु फिर भी चुप हैं...
प्रभु कब तक खामोश रहोगे...कुछ तो बोलो..प्रभु फिर भी चुप हैं...

अच्छा अच्छा समझ गया प्रभु...समझ गया.....जय हो..प्रभु की जय हो....

आप नहीं समझें..........

मौनं स्वीकारणम लक्छ्णं.....प्रभु अभी भी चुप हैं...
अर्थात मेरी सारी मागें पुरी हो गयी.......शत शत नमन प्रभु....शत शत नमन प्रभु....





Tuesday, December 16, 2008

ठक ठक...कही भूत तो नही ....(भाग दो )

रात के १२ बजे....अभी तक कोइ हलचल नहीं हुइ थी....मैं और मेरा दोस्त दो जन उस कमरे मे थे जिसमें दस्तक होने वाली थी..मेरे दोस्त को झपकी आनी शुरु हो गयी थी लकिन मैं निडर सिपाही की तरह डटा हुआ था....बस मन मे यही था की किसी तरह उसे पकरना है जिसने हमारी रातों की नींद हराम कर रखी है...

रात के १ बजे...दूसरे कमरे मे क्या हो रहा है कुछ अन्दाज़ा नहीं था...सब सो गये या जगे थे ये भी नहीं पता था...खैर मै जगा हुआ था और पुरे जोश के साथ डटा हुआ था....

तभी कुछ सरसराहट सी हुई...लगा की कोई हमारे दरवाज़े की तरफ़ आ रहा है...मै सतर्क हो गया..वो आवाज़ और पास आती गयी......मेरे दोस्त जो की दूसरे कमरे मे थे उन्हे ये सुनायी दे रहा था की नहीं मुझे कोई जानकारी नही थी....वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी थी.... लगा की दरवाज़े के पास आके कोई रुका हुआ है....

अब डर लगना शुरु हो गया था....मेरा मन कह रहा था कि मै दरवाज़ा खोल दू पर शरीर साथ नहीं दे रहा था.....धप्प धप्प....जैसे ही उसने दरवाज़ा खट्खटाया मैने बिना विलम्ब किये हुए दरवाज़ा खोल दिया.....एक सेकेंड की भी देरी नहीं हुई थी..

दरवाज़ा खोलते ही मै हक्का बक्का रह गया था....सामने कोई नहीं था......ये कैसे हो सकता है मैने अभी अभी आवाज़ सुनी थी.....तब तक मेरे बाकी दोस्त लोग भी बाहर आ गये थे..आवाज़ उनलोगों ने भी सुनी थी..पर बाहर कोई नही था........

उस सारी रात हममे से कोइ सो नहीं सका...कहीं ये भूत वूत का चक्कर तो नहीं है, मेरे एक दोस्त ने कहा....सभी उसके तरफ़ घूर घूर कर देखने लगे...अभी तक ऐसी बातें किसी के दिमाग मे नहीं आयीं थी....हमारे सोचने की दिशा अब बिल्कुल बदल गयी थी....इतना तो हमने मान लिया था कि कुछ अप्राक्रतिक घटित हो रहा है..पहली बार मैने सब की आंखों में डर देखा था...हम ये घर छोरना भी नहीं चाहते थे...काफ़ी अच्छा और काफ़ी मेहनत से मिला था ये घर....तो फिर हमने एक और रात जागने का फ़ैसला किया और इसबार हमने बरामदे मे सोने का फ़ैसला किया..

दिल्ली की उस सर्दी में बाहर बरामदे मे सोना अपने पैर पर कुल्हारी मारने जैसा ही था....मरता क्या नहीं करता...धीरे धीरे रात ढ्लने लगी थी..हम सभी दोस्त एक साथ उस अन्ज़ाने शख्स का इन्त्ज़ार कर रहे थे जो कि था भी कि नहीं पता नहीं...ज्यों ज्यों रात गुजरती जा रही थी हमारी दिलों कि धड्कन बढ्ती जा रही थी...तभी हमे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है..हम सभी सजग हो गये...लेकिन इस बात को ५ मिनट हो गये और कोइ नहीं आया... सारी रात हमे कई बार एह्सास हुआ कि कोई आ रहा है पर कोई नहीं होता था....

पुरी रात बीत गयी और कुछ नही हुआ...मेरे दो दोस्तों को बुखार हो गया उस सर्दी के कारन...हमने सोचा कि अब अगर ये वाक्या दुबारा हुआ तो हम घर बदल लेंगे....लेकिन ये घटना दुबारा फिर कभी नहीं हुई....

आज भी जब कभी वो रातें याद आतीं हैं तो एक अजीब सी सिहरन सी हो जाती है...मेरी दिल्ली कि डायरी में ऐसे बहुत सारे पन्ने है जो मै आपलोगो के साथ बाटुगां...

ठक ठक...कही भूत तो नही ....

तभी कुछ सरसराहट सी हुई...लगा की कोई हमारे दरवाज़े की तरफ़ आ रहा है...मै सतर्क हो गया..वो आवाज़ और पास आती गयी......मेरे दोस्त जो की दूसरे कमरे मे थे उन्हे ये सुनायी दे रहा था की नहीं मुझे कोई जानकारी नही थी....वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी थी.... लगा की दरवाज़े के पास आके कोई रुका हुआ है....


बात उन दिनो की है जब मैं दिल्ली मैं था..करीब २ साल हो चुके थे दिल्ली मे..मुझे शुरु से ही दिल्ली काफ़ी अच्छी लगी थी..सबसे मस्त तो मुझे यहां की सर्दी लगती थी..और वो समय भी सर्दी का ही था..हम पांच दोस्त साथ मे रह्ते थे...हमने एक नया flat किराये पर लिया था...और अभी मुश्किल से २ से ३ सप्ताह हुए थे इसमे आये हुए....कुछ अजीब सा लग तो रहा था पर हमने कभी उतना ध्यान नहीं दिया था...
लेकिन पिछ्ले २-३ दिनो से कोइ रात मे आकर हमारे दरवाजे पर दस्तक देता और जब हम दरवाजा खोल कर बाहर आते तो कोइ नहीं दिखाइ देता....पहले तो हमें लगा कि बगल वाले flat के बच्चे शरारत कर रहे हैं...पर सवाल यह था कि इतनी रात गये भला वो क्युं परेशान करेगें...हमारे appartment मे कुल १२ flat थे....हमने सोचा कि उन्हीं मे से कोइ परेशान कर रहा होगा....इसलिये हमने २-३ दिनो तक इसपर ध्यान नहीं दिया...लकिन जब ये रोज कि बात हो गयी तब हमे लगा कि अब तो कुछ करना परेगा...और हमने रात भर जगने का निश्च्य किया...

हमारे flat की बनावट कुछ इस तरह थी की....हमारे flat के २ रूम के दरवाज़े बाहर बरामदे मे खुलते थे..लेकिन दस्तक हमेशा एक ही दरवाज़े पर होता था...इसलिय हम ३ लोग दुसरे कमरे मे चले गये और बाकी २ लोग दस्तक वाले कमरे मे चले गये.....हमारा इरादा यह था कि जब दस्तक होगी तब दूसरे कमरे से लोग निकल कर उसे धर दबोचेंगे.....

रात के ११ बजे ....अभी तक कुछ नहीं हुआ था....बाहर रात की कालिमा फैली हुई थी...दूर दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था...बीच बीच मे कुत्ते की भौकने की आवाज़ सुनायी देती थी.....हम सभी चुपचाप दरवाज़े से चिपक कर बैठे हुए थे.....और दस्तक होने का इन्तेज़ार कर रहे थे.....

क्रमश:

Monday, December 15, 2008

काश हम इश्क ही ना करते

ये कविता मैंने तब लिखी थी जब जीवन से काफ़ी उदास था..समझ में नही आ रहा था की अब मैं क्या करूँ ..खैर वक्त बहुत बड़ा मलहम होता है ..चलिए आपलोग कविता पढ़ें और हमें जरुर बताएं आपलोगों को कैसी लगी


काश हम इश्क ही ना करते
ना करते किसी से प्यार
ना होती आँखों से नींद गायब
ना होती जेहन में उनकी याद ..

वो तो चले गए दामन छुरा कर
सारी खुशियों को समेटकर
सारे सपनो को छोरकर
सारे रिश्ते को तोड़कर

आलम अब है ये अपने जीवन की
बंद गली में रास्ता ढूँढ रहा
न जाने किधर बढ़ा जा रहा
अब भी शायद किसी की बाठ जोह रहा

ये मन है की नही मानता
पर ये दिल है सब जानता
मन का क्या यूँ ही तड़पेंगे
आस लगा के यूँ ही रोयेंगे
ए मन एक बार दिल से तो पूछ ले
अकेला चला जा रहा एक बार पीछे तो देख ले
ना कर उनको याद , ना कर किसी से फरियाद ...
मान ले दिल की बात और हो जा दिल के साथ ...

Saturday, December 13, 2008

पाण्डेय जी vs पान्डी जी

"सर तो वो उपर नीचे ऐसे  कर रहा था जैसे कोइ कसाइ बकरा  हलाल करने  का इन्त्ज़ार कर रहा हो"...और  मन ही मन सोच रहा हो आ जा बेटा..बहुत दिनो से तेरा इन्तेज़ार था.....

ये उन दिनो की बात है जब मैने पहली बार नौकरी join की थी..शुरुवात मे २ महीने का training था..उसके बाद company मे joining थी...और ये उपरोक्त बाते मेरे दिमाग मे तब आयी थी जब मैने अपने PM को पहली बार 
देखा था.....वो २ महीने मैने कितनी मस्ती की मत पूछिये...वो फिर कभी विस्तार मे लिखुगा....२ महीने के बाद company मे आया था...

पहला दिन induction program था...उसि दिन कुछ higher official से भी मिला...मेरा PM उस दिन छुट्टी पर 
था..इसलिय उस दिन सिर्फ़ उस्सेय फोन पर हमारी बात करयी गयी ....मेरे PM के अन्दर कुल ५ लोग थे...उसी दिन हमे पता चला की मेरे PM का नाम आनन्द कुमार पान्डे है....

मस्त न...मस्त क्यो? अच्छा अच्छा एक बात मै आपलोगो को बताना भूल गया मैने चेन्नै की एक company join की थी ....और chennai की company मे जहां उतर भारत के लोग मुश्किल से पाये जाते है वहां आपका PM कोइ पान्डे होगा तो खुशी तो होगी ही न...

क्युं था ना मस्त? मै खुश था चलो कोइ उतर भारतीये अपना PM है...कभी कभी तो हिन्दी मै बात होगी ही....पहला दिन  तो कुछ नही हुआ ...६ कब बज गया पता ही नहिं चला...वो प्रथम और आखिरी दिन था जब मै ६ बजे company से निकल गया था.....

दूसरा दिन मै ९ बजे office पहुच गया था..अरे भाइ अपनी छवि बनानी थी ना...इसलिय बिल्कुल समय पर पहुच गया था...काम PM के आने के बाद ही पता चलता की क्या करना है..?इसलिय PM का इन्तज़ार करने लगा....इसी बीच lunch का समय  भी हो चला था...हां तो lunch भी हो गया ..लेकिन PM साहेब का कोइ अता-पता नही था..खैर ३ बजे बुलावा आया.....मतलब PM साहेब आ गये थे...उनसे मिलने जाना था....

"सर तो वो उपर नीचे ऐसे  कर रहा था जैसे कोइ कसाइ बकरा  हलाल करने  का इन्त्ज़ार कर रहा हो"...और  मन ही मन सोच रहा हो आ जा बेटा..बहुत दिनो से तेरा इन्तेज़ार था.....

खैर हाइ  हेल्लो हुइ...उसकी अग्रेंज़ी सुनकर कुछ धक्का सा लगा...उतर भारतीये  की अग्रेंज़ी ऐसी तो नहि होती है...फिर सोचा की हो सकता है यहां रह्ते रह्ते ऐसा हो गया हो..फिर उसे तमिल बोलते भी सुना....लेकिन यार ये तो पान्डेय है...पान्डेय तो पक्का  उतर भारतीये होते है....चलो तमिल भी सीख गया होगा..

office क दूसरा दिन और मैन ८ बजे निकल office से....PM से project के बारे मै विचार-विमर्श हुआ....क्या 
करना है क्या नहि .....लकिन मेरी उत्सुकता अभी तक बरकरार थी..जानने को बेत्ताब था मै आखिर ये चक्कर क्या है बास ..ये पान्डेय साहब कब से तमिल जैसे हो गये? आखिर ये है कहां के?माज़रा क्या है?बस फिर क्या थ मैने पूछ ही लिया अपने बगल मए बैठे collegue से....और जो सच सामने आया ..

वो ये कि भाइ साहब पक्के तमिल थे...उनका उतर भारत  से दूर दूर तक कोइ रिश्ता नही था....फिर ये नाम क्यु ऐसा है...अब क्या कहुं वो गलती मेरी ही थी..उनका नाम पान्डेय न होकर पान्डी था....इसलिय वो पक्के तमिल थे..और अभि भी  है .कहां जायेगें बेचारे...आज भी मेरा PM वही है..आज भी जब वो बात सोचता हु तो काफ़ी हंसी आती है...

Saturday, December 6, 2008

कुछ खट्टी कुछ मीठी

मैं काफ़ी दिनो के बाद फिर से ब्लॉग लिख रहा हुन्.ये ब्लॉग मैने तब शुरु किया था जब मै कालैज मे  था.
उस समय मैने मुश्किल से 2 या 3 पोस्ट किये होगे॑ ... कॉलेज जीवन काफ़ी  व्यस्त थी ... 
या यू कहे तो मै काफ़ी वयस्त था.  परीक्षा, गर्लफ्रेंड, दोस्त.... मतलब ब्लॉग शुरु तो कर लिया था लेकिन कभी इसे  जारी   नही रख पाया ...पिछले एक या दो महीने से मेरा काफ़ी  मन कर  रहा था की मै फिर से लिख्नना शुरु करु ... फिर से अपने   ख्यालो की दुनिया सजाउ .... समय अभी भी नही मिल पाता है लकिन् अब ऐसा करने के लिए मैं समय  के भरोसे नही रह् सक्ता. .. बस अब मै  लिख्नना चाह्ता हुउ..... 

फर्क बस इत्ना है की पहेले मै कॉलेज  मै  था और अब मै नौकरी कर रहा हू ..  फुर्सत्  तब भी नही थी .. और अब भी  नही है .... लकिन अंतर ये है की अब मै लिखुन्गा और  अपने लिये लिखुन्गा .... 

बस आज के लिये इत्ना ही.. हान् लेकिन अब मै नियमित पोस्ट कऱ्ता ऱ्हुन्गा ...बहुत सारी यादें जुडी हुइ हैं मेरे साथ .. कुछ खट्टी कुछ मीठी ..... और मै ये  सब आप  सबके साथ बाट्ना चाह्ता हुन् जो की कहीं दिल के किसी कोने मै छुपा हुआ है...