Saturday, February 21, 2009

खुली आँख से सपना देखा

हमारी एक मित्र है , और वो बहुत अच्छा लिखती हैं ! आज ऐसे ही बात बात मैं पता चला की उन्होंने अपना ब्लॉग भी शुरू किया था पर लिखना छोड़ दिया और काफ़ी महीने से उन्होंने उस पर कुछ नही लिखा है | उनकी रचना इतनी सुंदर, इतनी भावुक होती हैं की मत पूछिए | मैंने जितनी भी उनकी रचना पढ़ी है सब जीवन की यतार्थ को दर्शाती हैं | उनकी ही एक रचना मैं यहाँ आप सब के सामने पोस्ट कर रहा हूँ....


आज फ़िर मैंने खुली आँख से सपना देखा
दिल ने फ़िर दूर कहीं आज वो अपना देखा
धुंधला था सब कुछ पराया था जहाँ
मेरा कुछ भी नही कुछ और ही पाया था वहाँ
अकेले रास्ते गलियाँ गुम से गुमसुम मुकाम
कोहरे की बाहों मे लिपटे हुए किस्से तमाम
अँधेरी स्याह थी दुनिया -- खामोशी बसी थी
क्यों ऐसे मोड़ पर सपनो की दुनिया आ रुकी थी?
मुड़ के देखा-- मुझे यादें मिली कुछ-- भूल से
पुरानी जर्जराती और सनी सी धूल से
कई सपने मिले जो हर तरह गुमनाम थे
बड़े छोटे अधूरे से कुछ ख़ास और आम से
चाँदनी भी अलग थी हर तरफ़ छनती रही
कहीं मकडी के जालों मे फंसी कसती रही
दिल मे थी एक खुशी कुछ भूला सा मिल जाने की
और थी एक चुभन जो सब खोया -- याद आने की
दिल था बोझिल -- अचानक राह आगे खुल गयी
सपनो की दुनिया मे मंजिल नयी फ़िर मिल गयी
इन्ही यादों से मै- मै हूँ नही कोई और है
उड़ान बाकी है मेरी -- अभी आसमा कई और हैं
ख्वाब के रास्ते मैंने रुक के ख़ुद को फ़िर देखा
अपनी आंखों से अपनी रूह का आईना देखा
आज फ़िर मैंने खुली आँख से सपना देखा
दिल ने फ़िर दूर कहीं आज वो अपना देखा

Thursday, February 19, 2009

क्या देखा है ऐसा कभी ?

कहत्ते हैं काम कोई छोटा बड़ा नही होता बस अपना अपना नजरिया होता है | आप जो कर रहे हैं उसी में खुश रहिये | और इस बन्दे को देखिये ये भी अपने काम में मस्त है ! आपने कभी अपने दुपहिया वाहन को बाहर पार्सल किया है ? अजी तो आज देख लीजिए | आपने बहुत कुलियों को देखा होगा जो भारी से भारी सामान उठाते हैं | पर ऐसा आप पहली बार देख रहे होंगे .........

दुपहिया वाहन सामान्यतः ट्रेन से लोग बेझते हैं | लकिन रात में चलने वाली वोल्वो बस भी इसे ले जाती हैं | लेकिन वोल्वो बस में नीचे स्पेस होता है जहाँ आराम से दुपहिया मोटर वाहन को दाल दिया जाता है | लेकिन अगर जगह ना हो तो .........




















जी हाँ ऐसे .....ये तस्वीर बंगलोर के कलासी पालयम बस स्टैंड की है.....ये बंदा महज़ २० रूपये में ये काम डेली करता है | २०० केजी की गाड़ी को ये ऐसे चढाता है जैसे कोई खिलौना हो....इसका नाम तो मुझे नही मालुम लेकिन आप जब भी कलासिपलाय्म जायेंगे ये आपको जरुर मिल जायेगा |

Monday, February 16, 2009

दर्द भी बढ़ता है सुनाने से ...


पूछ लो तुम भी इस ज़माने से ,
प्यार छुपता नहीं छुपाने से

प्यार दिल में है तो लाओ ज़बान पे ,
आग बढती है ये बुझाने से .

तुम्हें न पाना शायद बेहतर है ,
पा के फिर से तुम्हें गंवाने से .

चलो एक दुआ तो अपनी पूरी हुए ,
मिल लिए अपने एक दीवाने से .

रोये जाते हो , बस रोये जाते हो ,
क्या होगा ये धन लुटाने से .

करो कोशिश की कुर्बतें ही रहे ,
दूरियां बढ़ जाती हैं बढ़ने से .

क्या सुनाएं किसी को राज़ -ऐ -दिल ,
दर्द भी बढ़ता है सुनाने से .



आज हमारे एक मित्र अफरोज (भाई जान ) ने बहुत ही सुंदर सी नज्म हमें भेजा | और हमने इसे यहाँ आप सभी के पढने के लिए पोस्ट कर दिया |

Saturday, February 14, 2009

हिन्दुस्तान या तालिबान (साथ में एक और पहेली ! बूझो तो जाने ?-६ का जवाब ! )

सबसे पहले तो आप लोगो से माफ़ी चाहूँगा की पेहली का जवाब इतनी देर से पोस्ट कर रहा हूँ | कुछ इस कदर व्यस्त हो गया था की आज जाकर मौका मिला है | हाँ पढने का समय मैं निकाल लेता हूँ | इसी बीच बहुत सारी बातें हो गई | मंगलौर पब काण्ड से लेकर , पिंक चड्डी प्रकरण फिर वैलेंटाइन दिन पर उजैन में भाई बहन को पीटना , पुणे में जबरदस्ती शादी करवाना , हरियाणा में एक सब इंसपेक्टर का लड़की को पीटना , रांची में प्रेमी युगल को उठक - बैठक करवाना , और मुंह काला कर देना और पता नही क्या क्या ............उफ़ ........

कहाँ जा रहे हैं हम ? क्या यही सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा है? क्या हम डेमोक्रेटिक देश , लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं ? नही , बिल्कुल नही ? और सबसे अफ़सोस की बात है की इन "श्री राम सेना " , " बजरंग दल " के हिमायती कुछ पढ़े -लिखे लोग भी करते नज़र आते हैं |

और सबसे मजेदार बात तो तब हुई जब श्री राम सेना नही जी इन्हे "रावन सेना या नफरत की सेना " कहना जयादा उचित है , का एक प्रमुख गोवा में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बीच मर मस्ती करता पकड़ा गया | और ये भाई साहब शादी-शुदा हैं | अब क्या कहें ऐसे लोगो को , बस एक ही गाली इनके के लिए उपयुक्त है | न्यूज़ चैनल वालों ने उनकी फोटो तक दिखायी की कैसे वो बीच पर मस्ती कर रहे हैं | और ये चले हैं दूसरों को संस्कृति का पाठ पढाने ..........?

इनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले भी बहुत हैं | लड़कियों , महिलाओं को पीटना कुछ लोगो को इतना भाया की उन्होंने बाकायदा अपने ब्लॉग पर उसके बारे में लिख कर उसका समर्थन किया | सही है , ये लोग कोई और नही बस एक अजीब से कुंठा से ग्रशित हैं | ये ऐसे लोग हैं जो समाज में स्त्री का स्थान सिर्फ़ बिस्तर में और घर की चाहर दिवारी के अन्दर समझते हैं | इसी बीच कुछ महिलाओं ने अपना विरूद्ध एक अनूठे तरीके से जताया , जी हाँ पिंक चड्डी प्रकरण .........क्या हाय तौबा मचाई हमारे कुछ ब्लॉगर भाई बन्धुं ने ........ऐसा लगा जैसे उनकी ही चड्डी छीन ली गई हो.....

अरे हम पुरूष हैं कुछ भी कर सकते हैं ....वो ऐसा कैसे कर सकती हैं ? हँसी आती है ऐसा सोचने वालों की मानसिकता पर | बस इनके लिए एक ही दुआ है ...'भगवान् आपको जल्दी ठीक करे ......" आज काफ़ी न्यूज़ देखा मैंने और सबसे मजेदार अब रहा जब इलाहाबाद में बजरंग दल के कार्य कर्ताओं को दौड़ा दौड़ा के पुलिस ने पीटा | जिस दिन जनता ये काम करने लगेगी , उस दिन ये मुट्ठी भर लोग चोर की तरह सर पर पैर रख कर भागेंगे | और अगर देखा जाए तो ये मुट्ठी भर हे हैं | कहीं ४ लोग तो कहीं १० बस | इससे जयादा कहीं नही थे , और साले सब के सब किराए पर लाये हुए बेरोजगार युवक जिन्हें दिन के १००-५०० दे दो और बोल दो आज वहां हंगामा करना है तो आज वहां तोड़ फोड़ करनी है | इनका क्या है , इनके पास न तो अपनी सोच है , न उदेश्ये , और न ही ये जानते हैं की ये क्या कर रहे हैं | बस इन्हे पैसे से मतलब होता हैं |

लिखने को बहुत कुछ लिख सकता हूँ | बहुत रोष है मेरे अन्दर समाज के उन ठेकेदारो के लिए जो संस्कृति और नैतिकता का ठेका लिए हुए है , जो दुसरे की माँ , बहन , पत्नी की इज्ज़त नही कर सकते वो इस समाज में रहने लायक नही है | दूसरे को नैतिकता का पाठ पढाने से पहले अपने अन्दर झाको | इस मानसिकता से बाहर आने की जरुरत है | स्त्री जाती की सम्मान तथा उनसे उनका अधिकार न छीने ऐसे ठोस कदम उठाने की जरुरत है | वो भी निर्भय होकर इस समाज में घूम सके ऐसे वातावरण बनाने की जरुरत है |


चलिए बहुत हो गया अब आते हैं इस पहेली की विजेता पर....पहेली बहुत ही आसान थी ...........आज कोई नही फ़ैल हुआ सब पास हो गए | इसके बारे में सबने कुछ कुछ बताया | अब मेरे बताने लायक कुछ नही बचा | इस पहेली का कुछ रैंक होल्डर्स इस प्रकार हैं .........

१ ) समीर जी
२ ) सीमा जी
३ ) रतन जी
४ ) अल्पना जी
५ ) पी डी जी
६ ) ताऊ जी
७ ) हिमांशु जी
८ ) राजीव जी
९ ) संगीता जी
१० ) विनीत जी
स्पेशल मेरिट अवार्ड के हकदार हैं : सीमा जी ....हर बार की तरह इस बार भी इन्होने हमें लगभग सारी जानकारी दे दी | इसके अलावा अल्पना जी , नीरज जी , समीर जी ने भी हमें काफ़ी कुछ बताया |

अब जरा विस्तार से देखे की किसने क्या बताया ?

Udan Tashtari said...
जलमहल, जयपुर.

seema gupta said...

JAL MAHAL
Location: Jaipur in Rajasthan, India.
Built By: Sawai Pratap Singh in 1799 AD.
Highlight: Intricate Architecture
When To Visit: October-March

http://tbn0.google.com/images?q=tbn:vT9IjnucS9rE9M:http://www.shubhyatra.com/gifs/jal-mahal-attraction.jpg

Regards


Ratan Singh Shekhawat said...

जलमहल जयपुर
बाकी जानकारी सीमा जी ने दे ही दी है !


Udan Tashtari said...

जबलपुर से बाहर हूँ, इसलिए हिन्दी में जबाब का विस्तार नहीं दे पा रहा हूँ, क्षमा करें:

Much of the Jal Mahal Palace (Water Palace) has subsided under the mud and silt of the lake it used to look over. Cattle and water buffalo graze in the paddocks around the former palace on the Amer Road outside Jaipur.

Jal Mahal was built by Sawai Pratap Singh in 1799 AD in the midst of the Man Sagar Lake as a pleasure spot. It is Jaipur's lake palace surrounded with water. It is built for royal duck shooting parties. The Lake was formed by constructing a dam between the two hills by Sawai Man Singh I. During the winter months one can see a large number of migratory birds at the lake.


seema gupta said...

Introduction to Jal Mahal Palace:
Amongst the Monuments in Jaipur, Jal Mahal Palace stands out as one of the proud monuments that has not lost its old imperial charm and grandeur. This palace is one of the most striking architectural landmarks and is extremely charming. Jal Mahal Palace at Jaipur should not be missed out by the tourists during their tour to Rajasthan.

History of Jal Mahal Palace, Jaipur :
This unique palace was built by Sawai Pratap Singh in the year 1799 A.D. This palace is quite eminent for its complex technique of architecture. It was constructed in the middle of the Man Sagar Lake, as a spot for recreation and pleasure. It was the royal families by whom this palace was used, for the purpose of arranging royal duck shooting parties. The royal families used to take part in these pleasure activities with great zeal and enthusiasm.

Description of Jal Mahal Palace :
The Jal Mahal Palace at Jaipur lies on the way to Amber and it is at a distance of 6.5 km from the beautiful city of Jaipur. There are many memorials of the royal families which the tourists can witness on their way to the palace. The Jal Mahal Palace at Jaipur is strategically placed in the centre of the Man Sagar Lake. It is really exciting to see the first four floors of this splendid building, which are submerged under the waters of the lake. Only the top floor of this beautiful palace is visible to the onlooker. The lake and the palace offer some of the best views that are simply a feast to the eyes.

During the rainy season the beauty of this palace is simply unparalleled as the red sandstone becomes even more dazzling and appealing to the eyes. The initiative of building a dam between two hills was taken by Maharaja Sawai Man Singh I and as a consequence, the lake was formed. The visitors can also witness the varied species of migratory birds that flock to the Jal Mahal Palace, Jaipur each year. Hence this place is a paradise for the birdwatchers as well.

Once in Rajasthan, make sure that a visit to this palace surely features in your itinerary. The most favorable time to visit this palace is from October to March.

Regards

अल्पना वर्मा said...

Jal Mahal Palace, Jaipur
already details aa gaye hain..link bhi diya hua hai..
So, repeat karne ka koi fayda nahi...dhnywaad.


PD said...


जलमहल, जयपुर..
वैसे पता है तुझे? जब जलमहल देखने गए थे, तब उसमे जल ही नहीं था.. ही ही ही... :) और साथ में दीदी कि बिटिया दौड़ दौड़ कर सभी को परेशान किये हुई थी.. :)


ताऊ रामपुरिया said...

भाई मन्नै तो यो जलमहल जयपुर लागै सै.

रामराम.


हिमांशु said...

जल महल के बारे में काफ़ी कुछ कह चुकी हैं सीमा जी. हम भी उसी से इत्तेफ़ाक रखते हैं.

RAJIV MAHESHWARI said...

जलमहल, जयपुर
आमेर जयपुर रोड पर है.


संगीता पुरी said...

बहुत देर से खोला.....जवाब मिल गया आपको....अब कहना व्‍यर्थ ही है।


विनीता यशस्वी said...

Jal mahal, Jaipur...

mujhe iske baare mai mere jaipur ke friend ne bataya tha...


नीरज गोस्वामी said...

ये हमारे शहर जयपुर का जल महल ही है...मकर संक्रांत्री पर यहाँ पतंग बाजी होती थी...कभी इतना पानी हुआ करता था की नाव चला करती थी इस तक जाने के लिए...धीरे धीरे इसमें इतना कचरा जमा हो गया की इसके पास से गुज़रना दूभर हो गया था...बाद में इसे साफ़ किया गया इस के एक सिरे पर पाल बनाया गया और सड़क को चौडा कर के इसका सौन्दर्य कारन किया गया...अब ये एक पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित किया जा रहा है...इसके सामने ही एक पाँच सितारा होटल ट्राईडेंट है. सामने की पहाडियों से अगर इसे देखा जाए तो ये बहुत ही खूबसूरत दिखाई देता है...
नीरज


Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

खैर आपकी पहेली क‌ा जवाब तो सभी गुणीजनों ने दे ही दिय‌ा है, हम तो बस सिर्फ आपके चिट्ठे पर टिप्पणीयों की संख्या मे बढोतरी के लिए ही आए है.


Dev said...

अमित भाई हमसे पहेली वहेली मत पुचा करो यार . पहेली से मुझे बहुत डर लगता है .
धन्यवाद


रंजन said...

ये भी रिकार्ड होगा.. एक भी ्गलत जबाब नहीं..


PN Subramanian said...

अम्बर किले के मार्ग में पड़ता है. जलमहल, जयपुर.


ARVI'nd said...

SAB SAHI HI KAH RAHE HONGE, MAI BHI JAL MAHAL HI KAH DETA HUN


mamta said.
..

हम भी उत्तर दे रहे है बिना किसी का उत्तर देखे हुए कि ये जयपुर का जलमहल है ।


अभिषेक ओझा said...

अब बचा ही क्या है जवाब देने को :-)


राज भाटिय़ा said...

है तो जल महल ही लेकिन जब सब कह रहे है तो जल महल ही होगा, इस लिये अब मान जओ कि यह जल महल ही है,
अब जबाब तो सब ने दे ही दिया, अब मै क्या कहूं
धन्यवाद



Dr.Bhawna said...

अब तो जवाब सब दे ही चुकें हैं पर जब आयें हैं तो अपनी उपस्थिति लगाकर ही जायेंगे...:)


प्रीति टेलर said...

jal mahal ,jaipur.
ham yahan par ghum kar aaye hai...film jalmahal starring jitendra and rekha yahan par hui thi


Atul Sharma said...

सब कुछ सीखा हमने न सीखा पहेली हल करना। और आज सोचता हूं कि क्‍यों न मैं भी पहेली पूछना ही शुरु कर दूं?


आशुतोष दुबे "सादिक" said...

मैंने अपने ब्लॉग का पता बदल दिया है। मेरे ब्लॉग का नया पता है :-
http://hindisarita.blogspot.com


उपाध्यायजी का बहुत बहुत शुक्रिया | उन्होंने मेरी एक गलती बतायी मेरी पिछले पहेली का | आप सही में इनाम के हक़ दार हैं | दरअसल में जो फोटो मैंने रोहतास के किले की लगाई थी वो पकिस्तान में है | लेकिन वो फोटो उस पहेली के उत्तर में पोस्ट किया गया है | मैं अपनी इस गलती के लिए माफ़ी चाहता हूँ | आपका बहुत बहुत धन्यवाद उपाध्यायजी |


उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

अमित भाई,
हम आपका ध्यान आपके सबसे पहली पहेली रोहतास का किला की ओर खिचना चाहुंगा।

सबसे पहले तो बधाई कि आपने रोहतास के बारे मे बताने का प्रयास किया। लेकिन अफ़सोस कि बात ये है कि जो फोटो आपने डाली है वो फोटो रोहतासगढ़ जो कि कैमुर पहाड़ पर है उसका नहीं है। ये फोटो शेरशाह द्वारा निर्मित रोहतास का किला है को कि पाकिस्तान मे है। क्रुपया अपने पाठकों को ये फिर से संदेश दें कि फोटो मे दिखाया गया किला पाकिस्तान मे अवस्थित रोहतास का किला है।
मैं भी रोहतास जिला का रहने वाला हुं।
http://gaon-dehaat.blogspot.com
अब हमे भी मिलना चाहिए पुरस्कार।

चलिए काफ़ी लंबा पोस्ट हो गया | इसके लिए क्षमा चाहता हूँ |

Tuesday, February 10, 2009

एक और पहेली! बूझो तो जाने ? -६

लीजिये मैं फिर हाज़िर हूँ एक और पहेली के साथ | इस बार की पहेली थोडी सी आसान है | आसान क्या बहुत ही आसान है | आप में से बहुत लोग तो यहाँ घूम चुके हैं | जो नही घूमे हैं वो यहाँ घूम सकते हैं |
बस तो फिर शुरू हो जाइए और हमें विस्तार से बताइये ताकि हमें इसके बारे में जयादा न लिखना पड़े |
हमेशा की तरह बुधवार या गुरुवार को मैं इसका उत्तर पोस्ट करूँगा |

Thursday, February 5, 2009

एक और पहेली ! बूझो तो जाने ? -४ का जवाब

अरे वाह भाई | दाद देनी पड़ेगी अल्पना जी की | इस बार तो आपने पुरी तरह बाज़ी मार ली | कैसे खोजा आपने इस पहेली का जवाब | अल्पना जी तथा सीमा जी कैसे आप दोनों को हमेशा जवाब मिल जाता है जरा हमें भी बताइये | और हाँ मैं अपनी गलती के लिए माफ़ी चाहता हूँ | १९०६ में ही ये बना था | अल्पना जी , सीमा जी तथा भाटिया जी के विस्तार से वर्णन के बाद कुछ और कहने को नही रह जाता है |

और मैं १९९९ में जब देहरादून गया था तब मैंने इसे देखा था | रविवार को अचानक देहरादून की चर्चा चली तो मुझे इसकी याद आ गई | फिर क्या था मैंने गूगल में इसे सर्च किया और बन गई एक पहेली | बाकी इसके बारे में आपलोग अल्पना जी , सीमा जी तथा भाटिया जी के कमेंट्स पढ़ कर जान लें | और जहाँ तक रही इस पहेली के विजेता की बात तो निसंदेह अल्पना जी प्रथम , सीम जी को दूसरा स्थान और भाटिया जी को तीसरा स्थान मिलता है |
आज का स्पेशल मेरिट अवार्ड सीमा जी को ,बहुत सारी जानकारी दी इन्होने |


अब जरा विस्तार से देखे


अल्पना वर्मा said...
अमित यह पहेली कहाँ से ढूंढ़ लाये?
सच में इतनी आसान नहीं है यह पहेली लेकिन ...मैं ने तो बूझ ली...
यह बिल्डिंग है---यह बिल्डिंग है......
'फॉरेस्ट रिसर्च institute' की जो उत्तराखंड ,देहरादून में है.
जहाँ तक मेरी जानकारी है यह १९०१ में नहीं १९०६ में बनी थी और भारत की सब से पुरानी बनी बिल्डिंग्स में से एक है.
अंग्रेजों की बनाई हुई है..मजबूत तो होनी ही है और बनावट भी बहुत बढ़िया है.
४५० हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली हुई है.यहाँ भावी फॉरेस्ट ऑफिसरों को ट्रेनिंग दी जाती है.
भारत का सब से बड़ा फॉरेस्ट based रिसर्च सेंटर यहाँ है.और यहाँ से पढे हुए ऑफिसरों की दुनिया में साख है.
यहाँ देखने के लिए सब से मुख्य आकर्षण है यहाँ का बोटानिकल गार्डन...देहरादून जाईये तो देखिये...





seema gupta said...
( aapke clue ki ye building 1901 mey bni thi isne bhut confuse kiya ye 1906 mey bni thi...)

Established in 1906, the Forest Research Institute, Dehra Dun, is one of the oldest institutions of its kind, and acclaimed the world over. The Institute's history is vertually synonymous with the evolution and development of scientific forestry, not only in India, but over the entire Indian sub-continent. Set in a lush green estate spread over 450 hectares, with the outer Himalaya forming its back drop, the Institute's main building is an impressive edifice, marrying Greco-Roman and Colonial styles of architecture, with a plinth area of 2.5 equipped laboratories,library, herbarium, arboreta, printing press and experimental field areas for conducting forestry research, quite in keeping with the best of its kind anywhere in the world. Its museums, in addition to being a valuable source of scientific information, are a major attraction for tourists.
The Institute caters, in particular, to the research needs of the Indo-Gangetic plains of Punjab, Hrayana, Chandigarh, Delhi and Western Uttar Pradesh, as Well as the U.P. Himalayas. Forestry research at the FRI is organised under fourteen divisions.

Since its establishment, the Institute has lendered Yeoman service to the forestry sector, not only within the country, but internationally as well. Research achievements of this Institute in the field of silviculture, now spanning over 50 years, have founded the edifice of forestry and scientific forest management in our country. Valuable scientific knowledge has been generated and documented on the silviculture of over 550 species of trees; classification of forest types of india, Pakistan, Bhutan, Bangladesh and Myanmar; silviculture sytems for tropical forests; successful introduction of exotics, Eucalyptus, poplars, Tropical Pines, Acacias and Leucaena leucocephala; seed technology of over 80 importnat forest tree seeds, and management of bamboos. Over 2000 sample plots, established over the years, have provided data for compiling yield and volume tables for over 120 tree species. Preservation plots established throughout the country since 1929,have helped gain a better understanding of forest ecology, biodiversity and the environment. The Institute's achievements in forest products research, particularly during the world wars,have contributed valuably to the development of forest based industries in the country. The Arsenic-Copper Chromate treatment for wood preservation, developed by the Institute, is now widely adopted throughout the world. Investigatio on, and documentation of, have helped timber utilising industries. The Institute has also pioneered the process of pulping bamboos for paper making.

Over thirty five tools, developed by the Institute's Forest Operations Division, have proved a boon to workers engaged in field forestry operations, such as logging and tending, vastly improving efficiency levels, and simultaneously contributing valuably towards the conservation of precious timber resources.

Study and development of termite control measures and control of insect pests of Sal,shisham,Teak and Babul,rank among the foremost achievements of the Entomology Division of the Forest Research Institute. Similarly, many pioneeirng works have been accomplished in the field of Forest mycology and pathology. Forest nurseries over the country nave benefitted immensely, producing quality seedings using insect-pest and disease control practices pioneered at this Institute.

Notable among achievements in Forest Genetics are the development of hybrids of Eucalyptus, capable of producing a lorger biomass, viz, FRI-4 and FRI-5, creation of model seed orchards of teak and semul, and tissue culture of eucalyptus.

Research in Non-wood Forest Products (NWFP) at FRI has led to several noteworthy achievements of immense industrial importance,such as the development of Rill method of tapping pines for resin extraction,perfection of techniques for katha extraction from khair, extraction of oxalic acid from bark of Terminalia tomentosa and T.arjuna and cultivation and utilisation practices of a number of exotic aromatic and drug yielding plants.

The herbarium maintained by the Institute houses 330.000 outhenticated plant specimens,the best in the East. Its Xylarium, with a collection of over 18,000 wood specimens from India and abroad,qualifies the Institute as the best source of reference for wood identification.


regards

राज भाटिय़ा said...
अरे बाप रे मै कल पर्सो से इसे ढुढं रहा हुं, ओर एक एक साईट देखली, लेकिन् देहरादुन नही गया, अरे पता नही अल्पना जी ओर सीमा जी के पास कोन सी जादू की छडी है,मान गया सच मै मान गया, आप लोगो ने तर्क्की कर ली हम मर्दो से, अरे पहेली पूछो बाद मै जबाब पहले हाजिर, मै हैरान हुं.
अमित भाई यह लो मेरा जबाब जो मेने अल्पना जी ओर सीमा जी की नकल मार कर चेक किया ओर फ़िर ... तीसरा ना० मेरा .ओर शाश्‍वत शेखर भाई मेरी नकल मत मारो मै तो खुद नकल मार कर पास हो रहा हुं.
जी यह 'फॉरेस्ट रिसर्च institute' है
घंटा से 7 कि.मी. दूर देहरादून-चकराता मोटर-योग्य मार्ग पर स्थित यह संस्थान भारत में सबसे बड़ा फॉरेस्ट-बेस प्रशिक्षण संस्थान है। अधिकांश वन अधिकारी इसी संस्थान से आते हैं। एफआरआई का भवन बहुत शानदार है तथा इसमें एक बॉटनिकल म्यूजियम भी है। इसकी स्थापना 1906 में इंपीरियल फोरेस्ट इंस्टीट्यूट के रूप में की गई थी। यह इंडियन काउंसिल ऑफ फोरेस्ट रिसर्च एंड एडूकेशन के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थान है। इसकी शैली ग्रीक-रोमन वास्तुकला है। इसका मुख्य भवन राष्ट्रीय विरासत घोषित किया जा चुका है। इसका उद्घघाटन 1921 में किया गया था और यह वन शोध के क्षेत्र में प्रसिद्ध है। एशिया में अपनी तरह के इकलौते संस्थान के रूप में यह दुनिया भर में प्रख्यात है। 2000 एकड़ में फैला एफआरआई का डिजाइन विलियम लुटयंस द्वारा किया गया था। इसमें 7 संग्रहालय हैं और तिब्बत से लेकर सिंगापुर तक सभी तरह के पेड़-पौधे यहां पर हैं। तभी तो इसे देहरादून की पहचान और गौरव कहा जाता है।


इसके अलावा भी बहुत सारे लोगो ने जैसे ताऊ जी , ऍम के शर्मा जी , कृष्णा जी तथा शाश्‍वत शेखर जी कोशिश की और हमारा उत्साह बढाया |

Tuesday, February 3, 2009

एक और पहेली ! बूझो तो जाने -४


जैसा की पहले भी बता चुका हूँ अभी कुछ महीने काम का यही हाल रहेगा | बहुत सारे ब्लॉग मैं मिस कर रहा हूँ | कितने अच्छे पोस्ट मिलते थे पढने को सब मिस कर रहा हूँ |
चलिए आज की पहेली का जवाब ढूँढिये | हाँ इतना हिंट दे सकता हूँ की ये १९०१ में बना था |







और जितनी जानकारी दे सके वो दे | मेरे लिए अच्छा ही होगा की मुझे कम लिखना पड़ेगा | इसका उत्तर मैं बुधवार या गुरुवार को पोस्ट करूँगा |

Thursday, January 29, 2009

एक और पहेली ! बूझो तो जाने - ३ ! का जवाब

बहुत ही आसान सी पहेली थी | आप सब लोगो ने सही जवाब दिए | लेकिन बहुत सारे लोगो ने इसका नाम नही बताया | हाँ जगह जरुर बताया की ये कहाँ पर है | खैर ये बहुत ही खुशी की बात है की इस पहेली में कोई नही हारा और सब ने सही जवाब दिए | और हर बार की तरह इस बार भी सीमा जी तथा अल्पना जी ने हमें इसके बारे में काफ़ी कुछ बता दिया | चलिए कुछ और तथ्य से मैं आपको अवगत कराता हूँ |
जी हाँ ये धौलागिरी शान्ति स्तूप ही है | भुबनेश्वर से ७ किलो मीटर दूरी पर अवस्थित ऐतिहासिक कला का ये बेजोड़ नमूना है | यहाँ आप वायु मार्ग , सड़क मार्ग से आराम से पहुँच सकते हैं | यह दया नदी के किनारे अवस्थित है | यह स्तूप जापानियों द्बारा बनाया गया है जो की बुद्ध धर्म की गरिमा को बखूबी दर्शाता है | इसे " पीस पगोडा" भी कहा जाता है |सन् १९७२ में बना ये स्तूप शान्ति का प्रतीक है |

अब जरा लोगो के उत्तर देखे ....

PN Subramanian said...
धौलगिरि, भुबनेश्वर.

अल्पना वर्मा said...
Dhaulgiri Buddhist Stupa,in Bhuvneshwar.
[build by Japanese]

seema gupta said...
A Buddhist Stupa in Orissa, near Bhubaneshwar
Regards

PD said...
dhaulagiri, Orissa.. san 1994 me gaya tha vahan.. :)

chopal said...
guruji vaise to is photo pheli ka answer pata nahi hai lekin janmat ke answer ko theek mankar answer ka option "Dhaulgiri Buddhist Stupa,in Bhuvneshwar" he select karta hoon. baki answer to aap bata he dene.

रंजना [रंजू भाटिया] said...
धौलगिरि, भुबनेश्वर.

महेंद्र मिश्रा said...
dhaulgiri ka mandir hai .

शाश्‍वत शेखर said...
Dhaulagiri Stupa, 14 kms from Bhuvaneshwar. 49 kms from Puri. Called "Shaanti Stupa". Kalinga war monument.
Monument is made of ONE SINGLE MARBLE STONE!! Also called Peace Pagoda. Situated on the bank of "Dayanadi" a river, where the great kalinga war was fought with Ashoka. Movie "Asoka" climax fighting scene was filmed on the bank of "Dayanadi river".

Famous as lovers point in Bhunaveshwar!!! :):)


Udan Tashtari said...
कट/ पेस्ट:
धौलगिरि, भुबनेश्वर.
:)



मोहन वशिष्‍ठ said...
Dhaulgiri Buddhist Stupa,in Bhuvneshwar.
[build by Japanese]



Arvind Mishra said...
Shanti stoop -Bhuvneshwar !



राज भाटिय़ा said...
धौलगिरि, भुबनेश्वर. नकल मार कर यानि अपनी अकल से कुछ नही किया.


विष्णु बैरागी said...
सयानों की इस भीड में हमारी आवाज भी शामिल है, याद रखिएगा।
(बहुत ही निराला जवाब )


purnima said...
धौलगिरि, भुबनेश्वर.


सीमा जी तथा अल्पना जी ने अच्छी जानकारी दी ..जरा वो भी देखें |

seema gupta said...
Vishwa shanti Stupa:
On the Dhauligiri Hills,where the great kalinga war was fought,stands a very modern monuments to world peace,the Vishwa shanti Stupa.This magnificent Buddhist Temple was built by Indo-Japanese collaboration in 1972, standing in the form of a massive dome with lotus petals as its crown. The five umbrellas placed on its flattened top represent five important aspects of Buddhism:
. This Dhauli Shanti Stupa is also known a Peace Pagoda .The Shanti Stupa of Dhauligiri symbolizes the peaceful co-existence of the fellow beings after the ruthless Kalinga war.
the Shanti Stupa of Dhauligiri is one of the prime Orissa attractions. The Shanti Stupa of Dhauligiri was constructed in the year of 1972 to immortalize the event that had changed the course of history in Orissa.

Regards



अल्पना वर्मा said...
dhaulgiri--इसे 'अन्नपूर्णा' का बड़ा बेटा भी कहते हैं! [अन्नपूर्णा पर्वतीय श्रंखला है]
विश्व का ७ th सब से बड़ा पर्वत!
[8167m-26794ft]
धौली को ३ री सदी में बसाया गया था.इस के चारों और चावल के खेत हैं . उरिसा में भुवेनेश्वर से ८ किलोमीटर दूर इस जगह के आस पास ही प्रसिद्ध' कलिंगा 'की लड़ाई[260 BC ] हुई थी.यही वो जगह है जहाँ सम्राट अशोका के मन में बदलाव आया था और उन्होंने बुद्ध धर्म को अपना लिया था.
पहाड़ की चोटी पर ,सन सत्तर के शुरू में यहाँ जापान से आए कुछ बोद्ध अनुयायियों [जापान बोद्ध संघ]और 'कलिंगा बोद्ध निपोन संघ 'ने मिल कर यहाँ बोद्ध स्तूप बनवाया -जिसे 'शान्ति स्तूप 'भी कहते हैं.
इसी पहाड़ की चोटी पर भगवान् ध्वलेश्वर का पुराना मन्दिर है जो १९७२ में दोबारा बनवाया गया था.



अब इस पहेली के विजेता का नाम जरा देखे | तो इस पहेली का मेरिट लिस्ट इस प्रकार रहा |

१) पी एन सुब्रमनियन जी
२) अल्पना जी
३) सीमा जी
४) पी डी जी
५) चौपाल जी
६) रंजना जी



स्पेशल मेरिट अवार्ड के हकदार दो लोग हैं |
सीमा जी तथा
अल्पना जी |


ये पहेली काफ़ी आसान बन गई थी | अब से थोड़ा कठिन पहेली खोज के लाऊंगा |

Tuesday, January 27, 2009

एक और पहेली .....बूझो तो जानूं ?-3

सबसे पहले आप लोग से क्षमा चाहूँगा की इतनी देर से पेहली पोस्ट कर रहा हूँ | सुबह सुबह चेन्नई लौटा | फिर से वही काम काम काम | खैर फिर कभी आराम से लिखूंगा | लिखने को बहुत कुछ है | अभी आपलोग ये पहेली बूझे | इसका उत्तर मैं कल पोस्ट करने की कोशिश करूँगा | अगर ना कर सका तो गुरुवार को करूँगा |

Thursday, January 22, 2009

मैं बेचारा , काम के बोझ तले मारा ..



उफ्फ ये काम , काम और केवल काम | आजकल हमारी वयस्तता का आलम मत पूछिए | नया प्रोजेक्ट , नई टेक्नोलॉजी , सारी जिम्मेवारी हम पर मतलब अमित बाबू की तो बाट लगी हुई है | सही में बहुत बुरा हाल है | किसी तरह कुछ समय निकाल पाता हूँ ताकि कुछ ब्लॉग पढ़ सकूँ और टिप्पिन्नी भी कर सकूँ | आजकल ब्लॉग्गिंग में सक्रियता बिल्कुल आधी हो गई है | जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था , जयादा नही दिसम्बर-२००८ में तब एक प्रोजेक्ट ख़तम हुआ था और उसके बाद कोई ख़ास काम नही था | बस बहुत दिनों से अपनी अंतर्मन की ख्वाइश को अमलीजामा पहना दिया था | डर तब भी लगा था की मैं सक्रिय रह पाऊंगा की नही | खैर कुछ दिन ये काम का बोझ रहेगा | तब तक शायद मैं उतना सक्रिय ना रह पाऊं | पर हाँ हरेक मंगलवार को आपको एक पहेली जरुर मिलेगी यहाँ | और समय निकाल कर मैं नए पोस्ट भी लिखता रहूँगा |

अभी तो इस सप्ताह का पुरा कार्यक्रम निश्चित हो गया है | शुक्रवार को हमारे कॉलेज की एक मित्र की शादी है | शादी के लिए हमें वेल्लोर जाना है | वेल्लोर चेन्नई से नही कुछ तो ३ घंटे का रास्ता है | फिर शादी के बाद हम बंगलोर हो लेंगे | २६ तक बंगलोर में अपना डेरा जमेगा | फिर वापस "बैक टू पवेलियन "| बंगलोर का कार्यक्रम बंगलोर में तय किया जायेगा | २६ जनवरी की छुट्टी सोमवार को हो जाने के कारण काफ़ी लंबा सप्ताहंत हो जाता है | इसलिए लगभग सब लोग विशेषकर आईटी कंपनी के लोग कहीं न कहीं घूमने निकल जाते हैं | इतनी जायदा भीड़ हो जाती ई की मत पूछिए | आज सुबह सुबह ८ बजे से रेलवे टिकेट की बुकिंग के लिए कोशिश कर रहा था | लेकिन क्या मजाल था की साईट खुल जाएँ | १ घंटे की जदोजेहत के बाद अंत में मैंने हथियार डाल दिए|

बड़ा दुःख होता है ऐसा देखकर | अब भी हमारी सरकार वही पुराना ढर्रा अपना रही है | अब भी वही पुरानी टेक्नोलॉजी अपनाए हुई है | रेलवे जिसका उपयोग भारत का हर आदमी करता है , जो की भारत की आवागमन सुविधा की आन है कम से कम उसे तो आप नए टेक्नोलॉजी से लैश कीजिये | कुछ यूजर क्या बढ जाते हैं रेलवे का सर्वर काम करना बंद कर देता है | लालू जी जापान से आए और बोले की बुल्लेट ट्रेन अब इंडिया में भी चलेगी | इससे अच्छी बात क्या हो सकती है | ३००-४०० किलो मीटर प्रति घंटे के रफ़्तार से चलने वाला ट्रेन , सही में दूरियां नजदीकियां बन जायेंगी | तब तो साप्ताहांत में हम अपने घर भी जा सकते हैं | वाह लालू जी , लेकिन सिर्फ़ कहे मत इसे अमलीजामा भी पहनाये | और उससे भी जायदा जरुरी है infrastructure को ठीक करने की | जो है कम से कम उसे इस लायक तो बनाइये की वो अच्छे से ,ढंग से काम कर सके |

उम्मीद पर ही दुनिया टिकी हुई है और हम भी यही चाहते हैं की भारत लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे | गणतंत्र दिवस पर आप सबों को ढेर सारी शुभकामनाएं |

Wednesday, January 21, 2009

एक और पहेली | बूझो तो जाने ? का जवाब ......



वाह ! बहुत ही मजेदार रहा पहेली का जवाब | हिंट देने के बाद सब ने सही जवाब दिया | संगीता जी ने बिल्कुल सही कहा की मैंने काफ़ी अच्छी हिंट दे दी थी | खैर शाश्‍वत शेखर जी ने और हमेशा की तरह सीमा जी ने काफ़ी कुछ बता दिया है | बाकी कुछ बची हुई जानकारी मैं आपको दिया देता हूँ |

यह ४५ किलो मीटर देहरी तथा ३९ कम सासाराम से दूर अवस्थित है | कैमूर पहाडों के ऊपर ये अवस्थित है | मुस्लिम शासक के वास्तुशिल्प का सेंट्रल तथा दक्षिण एशिया में यह एक बेजोर नमूना है | शेरशाह सूरी ने इसे सुरक्षा कारणों से बनाया था | १५४१ में हुमायूं को हारने के बाद उसका विश्वास था की हुमायूं फिर से पलट कर वार करेगा | इसलिए उसने १२ दरवाजा युक्त ये किला बनवाया | वो १२ दरवाजों के नाम ऐसे हैं :
१: मोरी दरवाजा
२: शाह चानन वाली दरवाज़ा
३: तलाकी दरवाज़ा
४: शीश महल दरवाज़ा
५: लंगर खानी दरवाज़ा
६: बादशाही दरवाज़ा
७: काबली दरवाज़ा
८: गधे वाला दरवाज़ा
९: सोहल दरवाज़ा
१०: पीपल वाला दरवाज़ा
११: गुत्याली दरवाज़ा
१२: खवास खानी या सदर दरवाज़ा

इसकी मुख्य विशेषता यह थी की इसके दिवार ४ किलो मीटर तक फैले हुए थे जिसमे बड़े बड़े गुम्बज तथा अर्धवृताकार नकाशी की हुई थी | हाँ ये सब अब आपको कुछ देखने को नही मिलेगा | बहुत कुछ तो रख रखाव के आभाव में नष्ट होते चले गए | यह किला अब संगृहीत अवशेष antiquities एक्ट १९७५ के तहत department of archaeology के अन्दर आता है | और साथ में यह the World Heritage List, by UNESCO, के अन्दर १९९७ से है |
यहाँ पर क्लिक करके आप और जानकारी पा सकते हैं |

अब आईये देखते हैं हमारे आज के विजेता कौन हैं | उससे पहले जरा पाठको के उत्तर पर गौर करेंगे |
आज लगभग सभी ने सही जवाब दिया | सबसे पहले कुछ सही जवाब देखते हैं :

शाश्‍वत शेखर said...
मेरे ख्याल से रोहतास गढ का किला है।
January 20, 2009 11:44 AM
राज भाटिय़ा said...
चलिये हम शशवत जी की नकल मार कर इसे रोहतास गढ का किला बता देते है.
मां बाप का ध्यान जरुर रखे.
धन्यवाद
January 20, 2009 11:56 AM
Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...
ये शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित रोह्तास फोर्ट का काबुली दरवाजा है........
January 20, 2009 12:15 PM
seema gupta said...

"The Rohtasgarh Fort located in Rohtas district is 45 km far from Dehri and 39 km away from Sasaram. This fort is situated on the top of the Kaimur Hills. It got its name from mythological character Rohitashwa, the son of King Harischandra. The king stayed in this fort in exile for several years realizing danger to his life. On the top of the hill the Fort is constructed on a plateau at a height of 1500 ft above the sea level. There are about 2000 limestone cut steps from the foothill to the top. After the end of these steps there is a gate which is the first gate to the fort. From this gate Rohtas Fort lies at a distance of 2km from this gate. The Rohats fort is an outstanding example of Mughal architectural style. Once one the largest and strongest fort in India now is in ruins.

History of Rohats Fort is very long and interesting. Although the exact origin of the Rohtas fort is lost in history, the earliest monuments here dated back to king Sashanka of seventh century AD. In mediaeval times this fort was captured by Prithviraj Chauhan. However this fort rose to prominence only after captured by Sher Shah Suri in 1539 from a Hindu king. During the Sher Shah's reign 10000-armed men guarded the fort. During Sher Shah rule a Jama Masjid was built in this complex by Haibat Khan a soldier of Sher Shah. This fort came under Man Singh, Akbar’s General in 1588. He built a palace for himself inside the fort complex which is known as Takhte Badshahi. He also built Aina Mahal a palace for his main wife and Hathiya Pol the main gate of the Fort. "
Regards
January 20, 2009 12:35 PM

PN Subramanian said...
शेरशाह द्वारा बनवाई गयी रोहतास का किला जो अब माओवादियों का अड्डा बना हुआ है.
January 20, 2009 12:36 PM
अल्पना वर्मा said...
अरे अमित कोई एक दिन तय करलिजीये.पहेली पूछने का तो मैं भी निश्चित तौर पर भाग लेने आ पाऊँगी.
वैसे अब पहुँची हूँ तो शश्वत शेखर जी के जवाब के साथ हूँ.
रोहतास गढ के किले का एक दरवाजा है। जिसे शेरशाह सुरी ने बनवाया था। वही शेरशाह जिसका मकबरा सासाराम मे है।
details to seema ji ne de hi din hain--
January 20, 2009 3:06 PM

mehek said...
hum bhi rohtak kila kehenge.
January 20, 2009 5:17 PM
संगीता पुरी said...
आपने ऐसी हिंट दे दी कि पहेली ही आसान हो गयी....गूगल सर्च में ढूंढ लें ..... fort in bihar ...... सबसे पहले नं पर शेरशाह का यह किला ही आ रहा है ..... खैर विजेताओं को बहुत बहुत बधाई।
January 20, 2009 7:07 PM
ताऊ रामपुरिया said...
अब यहां मान. सीमाजी और मान. अल्पना जी के जवाब क्रमश: आ ही चुके हैं तो जवाब तो रोहतासगढ का किला ही है.मैं आज मेरे शहर से बाहर हूं, इसलिये शाम को आया हूं, अगर यहां रोहतासगढ का नाम नही भी होता तो आपके हिंट के बाद मैं रोहतास गढ ही जवाब देता. उसका कारण मैं बता देता हूं और अन्य साथिउओं को भी जानना अच्छा लगेगा कि देवकीननदन खत्री जी ने चन्द्रकाता के बाद चन्द्रकांता संतति और फ़िर उसमे परिदृश्य रोहतासगढ किले का लिया था.
फ़िर बाद मे उन्होने रोहतासगढ के नाम से भी एक तिलस्मी उपन्यास लिखा था. मैने ये सभी उपन्यास पढे हैं तो बिहारे मे मेरे जेहन मे किले के नाम पर यही नाम था. खैर आपका जवाब आने पर पक्का करते हैं . वैसे अब शक की गुंजाईश ही नही छोडी गई है. :)
January 20, 2009 7:47 PM

मोहन वशिष्‍ठ said...
अरे भाई हम लेट हो गए वरना आज विजेता होते
यह हे बिहार का शेर शाह द्वारा सोलह‍वीं सदी में बनवाया गया रोहताश किला है
Rohtas Fort in Bihar, built by Sher Shah (1486-1545) and later used by travelling Mughals as a garrison, is in the iron grip of Maoist extremists and tourist traffic to the impressive structure has dried up.

January 20, 2009 8:24 PM

Shastri said...
जब इतने सारे लोग कह रहे हैं कि यह बिहार में है और रोहतास गढ के किले का एक दरवाजा है। जिसे शेरशाह सुरी ने बनवाया था तो इस फाटक की क्या हिम्मत है कि वह इसे मानने से इंकार कर दे. अत: मैं तो वही कहने जा रहा हूं जो "सर्व सम्मत" है !!
सस्नेह -- शास्त

हिमांशु said...
सर्वसम्मति में मेरी भी मति.
धन्यवाद.

अब जैसा की अल्पना जी ने कहा मैं उनके कहे को मानते हुए अब से हर मंगलवार को ही पहेली बुझाऊंगा |


इसके अलावा कुछ मजेदार तथा ज्ञानवर्धक बातें भी हमारे पीडी तथा शाश्‍वत शेखर जी के बीच हुई | जरा उसपर भी नज़र डालें |

PD said...

शाश्वत जी, मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कहूंगा मगर ये जरूर कहूंगा कि विक्रमगंज में मैं भी 3 साल रहा हूं जो सासाराम का ही एक अनुमंडल है.. पिताजी के साथ यहां वहां घूमते हुये काफी कुछ भौगोलिक स्थिति का भी ज्ञान हो गया..
पिता जी प्रशासनिक अधिकारी थे और मध्य बिहार में रोहतास को छोड़कर और कहीं भी पोस्टिंग नहीं हुआ था.. यह बात तब की है जब रणवीर सेना और माले का बोलबाला था.. अपने पिताजी को विक्रमगंज में जितना परेशान होते देखा था उतना पूरे बिहार में घूमते हुये फिर कभी नहीं देखा.. जब कभी हम अकेले पटना की ओर रवाना होते थे तब उनकी जान अटकी होती थी और तभी चैन उनको आता था जब हमारे पटना पहूंचने की खबर उन्हें मिल जाती थी.. उस समय मोबाईल का भी जमाना नहीं था, जो उन्हें पल-पल कि खबर मिलती रहे..

शाश्‍वत शेखर said...
Prashant Ji,
आप यह भी अच्छी तरह जानते होंगे की कुछ राजनितिक दल के लोग सारी गुंडागर्दी रणवीर सेना और माओवादियों के नाम से करते थे, खासतौर पर सरकारी कर्मचारियों पर, कारण आप जानते होंगे| इन सब घटनाओं पर अब रोक लग चुकी है| आम जनता का समर्थन इन दलों के साथ जरुर था, माओवादियों के साथ नही| जहानाबाद, गया में असली माओवादी थे, ये समस्या अभी भी है, सुधार अवश्य आया है|
रोहतास में अभी वैसा बिल्कुल भी नही है| बिहार में जो कुछ भी नया हो रहा है उसके बारे में पढ़ें तो स्थिति का पता चलेगा| उससे अच्छा होगा की किसी बिहारी जो बिहार में हो बात करें| दुर्दशा भूल जाएँ, विकास को महसूस करें| कुछ तथ्य मैं आपको दूंगा थोडी देर में|

PD said...

अरे विक्रमगंज जिला बन गया.. लगता है सच में मुझे बहुत कुछ नहीं पता है और काफी कुछ बदल गया है.. उस समय विक्रमगंज सासाराम का एक अनुमंडल हुआ करता था जिसके अंदर में आठ प्रमंडल हुआ करते थे.. सासाराम जिले के अंदर तीन अनुमंडल थे.. विक्रगंज, डेहरी-ऑन-सोन और सासाराम..
खैर लगता है आपसे बहुत जानकारी मिलने वाली है.. इंतजार है.. :)



इनके अलावा भी हमारा उत्साह वर्धन अरविन्द जी, विनय जी, प्रीती जी , सुशिल जी, प्रदीप जी , विनीता जी , रंजना जी , राजीव जी, हरी जी ने किया | मैं इन सब का शुक्रगुजार हूँ |





अब जरा मेरिट लिस्ट पर नज़र डाले ...
१) शाश्‍वत शेखर जी
२) राज भाटिय़ा जी
३) Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" जी
४) सीमा गुप्ता जी
५) पी सुब्रमनियन जी
६)अल्पना वर्मा जी



आज का स्पेशल मेरिट अवार्ड समझ में नही आ रहा था किसका नाम लिखूं | दो लोगो के बीच टाई हो गया था | और हमेशा की तरह सीमा जी ने जो जानकारी दी वो सही में पुरी जानकारी थी | इसलिए स्पेशल मेरिट अवार्ड भी सीमा जी को ही जाता है |

Tuesday, January 20, 2009

एक और पहेली | बूझो तो जाने ?

शनिवार तथा रविवार कैसे बीत जाता है पता ही नही चलता | ५ दिन १२-१४ घंटे काम करने के बाद बस ये ही दो दिन कुछ आराम के होते थे | आज भी माँ बोलती हैं " बेटा प्राइवेट जॉब छोड़कर सारकारी जॉब कर लो " | लेकिन नही हम निराबुद्धू अब भी यही समझते हैं की प्राइवेट जॉब में जयादा पैसा है | लकिन छठा वेतन आयोग लागू होने के बाद वो भ्रम भी जाता रहा | खैर मैं जिस फिल्ड में हूँ सरकारी नौकरी काफ़ी कम है उसमे | ये सब तो चलता रहता है | सरकारी नौकरी करने से कम से कम पापा मम्मी के साथ तो रहता | अरे कहाँ मैं पहेली बुझाने आया था और मैं क्या से क्या लिखने लगा |
जरा इस ख्स्तेहाल पड़े किला पर नज़र दौरायें और हमें बताएं ये कहाँ पर है | और अगर जानकारी दे तो और भी उतम | तो चलिए आपका समय शुरू होता है अब |

Saturday, January 17, 2009

क्या आप दुखी हैं ? हैं तो आप स्वस्थ हैं ...


चौक गए | अजी बिल्कुल मत चौकिए , वैज्ञानिको ने इस सम्बन्ध में काफ़ी खोज किया है और निष्कर्ष ये निकाला है की अगर आप दुखी हैं तो ये आपके स्वास्थ के लिए अच्छा है |

हम सभी किसी न किसी तरह बुरे वक्त से गुजरते हैं , चाहे यह एक रिश्ते टूटने से हो , किसी की मौत से हो , प्रेमी , प्रेमिका के अलगाव से हो या वैश्विक वित्तीय संकट के वर्तमान चरण में , हमें नौकरी खोने से हो | और इन सब चीजों से बचने के लिए हम वही हरी-पीले दवा लेते हैं | मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस बदती प्रवृत्ति से वास्तव में मानव विकास प्रभावित हो सकता है | उनका कहना है की ऐसी घटनाएं विकासवादी उद्देश्य में कार्य करता है | वैज्ञानिकों का मानना है कि उदासी मनुष्य के लिए एक कार्य की तरह है : यह हमें मदद करता है अपनी गलतियों से सीख लो |
Professor Jerome Wakefield कहते हैं : "When you find something this deeply in us biologically you presume it was selected because it had some advantage - otherwise we wouldn't have been burdened with it".

हाल ही में मैंने इसपर २-३ लेख पढ़ा | मैं यहाँ लिंक दे रहा हूँ आप लोग भी पढ़े |
Depression Should Be Embraced, Not Medicated

Feeling blue? Stop worrying... depression is good for you, say scientists

Sadness is good for health: study



Photographs courtesy:google

Friday, January 16, 2009

ये है बंगलोर - बंगलोरु (जो कह लें )

क्यूँ कहते हैं बंगलोर को " है - टेक" सिटी ..

२ पोस्ट पहले मैंने बंगलोर और उसकी खूबसूरती का जिक्र किया था | वो खुमारी तो अभी तक उतरी नही है | पहले मैं हरेक शनिवार को बंगलोर जाया करता था | लेकिन अब काम और जिम्मेवारी बढ़ जाने के कारण नही जा पाता हूँ | लेकिन कोशिश रहती है की जब भी मौका मिले चला जाऊं | पिछले पोस्ट में मैंने कहा था की समय मिलेगा तो बंगलोर की कुछ फोटोग्राफ्स आपलोगों के साथ शेयर करूँगा | समय मिला तो नही पर हाँ समय निकाल कर कुछ फोटोग्राफ्स यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ | आशा करता हूँ की आपलोगों को पसंद आएगा |

सबसे पहले इस्कॉन मन्दिर का दर्शन करें |




ये तस्वीर यहाँ के राजा केम्प गोडा की है | इनके नाम से बंगलोर में एक पुरी जगह है |


बंगलोर बुल-मन्दिर | काफ़ी प्रसिद्ध है | कहते हैं यहाँ जो मांगो , मिल जाता है |


ये बंगलोर का महाराजा पैलेस है |



बंगलोर सरकारी कार्यालय(विधान- सौधा)|



बंगलोर का लालबाग गार्डन | बंगलोर जाए तो यहाँ जरुर जाएँ |





और ये अनोखा पेड़ जो लालबाग में है


लालबाग का ग्लास हाउस |


बंगलोर की कुछ आईटी कंपनी ....

Microsoft:



Intel-tech park:


बंगलोर का सुर्ययास्त ....

एक झलक बंगलोर के हेब्बल फ्लाई ओवर की


७-स्टार लीला पैलेस |

बस ये थोडी झलक थी बंगलोर की | और बहुत सारे चीज़ है जो आपको बंगलोर का दीवाना बना सकता है | मुझे जो सबसे अच्छी लगती है वो है यहाँ का जलवायु | आप भी बताएं आपको कैसा लगा बंगलोर ?

Photographs:Courtesy-Google

Wednesday, January 14, 2009

पहेली का जवाब ..

सबसे पहले आप सबको मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
वाह ! वाह ! भाई वाह ! मैंने तो अपने तरफ़ से थोड़ा कठिन सवाल पूछा था , पर लगभग सभी लोगो ने सही जवाब दिया | जी हाँ ये कोल्हापुर का न्यू पैलेस ही है | उत्तर देने वालो में सबसे पहले PN Subramanian जी ने सही जवाब दिया | उनको ढेर सारी बधाईयाँ ..... उसके बाद अल्पना जी एवं समीर जी ने ना केवल सही जवाब दिया बल्कि इसके बारे में हमें जानकारी भी दी |

इसके बाद सीमा जी (आप यहाँ पुरा details पढ़ सकते हैं ) ने तो पुरा इतिहास ही हमें बता दिया | सीमा जी का बहुत बहुत आभार | सीमा जी के लिखने के बाद , कुछ और जानकारी नही बचता है देने के लिए | इसके अलावा सुशीलजी , ताऊ , संगीता जी , मोहन जी , प्रभात जी एवं और भी लोग , सभी ने सही जवाब दिए |
कुछ और ख़ास बातें इस महल के बारे में ...
इस महल को मेजर मंत ने डिजाईन किया था | इस महल पर जैन तथा हिंदू दोनों धर्मो की मिली जुली संस्कृति का प्रभाव देखने को मिलता है | गुजरात , राजस्थान तथा लोकल राजवाडा का प्रभाव भी देखने को मिलता है | प्रथम तल्ला पर जो म्यूज़ियम है वो सही में देखने लायक है | महाराजा साहो जी छत्रपति नाम से मशहूर ये म्यूज़ियम बहुत से अनमोल धरोहर को संभाल के रखा हुआ है | अभी भी इसके दुसरे तल्ले पर महाराजा के वंशज रहते हैं | जब भी मौका मिले यहाँ जरुर जाएँ |

एक नज़र आज के मेरिट होल्डर्स पर
१) सुब्रमनियम जी
२) अल्पना जी
३) समीर जी
४) प्रभात जी
५) संगीता जी
६) सीमा जी
स्पेशल मेरिट होल्डर : सीमा जी

Tuesday, January 13, 2009

एक और पहेली ! बूझो तो जाने ?

आज सुबह सुबह मुझे कुछ नही सूझा तो सोचा मैं भी क्यूँ नही कुछ पहेली बुझाऊं ? और फिर बस क्या था , आव देखा न ताव बस चिपका दिया ये फोटो | आप लोग बूझें की ये चित्र किस चीज़ का है , कहाँ हैं ? जितना जयादा विस्तार में बताएँगे उतना और लोगो को भी फायदा होगा | और हाँ मैं बस इतना कह सकता हूँ की ये भारत में ही है | चलिए अपने अपने दिमाग पर जोर डालिए और इस आसान सी पहेली का जवाब दीजिये |

और हाँ ताऊ को धन्यवाद | मुझे ये पहेली की प्रेरणा उन्ही सी मिली |


Monday, January 12, 2009

साप्ताहांत बंगलोर में - एक मैक्रो पोस्ट

काश ये समय यहीं रुक जाता , काश मैं कुछ लम्हे और यहाँ बिता सकता | इसबार भी मैं साप्ताहांत मनाने बंगलोर गया हुआ था | वो शीतल हवाएं , गुनगुने धुप मुझे अपने शहर की याद दिला देते हैं | अन्तर सिर्फ़ इतना है की बंगलोर में नॉर्थ इंडिया जैसा कडाके की ठण्ड नही पड़ती है | यहाँ की शीतल हवा में अजीब सी ताजगी रहती है , आपका रोम रोम प्रफुल्लित महसूस करता है | यहाँ आने पर मुझे लगता है की मैं प्रकृति के करीब आ गया हूँ | सारी थकान ख़ुद - ब - ख़ुद गायब हो जाती है |

कहते भी हैं की अगर अपने आप में नई ताजगी , नई स्फूर्ति पैदा करना चाहते हैं तो प्रकृति के करीब जाइए | बंगलोर तो ऐसा शहर है जो प्रकृति की गोद में बसा हुआ है | अब तो काफ़ी कुछ बदल गया है , लेकिन अब से कुछ साल पहले करीब १९९७ में मैं पहली बार बंगलोर गया था | उस वक्त आपकी नज़र जिधर जाती उधर आपको हरयाली ही हरयाली दिखती | अब तो केवल कंक्रीट के जंगल जयादा दीखते हैं | जिस निर्बाध तरीके से पेड़ों की कटाई चल रही है वो दिन दूर नही जब चारो तरफ़ सिर्फ़ कंक्रीट के जंगल ही दिखेंगे |

लेकिन अभी भी ये शहर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है | इस शहर के बारे में कभी आराम से कुछ चित्रों के साथ लिखूंगा | बस अभी जल्दी जल्दी ऑफिस के काम निपटा लूँ |

Friday, January 9, 2009

तस्वीरें जो बोलती हैं .....

आप ख़ुद निश्चय करें की इन तस्वीरों से आप क्या समझना चाहते हैं ? हम आज कहाँ से कहाँ पहुंच गए पर अभी भी भारत की एक चौथाई जनता को दो टाइम का खाना नही मिल पाता है , जीवन जीने की जो मूलभूत आवश्यकता है वो पुरी नही हो पाती है | मन व्यथित होता है यह सब देख कर | क्या आपका होता है ? हम में से लगभग हर आदमी का कभी न कभी कहीं न कहीं भिखारियों से पाला पड़ता होगा | आपको दया भी आती होगी , कुछ लोग उसे हिकारत भरी नज़रों से भी देखते होंगे | और कुछ लोग उसे सहीं में कुछ देते भी होंगे | पर हमारे दिमाग में ये हमेशा रहता है की , ये तो इनका रोज़ का काम है , ये तो धंधा है इनका | हम इन्हें कुछ दे या ना दे , और ऐसा सोचना सही भी है ......


कुछ दिन पहले हमारे एक मित्र एक ऐसी ही दुविधा में फँस गए थे | सुबह सुबह जब वो घर से निकले ऑफिस जाने के लिए तो रास्ते में एक अधेड़ उम्र के वयक्ति ने उन्हें रोक लिए और उनसे कुछ पैसे की मांग करने लगा | उसने जो बताया उसके अनुसार वो इस जगह पर नया है | यहाँ वो किसी से मिलने आया है , और यहाँ आते ही उसका सारा सामान चोरी हो गया | साथ में उसके पास जो पैसे थे वो भी चले गए | जिससे मिलने आया है , उसका पता और फ़ोन नम्बर भी चला गया | मेरे मित्र असमंजस में पड़ गए | और आख़िर काफ़ी चिंतन के बाद उन्होंने उसे २०० रुपये दे दिए ताकि वो वापस अपने घर को जा सके | बाद में मेरे मित्र ने हम सब अपनी अपनी राय मांगी की उन्होंने ठीक किया या ग़लत |


हो सकता है वो आदमी उनसे झूठ बोल रहा हो , लेकिन अगर वो सच बोल रहा होगा तब क्या ? हम इस चक्कर में क्यूँ पड़ते हैं की वो झूठ बोल रहा है या सही, हमें बस ये देखना चाहिए की हम उसकी मदद कर सकते हैं की नही | अगर हम इस काबिल हैं की हम उसे कुछ पैसे दे सके और इससे हम पर कोई असर ना पड़े , तो हमें बेझिझक उनकी मदद करनी चाहिए |
इन सब स्थिति में मुझे बस रहीम के दोहे याद आ जाते हैं...

"रहीम वे नर मर चुके, जे कहू मंगन ची
उन्ते पहेल वे मुई, जिन मुख निकसत नही "




बहुत सीधी और सरल से बात है अगर आप दिन में ५ लोगो की ही मदद करते हैं और उनमे से अगर १ ही को उस पैसे की जरुरत होती है , तब भी आपकी मदद व्यर्थ नहीं जाती हैं | कम से कम उस १ आदमी को कुछ लाभ तो होगा और अगर आप किसी को नहीं देते तो वो एक आदमी भी उस लाभ से वंचित रह जायेगा | और यहाँ सोचने वाली बात यह है की आदमी तब ही मांगता है जब उसे जरुरत होती है | वैसे मैं अपने इस वाक्य से पुरी तरह सहमत नहीं हूँ | कुछ दिन पहले ही मुझे एक ऐसा मेल मिला था जिसमे जिक्र किया गया था की कैसे कुछ भिखारी भीख मांग कर के ही लखपति बन चुके हैं और अभी भी भीख मांग रहे हैं | पर यकीन मानिए इनकी संख्या गिनती मैं होगी | शास्त्रों में भी कहा गया ही की हमें कुछ न कुछ दान करना चाहिए | बस अपनी हैसियत के अनुसार शुरु हो जाइए |






All Photos:Courtesy-Google

Thursday, January 8, 2009

मोबाइल से ये भी कर सकते हैं ?


आज कल मोबाइल जिस धड़ल्ले से प्रयोग में है वो दिन दूर नही जब हम में से हरेक के पास मोबाइल भी होगा | इसमे कुछ ग़लत भी नही है , आज इससे अच्छा साधन नहीं है जिसका हम प्रयोग करके अपने प्रियजनों का हाल चाल ले सकें एवं उनसे संपर्क में रह सकें | जिस हिसाब से मोबाइल के उपभोक्ता बढ़ रहें हैं उसी हिसाब से मोबाइल की चोरी , छीनाझपटी भी बढ़ रही है | अगर हम कुछ बातें का धयान रखे तो हम अपने मोबाइल को जयादा सुरक्षित बना सकते हैं | कुछ ऐसी भी बातें हैं जो हमें अपने मोबाइल के बारे में नही मालूम है | चलिए एक मोबाइल कुछ ख़ास क्या क्या कर सकता है वो देखते हैं ?

१) मान लीजिये आप ऐसी जगह चले गए हों जहाँ पर मोबाइल का नेटवर्क काम ना कर रहा हो , और आपको कोई इमर्जेंसी कॉल करना हो , तो ? बस आपको करना ये है की आप अपने मोबाइल से ११२ डायल करे | ११२ डायल करने के बाद आपका मोबाइल स्थानीय नेटवर्क की खोज करता है और आपको सुविधा प्रदान करता है की आप इमर्जेंसी नम्बर पर डायल कर सके | और हाँ , अगर आपका कुंजीपटल लाक भी हो तो आप ये नम्बर डायल कर सकते हैं |

२) अब ये देखिये ... आज कल हर कार में रिमोट Locking की सुविधा होती है | मान लीजिये कार लाक करते समय आप कार की ऑटोमेटिक चाभी कार में ही भूल जाते हैं , और कार बाहर से लाक हो जाता है , तब क्या करेंगे आप ? हाँ आपके पास एक अतिरिक्त रिमोट चाभी आपके घर पर होती है | बस आपको करना क्या होता है की अपने घर पर किसी को फ़ोन मिलाएँ और उनसे कहे की वो चाभी अपने मोबाइल के पास लायें | इधर आप भी अपना मोबाइल कार के दरवाज़े के १ फ़ुट की दूरी पर रखे | अब उनसे कहें की वो रिमोट चाभी को मोबाइल के पास लाकर उसका Unlock का बटन दबाये | बस हो गया काम , बटन दबाते ही इधर आपके कार का दरवाजा खुल जायेगा | मैंने अभी तक इसे नही जांचा है , आप जांचे और हमें बताएं |

३) ये कुछ ऐसा है की मेरे मोबाइल पर काम नही कर रहा है | जानकारों का कहना है की ये कुछ चुनिन्दा मोबाइल डिवाइस पर ही काम करता है | ये ऐसा है की अगर आपका मोबाइल पुरी तरह डिस्चार्ज हो गया हो तो बस आप अपने मोबाइल पर *३३७०# डायल करें | जानकारों का कहना है की ये आपके मोबाइल से रिज़र्व उर्जा को लेकर फिर से कुछ देर बात करने लायक बना देता है |

४)और सबसे मस्त ..अपने मोबाइल डिवाइस को चोरी हो जाने के बाद कैसे निरुपयोगी बनाए |
इसके लिए आपको करना क्या है की बस अपने मोबाइल पर *#०६# डायल करें | एक १५ अंको का कोड आपको मिलेगा , आप बस उसे कहीं नोट कर के रख लें | अगर खुदा न खास्ता आपका मोबाइल कभी चोरी हो गया तो बस आप अपने सर्विसकर्ता (एयरटेल, वोडाफोन ,....) को फ़ोन करें और उन्हें अपना नोट किया हुआ नम्बर दे दें | उसके बाद सर्विस कर्ता आपके मोबाइल हैंडसेट को ब्लाक कर देगा | इससे होगा क्या जिसने भी उस मोबाइल को चुराया होगा वो कभी उस मोबाइल का उपयोग नही कर पायेगा | अगर वो सिम भी बदल लेता है फिर भी वो उसका उपयोग नही कर पायेगा |

इसके अलावा अब तो बहुत सारी हैंडसेट में ये खूबी आ गई है की अगर आपका मोबाइल चोरी हो गया हो तो आप उस हैंडसेट में लगे डिवाइस से पता लगा सकते हैं की आपका मोबाइल कहाँ पर है |

चलिए आज के लिए इतना ही | आशा करता हूँ ये कुछ हद्द तक आपलोगों के लिए उपयोगी होगा |

Tuesday, January 6, 2009

समय के साथ बदलते रिश्ते

आज बरबस ही कुछ पुरानी यादें अपनी दस्तक देकर ना जाने कहाँ गुम हो गई | कभी कभी कुछ पुराने रिश्तो को संभालने की जद्दोजहत में इस कदर उलझा जाता हूँ की समय का चक्र कब अपनी परिक्रमा पुरी कर लेता है पता ही नही चलता |

रिश्ते भी कभी इतनी उलझन पैदा कर सकते हैं , मैंने कभी सोचा नही था | ऐसा क्यूँ होता है की ना चाहते हुए भी कुछ रिश्ते पूर्णविराम की तरफ़ बढ़ते चले जाते हैं | कल तक जो आपकी छोटी से छोटी बातें ख़ुद ही समझ जाया करते थे आज बताने पर भी नही समझ पातें हैं | कल तक जिन्हें आपकी फिकर रहती थी आज वो आपसे ऐसे मुंह मोड़ लेते हैं जैसे की आपको जानते तक न हो...., एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी सा वयवहार करते हैं |

ऐसा क्यूँ होता है ? क्या किसी भी रिश्ते की कोई ख़ास उम्र होती है ? क्या एक निश्चित समय के बाद रिश्ते की मिठास , कड़वाहट में बदलने लगती है | ऐसा क्यूँ होता है की कल तक जो आपको बहुत अच्छा लगता है , आज अचानक से आपको उससे विरक्ति सी होने लगती है ? ऐसा क्यूँ होता है की कल तक जो आपके दुःख सुख का साथी होता है , अचानक से उसे आपकी परवाह नही होती है ?

कहीं ऐसा तो नही की ज्यूँ ज्यूँ रिश्ते की उम्र बढ़ने लगती है , हम उस रिश्ते से कुछ जायदा ही उम्मीद करने लगते हैं.....हम बदले में कुछ जयादा ही आस लगा के बैठ जाते हैं | ये बात तो बिल्कुल सही है की समय के साथ साथ आदमी की प्राथमिकता भी बदल जाती है......पर आदमी तो वही रहता है और उसकी उम्मीदें भी वही रहती हैं | और ये बात भी एक हद्द तक दुरुस्त है की समय के साथ साथ नए रिश्ते भी बनते हैं | पर क्या किसी नए रिश्ते के लिए आप पुराने रिश्ते को भूल जाते हैं ?

अपनों से दूर जाने का गम क्या होता है , ये बयां नही किया जा सकता ....बस ये एहसास तो कुछ ऐसा होता है जैसे "जल बिन मछली " | रिश्ते निभाना क्या सच में इतना मुश्किल है ? क्यूँ समय के साथ साथ हमारे कुछ रिश्तो में दरार पड़ जाती है | क्यूँ कुछ रिश्ते पीछे छूट जाते हैं और हमें ख़बर तक नही होती ? क्या हम अपने जीवन , जीने की जद्दोजहत में इस कदर उलझ जाते हैं की अपने मित्र , करीबी जन की सुध बुध तक नही ले पाते ......क्या हम इस जीवन की दौर में , आगे निकलने की होड़ में सभी रिश्तो को ताक पर रख देते हैं | पर हमने कभी सोचा है की , जहाँ हम पहुंचना चाहते हैं , जिस मंजिल को पाना चाहते हैं, वहां पहुँच कर , उस मंजिल को पाकर अगर कोई हमारा हमारे साथ नहीं हुआ तो वो लक्ष्य , वो मंजिल हमारे किस काम की होगी |

Saturday, January 3, 2009

ये झिझक क्यूँ ?

ये झिझक भी बड़ी अजीब चीज़ होती है....करे या ना करे ? कहे या ना कहे ? जाए या ना जाए ? पूछे या ना पूछे ? बड़ी अजीब है ये झिझक ....क्यूँ होती है ये जिझक मुझे आज तक समझ में नहीं आया |

अब ये ही देखिये ....जुम्मा जुम्मा एक महीने हुए हैं ब्लॉगिंग करते हुए इसलिए कह सकते हैं की मैं अभी शिशुअवस्था में हूँ ..जब कभी मैं किसी अच्छे पोस्ट को पढता था या किसी अच्छे लेख को पढ़ता था तो बिल्कुल निरुत्तर हो जाता था...समझ में नहीं आता था की मैं इसपर क्या टिप्पिनी करूँ ? जो भी सोचता था वो लगता था की ये छोटी मुंह बड़ी बात हो जायेगी ...एक झिझक सी रहती थी.....एक झिझक की रचनाकार क्या सोचेंगे ? जुम्मा जुम्मा ५ दिन से ब्लॉग लिख रहा है और चला टिप्पिनी करने ....अगर यूँ देखा जाए तो टिप्पिन्नी करना काफ़ी आसान भी है और काफ़ी मुश्किल भी....

काफ़ी आसान इसलिए की कोई भी लेख हो या कविता हो आप ये तो कह ही सकते हैं..." अच्छा लिखा आपने ...या बहुत सही कहा आपने या इसी से मिलता जुलता कुछ भी " ...लेकिन ऐसी टिप्पिन्नी तब जब आप सिर्फ़ अपने ब्लॉग का प्रचार करने के लिए वहां पर टिप्पिया रहे हों...मेरा भी मन करता था यार चलो टिप्पिया दो क्या जाता है.....लेकिन एक अजीब सा अपराधबोध जैसा महसूस होने लगता है इसलिए मैं वहां टिप्पिन्नी ही नही करता हूँ .... लगता है की कुछ उल्टा पुल्टा लिख दिया तो लोग कहेंगे "छोटी मुंह बड़ी बात " | हाँ जहाँ लगा की मैं चुप नहीं रह सकता वहां मैंने जरुर टिप्पिनी की या उस विषय पर अपने ब्लॉग पर अपने विचार व्यक्त किए....

सवाल ये नही है की मैं ब्लॉग पर टिप्पिन्नी करने से क्यूँ डरता हूँ? सवाल ये है की ये झिझक क्यूँ होती है? इस झिझक से हम अपने निजी जिंदगी में भी परेशान रहते हैं......कुछ बुरा करने में झिझक हो तो समझ में आता है लकिन कुछ अच्छा करने में किस बात की जिझक.........वैसे मैं अपनी निजी जिंदगी में कभी नही जिझकता ...जो मन में आए बिंदास होके करता हूँ.....और मैं समझता हूँ की ये झिझक हमें जिंदगी में आगे बढ़ने से रोकती है.......

जिझक बहुत कुछ आपके आपके घर के माहौल पर निर्भर करता है या यूँ कहे की आपको introvert , extrovert , या ambivert बनाता है.......लेकिन ये झिझक बहुत बुरी चीज़ है....

क्लास में जवाब देने में झिझक ....
सवाल पूछने में झिझक ........
जवाब देने में झिझक की कहीं ग़लत हो गया तो और लोग क्या सोचेंगे .....
किसी अनजान आदमी से बात करने में जिझक ....

और भी बहुत प्रकार के झिझक हैं जो हम में से कभी न कभी कहीं न कहीं जरुर महसूस किए होंगे ....

चलिए आप लोग भी अपने विचार बिना झिझक के हमें बताएं.........