रात के १२ बजे....अभी तक कोइ हलचल नहीं हुइ थी....मैं और मेरा दोस्त दो जन उस कमरे मे थे जिसमें दस्तक होने वाली थी..मेरे दोस्त को झपकी आनी शुरु हो गयी थी लकिन मैं निडर सिपाही की तरह डटा हुआ था....बस मन मे यही था की किसी तरह उसे पकरना है जिसने हमारी रातों की नींद हराम कर रखी है...
रात के १ बजे...दूसरे कमरे मे क्या हो रहा है कुछ अन्दाज़ा नहीं था...सब सो गये या जगे थे ये भी नहीं पता था...खैर मै जगा हुआ था और पुरे जोश के साथ डटा हुआ था....
तभी कुछ सरसराहट सी हुई...लगा की कोई हमारे दरवाज़े की तरफ़ आ रहा है...मै सतर्क हो गया..वो आवाज़ और पास आती गयी......मेरे दोस्त जो की दूसरे कमरे मे थे उन्हे ये सुनायी दे रहा था की नहीं मुझे कोई जानकारी नही थी....वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी थी.... लगा की दरवाज़े के पास आके कोई रुका हुआ है....
अब डर लगना शुरु हो गया था....मेरा मन कह रहा था कि मै दरवाज़ा खोल दू पर शरीर साथ नहीं दे रहा था.....धप्प धप्प....जैसे ही उसने दरवाज़ा खट्खटाया मैने बिना विलम्ब किये हुए दरवाज़ा खोल दिया.....एक सेकेंड की भी देरी नहीं हुई थी..
दरवाज़ा खोलते ही मै हक्का बक्का रह गया था....सामने कोई नहीं था......ये कैसे हो सकता है मैने अभी अभी आवाज़ सुनी थी.....तब तक मेरे बाकी दोस्त लोग भी बाहर आ गये थे..आवाज़ उनलोगों ने भी सुनी थी..पर बाहर कोई नही था........
उस सारी रात हममे से कोइ सो नहीं सका...कहीं ये भूत वूत का चक्कर तो नहीं है, मेरे एक दोस्त ने कहा....सभी उसके तरफ़ घूर घूर कर देखने लगे...अभी तक ऐसी बातें किसी के दिमाग मे नहीं आयीं थी....हमारे सोचने की दिशा अब बिल्कुल बदल गयी थी....इतना तो हमने मान लिया था कि कुछ अप्राक्रतिक घटित हो रहा है..पहली बार मैने सब की आंखों में डर देखा था...हम ये घर छोरना भी नहीं चाहते थे...काफ़ी अच्छा और काफ़ी मेहनत से मिला था ये घर....तो फिर हमने एक और रात जागने का फ़ैसला किया और इसबार हमने बरामदे मे सोने का फ़ैसला किया..
दिल्ली की उस सर्दी में बाहर बरामदे मे सोना अपने पैर पर कुल्हारी मारने जैसा ही था....मरता क्या नहीं करता...धीरे धीरे रात ढ्लने लगी थी..हम सभी दोस्त एक साथ उस अन्ज़ाने शख्स का इन्त्ज़ार कर रहे थे जो कि था भी कि नहीं पता नहीं...ज्यों ज्यों रात गुजरती जा रही थी हमारी दिलों कि धड्कन बढ्ती जा रही थी...तभी हमे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है..हम सभी सजग हो गये...लेकिन इस बात को ५ मिनट हो गये और कोइ नहीं आया... सारी रात हमे कई बार एह्सास हुआ कि कोई आ रहा है पर कोई नहीं होता था....
पुरी रात बीत गयी और कुछ नही हुआ...मेरे दो दोस्तों को बुखार हो गया उस सर्दी के कारन...हमने सोचा कि अब अगर ये वाक्या दुबारा हुआ तो हम घर बदल लेंगे....लेकिन ये घटना दुबारा फिर कभी नहीं हुई....
आज भी जब कभी वो रातें याद आतीं हैं तो एक अजीब सी सिहरन सी हो जाती है...मेरी दिल्ली कि डायरी में ऐसे बहुत सारे पन्ने है जो मै आपलोगो के साथ बाटुगां...
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
16 hours ago
9 comments:
Acchi Story Hai Bhai Shaab...isi tarah likhte rahiye....
Good One...can say scary one...
इसी तरह लिखते रहे....
अच्छी कहानी है
उस सर्दी की रात में बाहर
सोना ..वाह वाह ..मज़ा आ गया होगा
अच्छा लिखने के लिए हमारी
बधाई , लिखते रहे.
mast likhne lago ho bhai...
yaad aa gayi wo delhi ke raat..
Mast
Aap sabhi logo ka bahut bahut sukriya.....
Poori kahani padhne ke baad aisa laga ki shayad kabhi hostel me tum ye kahani sunaye the.. anyway, fir se yaad taja ho gayi.. :)
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