फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है,
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है,
फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून,
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है,
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िंदगी हमारी है,
बेख़ुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’,
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है,
Lyrics: Mirza Ghalib
Singer: Jagjit Singh
चलिए आप लोग भी ये गाना सुनिए....और जरुर बताये की आपको कैसा लगा ये गाना....
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8 comments:
bahut khub laga sunana.
बहुत खूबसुरत अमित जी !
रामराम !
हमें तो "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी" ज़्यादा अच्छी लगती है. आभार.
http://mallar.wordpress.com
kya baat hai chacha galib ki ....
बहुत बढ़िया, भई, ग़ालिब वाह
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चाँद, बादल, और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
गुलाबी कोंपलें
http://www.vinayprajapati.co.cc
bahot khub...........
Ghalib Ji ke sabse bade fan mein is nacheez ka bhi naam shumaar hai...badi khushee huyee
is khushi mein aapko bhi khush karta hoon....
मिर्ज़ा गालिब को उनके 212वीं जयंती पर बधायी दे:
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_27.html
ये काश शब्द बडा ही जलाता है हमें। और गाना मीठा सा ।
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