अरे वाह भाई | दाद देनी पड़ेगी अल्पना जी की | इस बार तो आपने पुरी तरह बाज़ी मार ली | कैसे खोजा आपने इस पहेली का जवाब | अल्पना जी तथा सीमा जी कैसे आप दोनों को हमेशा जवाब मिल जाता है जरा हमें भी बताइये | और हाँ मैं अपनी गलती के लिए माफ़ी चाहता हूँ | १९०६ में ही ये बना था | अल्पना जी , सीमा जी तथा भाटिया जी के विस्तार से वर्णन के बाद कुछ और कहने को नही रह जाता है |
और मैं १९९९ में जब देहरादून गया था तब मैंने इसे देखा था | रविवार को अचानक देहरादून की चर्चा चली तो मुझे इसकी याद आ गई | फिर क्या था मैंने गूगल में इसे सर्च किया और बन गई एक पहेली | बाकी इसके बारे में आपलोग अल्पना जी , सीमा जी तथा भाटिया जी के कमेंट्स पढ़ कर जान लें | और जहाँ तक रही इस पहेली के विजेता की बात तो निसंदेह अल्पना जी प्रथम , सीम जी को दूसरा स्थान और भाटिया जी को तीसरा स्थान मिलता है |
आज का स्पेशल मेरिट अवार्ड सीमा जी को ,बहुत सारी जानकारी दी इन्होने |
अब जरा विस्तार से देखे
अल्पना वर्मा said...
अमित यह पहेली कहाँ से ढूंढ़ लाये?
सच में इतनी आसान नहीं है यह पहेली लेकिन ...मैं ने तो बूझ ली...
यह बिल्डिंग है---यह बिल्डिंग है......
'फॉरेस्ट रिसर्च institute' की जो उत्तराखंड ,देहरादून में है.
जहाँ तक मेरी जानकारी है यह १९०१ में नहीं १९०६ में बनी थी और भारत की सब से पुरानी बनी बिल्डिंग्स में से एक है.
अंग्रेजों की बनाई हुई है..मजबूत तो होनी ही है और बनावट भी बहुत बढ़िया है.
४५० हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली हुई है.यहाँ भावी फॉरेस्ट ऑफिसरों को ट्रेनिंग दी जाती है.
भारत का सब से बड़ा फॉरेस्ट based रिसर्च सेंटर यहाँ है.और यहाँ से पढे हुए ऑफिसरों की दुनिया में साख है.
यहाँ देखने के लिए सब से मुख्य आकर्षण है यहाँ का बोटानिकल गार्डन...देहरादून जाईये तो देखिये...
seema gupta said...
( aapke clue ki ye building 1901 mey bni thi isne bhut confuse kiya ye 1906 mey bni thi...)
Established in 1906, the Forest Research Institute, Dehra Dun, is one of the oldest institutions of its kind, and acclaimed the world over. The Institute's history is vertually synonymous with the evolution and development of scientific forestry, not only in India, but over the entire Indian sub-continent. Set in a lush green estate spread over 450 hectares, with the outer Himalaya forming its back drop, the Institute's main building is an impressive edifice, marrying Greco-Roman and Colonial styles of architecture, with a plinth area of 2.5 equipped laboratories,library, herbarium, arboreta, printing press and experimental field areas for conducting forestry research, quite in keeping with the best of its kind anywhere in the world. Its museums, in addition to being a valuable source of scientific information, are a major attraction for tourists.
The Institute caters, in particular, to the research needs of the Indo-Gangetic plains of Punjab, Hrayana, Chandigarh, Delhi and Western Uttar Pradesh, as Well as the U.P. Himalayas. Forestry research at the FRI is organised under fourteen divisions.
Since its establishment, the Institute has lendered Yeoman service to the forestry sector, not only within the country, but internationally as well. Research achievements of this Institute in the field of silviculture, now spanning over 50 years, have founded the edifice of forestry and scientific forest management in our country. Valuable scientific knowledge has been generated and documented on the silviculture of over 550 species of trees; classification of forest types of india, Pakistan, Bhutan, Bangladesh and Myanmar; silviculture sytems for tropical forests; successful introduction of exotics, Eucalyptus, poplars, Tropical Pines, Acacias and Leucaena leucocephala; seed technology of over 80 importnat forest tree seeds, and management of bamboos. Over 2000 sample plots, established over the years, have provided data for compiling yield and volume tables for over 120 tree species. Preservation plots established throughout the country since 1929,have helped gain a better understanding of forest ecology, biodiversity and the environment. The Institute's achievements in forest products research, particularly during the world wars,have contributed valuably to the development of forest based industries in the country. The Arsenic-Copper Chromate treatment for wood preservation, developed by the Institute, is now widely adopted throughout the world. Investigatio on, and documentation of, have helped timber utilising industries. The Institute has also pioneered the process of pulping bamboos for paper making.
Over thirty five tools, developed by the Institute's Forest Operations Division, have proved a boon to workers engaged in field forestry operations, such as logging and tending, vastly improving efficiency levels, and simultaneously contributing valuably towards the conservation of precious timber resources.
Study and development of termite control measures and control of insect pests of Sal,shisham,Teak and Babul,rank among the foremost achievements of the Entomology Division of the Forest Research Institute. Similarly, many pioneeirng works have been accomplished in the field of Forest mycology and pathology. Forest nurseries over the country nave benefitted immensely, producing quality seedings using insect-pest and disease control practices pioneered at this Institute.
Notable among achievements in Forest Genetics are the development of hybrids of Eucalyptus, capable of producing a lorger biomass, viz, FRI-4 and FRI-5, creation of model seed orchards of teak and semul, and tissue culture of eucalyptus.
Research in Non-wood Forest Products (NWFP) at FRI has led to several noteworthy achievements of immense industrial importance,such as the development of Rill method of tapping pines for resin extraction,perfection of techniques for katha extraction from khair, extraction of oxalic acid from bark of Terminalia tomentosa and T.arjuna and cultivation and utilisation practices of a number of exotic aromatic and drug yielding plants.
The herbarium maintained by the Institute houses 330.000 outhenticated plant specimens,the best in the East. Its Xylarium, with a collection of over 18,000 wood specimens from India and abroad,qualifies the Institute as the best source of reference for wood identification.
regards
राज भाटिय़ा said...
अरे बाप रे मै कल पर्सो से इसे ढुढं रहा हुं, ओर एक एक साईट देखली, लेकिन् देहरादुन नही गया, अरे पता नही अल्पना जी ओर सीमा जी के पास कोन सी जादू की छडी है,मान गया सच मै मान गया, आप लोगो ने तर्क्की कर ली हम मर्दो से, अरे पहेली पूछो बाद मै जबाब पहले हाजिर, मै हैरान हुं.
अमित भाई यह लो मेरा जबाब जो मेने अल्पना जी ओर सीमा जी की नकल मार कर चेक किया ओर फ़िर ... तीसरा ना० मेरा .ओर शाश्वत शेखर भाई मेरी नकल मत मारो मै तो खुद नकल मार कर पास हो रहा हुं.
जी यह 'फॉरेस्ट रिसर्च institute' है
घंटा से 7 कि.मी. दूर देहरादून-चकराता मोटर-योग्य मार्ग पर स्थित यह संस्थान भारत में सबसे बड़ा फॉरेस्ट-बेस प्रशिक्षण संस्थान है। अधिकांश वन अधिकारी इसी संस्थान से आते हैं। एफआरआई का भवन बहुत शानदार है तथा इसमें एक बॉटनिकल म्यूजियम भी है। इसकी स्थापना 1906 में इंपीरियल फोरेस्ट इंस्टीट्यूट के रूप में की गई थी। यह इंडियन काउंसिल ऑफ फोरेस्ट रिसर्च एंड एडूकेशन के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थान है। इसकी शैली ग्रीक-रोमन वास्तुकला है। इसका मुख्य भवन राष्ट्रीय विरासत घोषित किया जा चुका है। इसका उद्घघाटन 1921 में किया गया था और यह वन शोध के क्षेत्र में प्रसिद्ध है। एशिया में अपनी तरह के इकलौते संस्थान के रूप में यह दुनिया भर में प्रख्यात है। 2000 एकड़ में फैला एफआरआई का डिजाइन विलियम लुटयंस द्वारा किया गया था। इसमें 7 संग्रहालय हैं और तिब्बत से लेकर सिंगापुर तक सभी तरह के पेड़-पौधे यहां पर हैं। तभी तो इसे देहरादून की पहचान और गौरव कहा जाता है।
इसके अलावा भी बहुत सारे लोगो ने जैसे ताऊ जी , ऍम के शर्मा जी , कृष्णा जी तथा शाश्वत शेखर जी कोशिश की और हमारा उत्साह बढाया |
सियार
6 days ago
6 comments:
अल्पना और सीमा जी को बधाइयाँ.
"congratulations Alpna Ji and Raj Ji'
Regards
सु.अल्पनाजी, सु.सीमाजी और भाटिया जी को घणी बधाई. और भाई हमको तो नकल मारने का चांस ही नही मिला वरना आज विजेताओं की लाईन मे हम भी बधाई ले रहे होते.:)
खैर अगली बार सही.
रामराम.
वेसे तो मेरा फ़ेल होन पक्का था , वो तो साथ मिल गया अल्पना जी , ओर सीमा जी का, ओर इज्जत बच गई , वरना मै तो इसे १९०१ के इतियहास मै ही ढुढ रहता. असली बधाई की हक दार तो अल्पना जी ओर सीमा जी है, मेरी तर्फ़ से इन्हे बहुत बहुत बधाई, ताऊ को भी बधाई अगर नकल मार लेता तो पास भी हो जाता, अब फ़ेल होने की ही बधाई दे दो.
धन्यवाद
अल्पनाजी , सीमा जी और भाटिया जी को बहुत बहुत बधाई।
देहरादून इसके अलावा ओ.एन.जी.सी. , आई.एम.ए. और दून स्कूल के लिए भी जाना जाता है. अपने प्राकृतिक दृश्यों के लिए तो मशहूर है ही. वहाँ एक मन्दिर ऐसा है जहाँ किसी प्रकार का चढ़ावा देना सख्त मना है. किंतु प्रसाद के रूप में निःशुल्क खीर,पूरी या हलवा आदि तथा चाय ग्रहण करने का आग्रह रहता है. वहाँ के दर्शनीय स्थलों में गुच्चू पानी प्रमुख है.
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