आज बरबस ही कुछ पुरानी यादें अपनी दस्तक देकर ना जाने कहाँ गुम हो गई | कभी कभी कुछ पुराने रिश्तो को संभालने की जद्दोजहत में इस कदर उलझा जाता हूँ की समय का चक्र कब अपनी परिक्रमा पुरी कर लेता है पता ही नही चलता |
रिश्ते भी कभी इतनी उलझन पैदा कर सकते हैं , मैंने कभी सोचा नही था | ऐसा क्यूँ होता है की ना चाहते हुए भी कुछ रिश्ते पूर्णविराम की तरफ़ बढ़ते चले जाते हैं | कल तक जो आपकी छोटी से छोटी बातें ख़ुद ही समझ जाया करते थे आज बताने पर भी नही समझ पातें हैं | कल तक जिन्हें आपकी फिकर रहती थी आज वो आपसे ऐसे मुंह मोड़ लेते हैं जैसे की आपको जानते तक न हो...., एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी सा वयवहार करते हैं |
ऐसा क्यूँ होता है ? क्या किसी भी रिश्ते की कोई ख़ास उम्र होती है ? क्या एक निश्चित समय के बाद रिश्ते की मिठास , कड़वाहट में बदलने लगती है | ऐसा क्यूँ होता है की कल तक जो आपको बहुत अच्छा लगता है , आज अचानक से आपको उससे विरक्ति सी होने लगती है ? ऐसा क्यूँ होता है की कल तक जो आपके दुःख सुख का साथी होता है , अचानक से उसे आपकी परवाह नही होती है ?
कहीं ऐसा तो नही की ज्यूँ ज्यूँ रिश्ते की उम्र बढ़ने लगती है , हम उस रिश्ते से कुछ जायदा ही उम्मीद करने लगते हैं.....हम बदले में कुछ जयादा ही आस लगा के बैठ जाते हैं | ये बात तो बिल्कुल सही है की समय के साथ साथ आदमी की प्राथमिकता भी बदल जाती है......पर आदमी तो वही रहता है और उसकी उम्मीदें भी वही रहती हैं | और ये बात भी एक हद्द तक दुरुस्त है की समय के साथ साथ नए रिश्ते भी बनते हैं | पर क्या किसी नए रिश्ते के लिए आप पुराने रिश्ते को भूल जाते हैं ?
अपनों से दूर जाने का गम क्या होता है , ये बयां नही किया जा सकता ....बस ये एहसास तो कुछ ऐसा होता है जैसे "जल बिन मछली " | रिश्ते निभाना क्या सच में इतना मुश्किल है ? क्यूँ समय के साथ साथ हमारे कुछ रिश्तो में दरार पड़ जाती है | क्यूँ कुछ रिश्ते पीछे छूट जाते हैं और हमें ख़बर तक नही होती ? क्या हम अपने जीवन , जीने की जद्दोजहत में इस कदर उलझ जाते हैं की अपने मित्र , करीबी जन की सुध बुध तक नही ले पाते ......क्या हम इस जीवन की दौर में , आगे निकलने की होड़ में सभी रिश्तो को ताक पर रख देते हैं | पर हमने कभी सोचा है की , जहाँ हम पहुंचना चाहते हैं , जिस मंजिल को पाना चाहते हैं, वहां पहुँच कर , उस मंजिल को पाकर अगर कोई हमारा हमारे साथ नहीं हुआ तो वो लक्ष्य , वो मंजिल हमारे किस काम की होगी |
मिर्च और इडली दोसा का बैटर
1 day ago
27 comments:
मेरे विचार से किसी व्यक्ति से जुड़ने से कहीं अच्छा है सिद्धान्तों से, जीवन के मूल्यों से जुड़ना। ऐसा करने से रिश्तों में दरार कभी नहीं आती और उस रिश्ते के लिये आप वह सब करते हैं जो आपको करना चाहिये। यदि ऐसा हो तो सच्चे रिश्ते में दरार नहीं आती। यदि आती है तो वह रिश्ता कायम करने लायक नहीं था।
हांलाकि मेरी इस राय से इस युग में बहुत कम ही लोग इत्तिफ़ाक रखते हैं। अधिकतर तो कर्ण की तरह होते हैं। जो कि दुर्योधन की हर बात पर जान देने को तैयार रहते हैं। मेरे विचार से यह नज़रिया गलत है।
उन्मुक्त जी के विचारों से हम सहमत लगते हैं. वैसे रिश्ते बनते बिगड़ते रहते है, ऐसा हमने सुना तो है. आभार.
अपनों से दूर जाने का गम क्या होता है , ये बयां नही किया जा सकता ....बस ये एहसास तो कुछ ऐसा होता है जैसे "जल बिन मछली "
" रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं, उनके बिगड़ने का दुःख भी बहुत पीडा दायक होता है, और दूर जाने का दर्द भी.. इनको सहेज कर रखना बहुत जरूरी है..."
regards
जीवन के यथाथ को उकेर दिया है आपने अद्भुत चिंतन
वो गाना याद आ गया - कितने अजीब रिश्तें हैं यहाँ पर
बहुत यथार्थ परक पोस्ट है.
रामराम.
रिश्तों की पेचीदगी को बड़े अच्छे से व्यक्त किया है आपने. सवाल भी बेहद सटीक है....क्या रिश्तों की उम्र होती है? मैं बस यही कहना चाहूंगी की गुजरते वक्त के साथ एकरसता आ जाती है, जरूरी है कुछ नयापन लाना, मिल कर कुछ अलग करना. इससे रिश्तों को नई जिंदगी मिलती है और वे हर कदम साथ रहते हैं. कुछ कुछ उसी गीत की तरह...चलो एक बार फ़िर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों.
रिश्तों की अपनी अपनी परिभाषा है ..कोई इन्हे समझ के भी नही नही समझ पाता..अच्छा लिखा है आपने
भाई हमसे ये चिंतन ही नहीं होता . चलो ज्ञानी लोग ठीक ही कहते होंगे :)
बहुत बड़ी-बड़ी बातें करके, दिल जीतने का हुनर पा गये हो, विचार सहमती तो होगी ही!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
झिझक के साथ रिश्तों पर भी बहुत अच्छा लिखा है. झिझकते हुये नहीं समझियेगा.आप मेरे ब्लाग पर अपनी ्नयी पोस्ट का लिंक दे दिया करें.
रिश्तों पर बहुत खूबसूरत लिखा है. जब भी आप नया लिखें मेरे लिये एक लिंक अवश्य छोड़ दें.
उम्मीदे जब टूटती है.. तब दुख होता है.. ज़्यादा उम्मीद नही पालनी चाहिए..
o g ye to hogaa hi
duniya ke dastur jo hain
enjoy ji balle balle
Rishton ka bahut satik vishleshan kiya hai aapne...lekin shayad kuch rishte aise bhi hote hain...jo kabhi nahi tootte. par mujhe lagta hai, ki jo toot jaye wo rishta hi nahin, hum use rishta maankar zindgi bhar ghutte rahte hain.
वाह... बेहतरीन प्रस्तुति है.. साधुवाद स्वीकारें.
bahot achha likha hai aapne
bahut achchha likha rishton par aapane.
आप सभी लोगो का आभार ..इतने अच्छे विचार व्यक्त करने के लिए....
बहुत यथार्थ वादी पोस्ट है आपकी...एक दम सच्ची बात कही है...
नीरज
रिश्तों के विष्य में सुन्दर अभिव्यक्ति.
साँसोँ की नाज़ुक डोर से बँधे रहते हैँ रीस्ते बहुत सही लिखा है आपने
लावण्या
rishte aajkal rah khan gye hain jnab. vaise acha likha aapne. congrats
रिश्तों और पल-पल बदलती मानसिकता पर गहन चिन्तन यथार्थवादी...........
bhai , ye padkar ,kuch kuhc ho gaya.. man waise hi bhaari bhaari sa tha , upar se ye pad liya ..
main kya kahun .. rishte bus rishte hote hai..
is amulay rachan ke liye badhai ..
maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.
vijay
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parivartan hi jeewan ka niyam hai
रिश्तों की उलझन ...चिंतनपरक लेख
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