Tuesday, January 6, 2009

समय के साथ बदलते रिश्ते

आज बरबस ही कुछ पुरानी यादें अपनी दस्तक देकर ना जाने कहाँ गुम हो गई | कभी कभी कुछ पुराने रिश्तो को संभालने की जद्दोजहत में इस कदर उलझा जाता हूँ की समय का चक्र कब अपनी परिक्रमा पुरी कर लेता है पता ही नही चलता |

रिश्ते भी कभी इतनी उलझन पैदा कर सकते हैं , मैंने कभी सोचा नही था | ऐसा क्यूँ होता है की ना चाहते हुए भी कुछ रिश्ते पूर्णविराम की तरफ़ बढ़ते चले जाते हैं | कल तक जो आपकी छोटी से छोटी बातें ख़ुद ही समझ जाया करते थे आज बताने पर भी नही समझ पातें हैं | कल तक जिन्हें आपकी फिकर रहती थी आज वो आपसे ऐसे मुंह मोड़ लेते हैं जैसे की आपको जानते तक न हो...., एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी सा वयवहार करते हैं |

ऐसा क्यूँ होता है ? क्या किसी भी रिश्ते की कोई ख़ास उम्र होती है ? क्या एक निश्चित समय के बाद रिश्ते की मिठास , कड़वाहट में बदलने लगती है | ऐसा क्यूँ होता है की कल तक जो आपको बहुत अच्छा लगता है , आज अचानक से आपको उससे विरक्ति सी होने लगती है ? ऐसा क्यूँ होता है की कल तक जो आपके दुःख सुख का साथी होता है , अचानक से उसे आपकी परवाह नही होती है ?

कहीं ऐसा तो नही की ज्यूँ ज्यूँ रिश्ते की उम्र बढ़ने लगती है , हम उस रिश्ते से कुछ जायदा ही उम्मीद करने लगते हैं.....हम बदले में कुछ जयादा ही आस लगा के बैठ जाते हैं | ये बात तो बिल्कुल सही है की समय के साथ साथ आदमी की प्राथमिकता भी बदल जाती है......पर आदमी तो वही रहता है और उसकी उम्मीदें भी वही रहती हैं | और ये बात भी एक हद्द तक दुरुस्त है की समय के साथ साथ नए रिश्ते भी बनते हैं | पर क्या किसी नए रिश्ते के लिए आप पुराने रिश्ते को भूल जाते हैं ?

अपनों से दूर जाने का गम क्या होता है , ये बयां नही किया जा सकता ....बस ये एहसास तो कुछ ऐसा होता है जैसे "जल बिन मछली " | रिश्ते निभाना क्या सच में इतना मुश्किल है ? क्यूँ समय के साथ साथ हमारे कुछ रिश्तो में दरार पड़ जाती है | क्यूँ कुछ रिश्ते पीछे छूट जाते हैं और हमें ख़बर तक नही होती ? क्या हम अपने जीवन , जीने की जद्दोजहत में इस कदर उलझ जाते हैं की अपने मित्र , करीबी जन की सुध बुध तक नही ले पाते ......क्या हम इस जीवन की दौर में , आगे निकलने की होड़ में सभी रिश्तो को ताक पर रख देते हैं | पर हमने कभी सोचा है की , जहाँ हम पहुंचना चाहते हैं , जिस मंजिल को पाना चाहते हैं, वहां पहुँच कर , उस मंजिल को पाकर अगर कोई हमारा हमारे साथ नहीं हुआ तो वो लक्ष्य , वो मंजिल हमारे किस काम की होगी |

27 comments:

Anonymous said...

मेरे विचार से किसी व्यक्ति से जुड़ने से कहीं अच्छा है सिद्धान्तों से, जीवन के मूल्यों से जुड़ना। ऐसा करने से रिश्तों में दरार कभी नहीं आती और उस रिश्ते के लिये आप वह सब करते हैं जो आपको करना चाहिये। यदि ऐसा हो तो सच्चे रिश्ते में दरार नहीं आती। यदि आती है तो वह रिश्ता कायम करने लायक नहीं था।

हांलाकि मेरी इस राय से इस युग में बहुत कम ही लोग इत्तिफ़ाक रखते हैं। अधिकतर तो कर्ण की तरह होते हैं। जो कि दुर्योधन की हर बात पर जान देने को तैयार रहते हैं। मेरे विचार से यह नज़रिया गलत है।

P.N. Subramanian said...

उन्मुक्त जी के विचारों से हम सहमत लगते हैं. वैसे रिश्ते बनते बिगड़ते रहते है, ऐसा हमने सुना तो है. आभार.

seema gupta said...

अपनों से दूर जाने का गम क्या होता है , ये बयां नही किया जा सकता ....बस ये एहसास तो कुछ ऐसा होता है जैसे "जल बिन मछली "
" रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं, उनके बिगड़ने का दुःख भी बहुत पीडा दायक होता है, और दूर जाने का दर्द भी.. इनको सहेज कर रखना बहुत जरूरी है..."
regards

प्रदीप मानोरिया said...

जीवन के यथाथ को उकेर दिया है आपने अद्भुत चिंतन

Anonymous said...

वो गाना याद आ गया - कितने अजीब रिश्तें हैं यहाँ पर

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत यथार्थ परक पोस्ट है.

रामराम.

Puja Upadhyay said...

रिश्तों की पेचीदगी को बड़े अच्छे से व्यक्त किया है आपने. सवाल भी बेहद सटीक है....क्या रिश्तों की उम्र होती है? मैं बस यही कहना चाहूंगी की गुजरते वक्त के साथ एकरसता आ जाती है, जरूरी है कुछ नयापन लाना, मिल कर कुछ अलग करना. इससे रिश्तों को नई जिंदगी मिलती है और वे हर कदम साथ रहते हैं. कुछ कुछ उसी गीत की तरह...चलो एक बार फ़िर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों.

रंजू भाटिया said...

रिश्तों की अपनी अपनी परिभाषा है ..कोई इन्हे समझ के भी नही नही समझ पाता..अच्छा लिखा है आपने

विवेक सिंह said...

भाई हमसे ये चिंतन ही नहीं होता . चलो ज्ञानी लोग ठीक ही कहते होंगे :)

Vinay said...

बहुत बड़ी-बड़ी बातें करके, दिल जीतने का हुनर पा गये हो, विचार सहमती तो होगी ही!

---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

झिझक के साथ रिश्तों पर भी बहुत अच्छा लिखा है. झिझकते हुये नहीं समझियेगा.आप मेरे ब्लाग पर अपनी ्नयी पोस्ट का लिंक दे दिया करें.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

रिश्तों पर बहुत खूबसूरत लिखा है. जब भी आप नया लिखें मेरे लिये एक लिंक अवश्य छोड़ दें.

कुश said...

उम्मीदे जब टूटती है.. तब दुख होता है.. ज़्यादा उम्मीद नही पालनी चाहिए..

Anonymous said...

o g ye to hogaa hi
duniya ke dastur jo hain
enjoy ji balle balle

Ganesh Kumar Mishra said...

Rishton ka bahut satik vishleshan kiya hai aapne...lekin shayad kuch rishte aise bhi hote hain...jo kabhi nahi tootte. par mujhe lagta hai, ki jo toot jaye wo rishta hi nahin, hum use rishta maankar zindgi bhar ghutte rahte hain.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह... बेहतरीन प्रस्तुति है.. साधुवाद स्वीकारें.

अविनाश said...

bahot achha likha hai aapne

Bahadur Patel said...

bahut achchha likha rishton par aapane.

Unknown said...

आप सभी लोगो का आभार ..इतने अच्छे विचार व्यक्त करने के लिए....

नीरज गोस्वामी said...

बहुत यथार्थ वादी पोस्ट है आपकी...एक दम सच्ची बात कही है...
नीरज

बवाल said...

रिश्तों के विष्य में सुन्दर अभिव्यक्ति.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

साँसोँ की नाज़ुक डोर से बँधे रहते हैँ रीस्ते बहुत सही लिखा है आपने

लावण्या

Dileepraaj Nagpal said...

rishte aajkal rah khan gye hain jnab. vaise acha likha aapne. congrats

anuradha srivastav said...

रिश्तों और पल-पल बदलती मानसिकता पर गहन चिन्तन यथार्थवादी...........

vijay kumar sappatti said...

bhai , ye padkar ,kuch kuhc ho gaya.. man waise hi bhaari bhaari sa tha , upar se ye pad liya ..

main kya kahun .. rishte bus rishte hote hai..

is amulay rachan ke liye badhai ..

maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.


vijay
Pls visit my blog for new poems:
http://poemsofvijay.blogspot.com/

Onkar said...

parivartan hi jeewan ka niyam hai

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रिश्तों की उलझन ...चिंतनपरक लेख