काश ये समय यहीं रुक जाता , काश मैं कुछ लम्हे और यहाँ बिता सकता | इसबार भी मैं साप्ताहांत मनाने बंगलोर गया हुआ था | वो शीतल हवाएं , गुनगुने धुप मुझे अपने शहर की याद दिला देते हैं | अन्तर सिर्फ़ इतना है की बंगलोर में नॉर्थ इंडिया जैसा कडाके की ठण्ड नही पड़ती है | यहाँ की शीतल हवा में अजीब सी ताजगी रहती है , आपका रोम रोम प्रफुल्लित महसूस करता है | यहाँ आने पर मुझे लगता है की मैं प्रकृति के करीब आ गया हूँ | सारी थकान ख़ुद - ब - ख़ुद गायब हो जाती है |
कहते भी हैं की अगर अपने आप में नई ताजगी , नई स्फूर्ति पैदा करना चाहते हैं तो प्रकृति के करीब जाइए | बंगलोर तो ऐसा शहर है जो प्रकृति की गोद में बसा हुआ है | अब तो काफ़ी कुछ बदल गया है , लेकिन अब से कुछ साल पहले करीब १९९७ में मैं पहली बार बंगलोर गया था | उस वक्त आपकी नज़र जिधर जाती उधर आपको हरयाली ही हरयाली दिखती | अब तो केवल कंक्रीट के जंगल जयादा दीखते हैं | जिस निर्बाध तरीके से पेड़ों की कटाई चल रही है वो दिन दूर नही जब चारो तरफ़ सिर्फ़ कंक्रीट के जंगल ही दिखेंगे |
लेकिन अभी भी ये शहर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है | इस शहर के बारे में कभी आराम से कुछ चित्रों के साथ लिखूंगा | बस अभी जल्दी जल्दी ऑफिस के काम निपटा लूँ |
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
21 hours ago
19 comments:
वो शीतल हवाएं , गुनगुने धुप मुझे अपने शहर की याद दिला देते हैं
" sach khaa aisa prakrtik saundry or nazara jhaan mile vhin apne ghr or shahr ke hone kaa aabas daita hai...."
regards
सुना तो यही है दोस्त पर कभी जा नही पाए। कभी आप ले चलोगे तो ये भी देख लेंगे।
are sushil jee aap jab chaliye...ham to hamesha ready hain..
भाई कभी हमारे शहर के बारे मे भी यही कहा जाता था अब तो जिधर देखो सीमेंट का जंगल खडा है और मध्य शहर मे फ़ोर लेन तो कभी सिक्स लेन के नाम पर आज भी पेडो को काटा जारहा है.
ईश्वर बचाये आपके सपनों के शहर को, वैसे हम बंगलोर २० जनवरी को दोपहर की फ़्लाईट से पहुंच रहे हैं तब देखते हैं पीछले साल और अब मे क्या फ़र्क आया है.
रामराम.
भाई बंगलोर बाद में जाना , पहले हमें मैक्रो का मतलब बताया जाय :)
जल्दी से लिखे इन्तजार रहेगा हमें
अरे भाई अब कहां वह बंगलोर, कहीं ऐसा ना हो आकर पछतायें आप।
कभी फूलों का शहर कहलाने वाला आज देश के आम शहरों की तरह हो गया है। मुझे तो लगता है चंडीगढ में यहां की बदौलत ज्यादा हरियाली नजर आती है।
भई जहाँ भी जाओ छाये रहो और मिलते रहो!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
are taaoo kab tak rehne ka iraada hai wahan?
are vivek jee kyun bacche ki khichaai kar rahe hai aap...
:)
कमाल है भाई .इत्तिफकान हम भी वही थी पिछले एक हफ्ते से .शायद कही बराबर से गुजरे हो.....वैसे यहाँ ठण्ड में आकर मुझे खाली टी शर्ट में घूमना याद आ रहा है
are waah anuraag je..pehle pata hota to aapse milne jarur aata..
koi nahi agli baar jab bhi jaayen hame jarur soochit karen..
आप की तस्वीरों सहित आने वाली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा--- आपने बढ़िया लिखा है।
हमने जो बंगलोर अपने कालेज टूर में देखा था उसकी तो अब कल्पना भी नहीं की जा सकती...फ़िर भी ये शहर बहुत खूबसूरत है...चित्रों का इंतज़ार रहेगा...
नीरज
सबसे पहले हमने बंगलुरु १९६६ देखा फिर अभी दो साल पहले जाना हुआ. पहचान पाना मुश्किल था. जब तक ट्रैफिक की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं बन जाती यह शहर दुखदायी रहेगा. बाहरी इलाकी अब भी खूबसूरत हैं. आभार.
अमित, आपको पढ़कर सचमुच बहुत अच्छा लगा। बैंगलोर मैं तो एक ही बार गया हूँ, उसकी यादें अभी भी ताजा हैं। सच बहुत खूबसूरत शहर है। और हाँ, प्रकृति प्रेम के मामले में आप और हम एक ही हैं। मुझे भी प्रकृति से बेहद प्यार है।
सही पोयेटिक जा रहे हो..आगे सुनाना!! :)
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
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